उपासना .....
एक ध्वनी ऐसी भी है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती| परमात्मा की उस निःशब्द ध्वनी में तन्मय हो जाना स्वयं परम आनंदमय हो जाना है| मनुष्य मौज-मस्ती करता है सुख की खोज में| यह सुख की खोज, अचेतन मन में छिपी आनंद की ही चाह है| सांसारिक सुख की खोज कभी संतुष्टि नहीं देती, अपने पीछे एक पीड़ा की लकीर छोड़ जाती है| आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं सिर्फ ..... परमात्मा के ध्यान में| परमात्मा ही आनंद है, परम प्रेम जिसका द्वार है|
गहन ध्यान में प्राण ऊर्जा का घनीभूत होकर ऊर्ध्वगमन, सुषुम्ना के सभी चक्रों की गुरु-प्रदत्त विधि से परिक्रमा, कूटस्थ में अप्रतिम ब्रह्मज्योति के दर्शन, ओंकार का नाद, सहस्त्रार में व उससे भी आगे सर्वव्यापी भगवान परमशिव की अनुभूतियाँ .... जो शाश्वत आनंद देती हैं, वह भौतिक जगत में असम्भव है| सभी पर परमात्मा की अपार परम कृपा हो| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२४ मई २०१८
एक ध्वनी ऐसी भी है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती| परमात्मा की उस निःशब्द ध्वनी में तन्मय हो जाना स्वयं परम आनंदमय हो जाना है| मनुष्य मौज-मस्ती करता है सुख की खोज में| यह सुख की खोज, अचेतन मन में छिपी आनंद की ही चाह है| सांसारिक सुख की खोज कभी संतुष्टि नहीं देती, अपने पीछे एक पीड़ा की लकीर छोड़ जाती है| आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं सिर्फ ..... परमात्मा के ध्यान में| परमात्मा ही आनंद है, परम प्रेम जिसका द्वार है|
गहन ध्यान में प्राण ऊर्जा का घनीभूत होकर ऊर्ध्वगमन, सुषुम्ना के सभी चक्रों की गुरु-प्रदत्त विधि से परिक्रमा, कूटस्थ में अप्रतिम ब्रह्मज्योति के दर्शन, ओंकार का नाद, सहस्त्रार में व उससे भी आगे सर्वव्यापी भगवान परमशिव की अनुभूतियाँ .... जो शाश्वत आनंद देती हैं, वह भौतिक जगत में असम्भव है| सभी पर परमात्मा की अपार परम कृपा हो| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२४ मई २०१८
जो ग्रन्थ मेरे हृदय पर राज्य कर रहा है, वह गीता है. उसके स्वाध्याय के बाद लगता है उसी की उपासना में रहूँ, अन्यथा जीवन व्यर्थ है.
ReplyDeleteॐ