गीता को कैसे समझें .....
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मेरी सीमित व अति अल्प बुद्धि से गीता को समझाने, और हमें समझ में आ जाए, इसकी जिम्मेदारी ऋषिकेश भगवान श्रीकृष्ण की है| हमारा काम तो उन को पूर्ण प्रेम से अपने ह्रदय में रखना और एक जिज्ञासा का होना है| बाकी काम वे ही करेंगे| पर थोड़ा सा पुरुषार्थ तो करना ही होगा|
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गीता की सैंकड़ों टीकाएँ हैं| उनमें से अनेक तो बहुत प्रसिद्ध हैं| जो प्राचीन टीकाएँ हैं जैसे शंकर भाष्य, रामानुज भाष्य और श्रीधर स्वामी की टीका आदि आदि, उनको समझने के लिए कोई समझाने वाला भी चाहिए| कोई दस-बारह प्रसिद्ध टीकाएँ तो मेरे पास भी हैं| हर भाष्यकार ने अपनी अपनी समझ से गीता पर विद्वतापूर्ण टीका की है| पर महत्वपूर्ण बात यह है कि भगवान श्रीकृष्ण के मन में क्या था? जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष कृपा से समझ में आ जाए, वह ही ठीक है|
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सबसे अच्छा तो यह है कि गीता की उस प्रति से स्वाध्याय आरम्भ करें जिसमें पदच्छेद और अन्वय शब्दार्थ दिए हैं| साथ साथ संस्कृत भाषा के शुद्ध उच्चारण और अनुष्टुप छंद को कैसे पढ़ा जाए, सीखने के लिए किसी विद्वान् गीता मनीषी आचार्य की सहायता लें| किसी विद्वान आचार्य की एक बार तो सहायता लेनी ही पड़ेगी|
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गीता के स्वाध्याय से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें| फिर पदच्छेद व मूल श्लोक को पढ़ें और हर अन्वय के शब्दार्थ को समझें| जब समझ में आ जाए तब उस अर्थ का और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान कर उनसे सही अर्थ समझाने की प्रार्थना करें| फिर जो भी समझ में आ जाए उसे भगवान के प्रसाद रूप में स्वीकार कर अगले श्लोक पर चले जायें| स्वाध्याय के अंत में भी भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें|
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जब गीता का सिर्फ पाठ करें तब भाषा का उच्चारण शुद्ध हो, और छंद को पढने का तरीका सही हो| ज़रा सा भी संदेह हो तो बड़ी विनम्रता से किसी विद्वान् आचार्य की सहायता लेने में संकोच न करें| अहंकार शुन्य तो होना ही पड़ेगा| समय हो तो गीता पाठ से पूर्व उसके माहात्म्य को भी अर्थ सहित पढ़ें|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ मई २०१८
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मेरी सीमित व अति अल्प बुद्धि से गीता को समझाने, और हमें समझ में आ जाए, इसकी जिम्मेदारी ऋषिकेश भगवान श्रीकृष्ण की है| हमारा काम तो उन को पूर्ण प्रेम से अपने ह्रदय में रखना और एक जिज्ञासा का होना है| बाकी काम वे ही करेंगे| पर थोड़ा सा पुरुषार्थ तो करना ही होगा|
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गीता की सैंकड़ों टीकाएँ हैं| उनमें से अनेक तो बहुत प्रसिद्ध हैं| जो प्राचीन टीकाएँ हैं जैसे शंकर भाष्य, रामानुज भाष्य और श्रीधर स्वामी की टीका आदि आदि, उनको समझने के लिए कोई समझाने वाला भी चाहिए| कोई दस-बारह प्रसिद्ध टीकाएँ तो मेरे पास भी हैं| हर भाष्यकार ने अपनी अपनी समझ से गीता पर विद्वतापूर्ण टीका की है| पर महत्वपूर्ण बात यह है कि भगवान श्रीकृष्ण के मन में क्या था? जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष कृपा से समझ में आ जाए, वह ही ठीक है|
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सबसे अच्छा तो यह है कि गीता की उस प्रति से स्वाध्याय आरम्भ करें जिसमें पदच्छेद और अन्वय शब्दार्थ दिए हैं| साथ साथ संस्कृत भाषा के शुद्ध उच्चारण और अनुष्टुप छंद को कैसे पढ़ा जाए, सीखने के लिए किसी विद्वान् गीता मनीषी आचार्य की सहायता लें| किसी विद्वान आचार्य की एक बार तो सहायता लेनी ही पड़ेगी|
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गीता के स्वाध्याय से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें| फिर पदच्छेद व मूल श्लोक को पढ़ें और हर अन्वय के शब्दार्थ को समझें| जब समझ में आ जाए तब उस अर्थ का और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान कर उनसे सही अर्थ समझाने की प्रार्थना करें| फिर जो भी समझ में आ जाए उसे भगवान के प्रसाद रूप में स्वीकार कर अगले श्लोक पर चले जायें| स्वाध्याय के अंत में भी भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें|
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जब गीता का सिर्फ पाठ करें तब भाषा का उच्चारण शुद्ध हो, और छंद को पढने का तरीका सही हो| ज़रा सा भी संदेह हो तो बड़ी विनम्रता से किसी विद्वान् आचार्य की सहायता लेने में संकोच न करें| अहंकार शुन्य तो होना ही पड़ेगा| समय हो तो गीता पाठ से पूर्व उसके माहात्म्य को भी अर्थ सहित पढ़ें|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ मई २०१८
जिज्ञासा ..... जीव परमात्मा का अंश है तो मरता कौन है? ८४ लाख योनियों में कौन जाता है? स्वर्ग-नर्क में कौन जाता है? भोगों को कौन भोगता है? आत्मा नित्यमुक्त और अमर है| हम परमात्मा के अंश हैं| जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ वे अविनाशी परमात्मा ही कभी नहीं मरते तो फिर मरता कौन है? यह इतने जन्म कौन लेता है? इतना भटकाव क्यों है?
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