Friday, 25 May 2018

उपासना .....

उपासना .....

एक ध्वनी ऐसी भी है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती| परमात्मा की उस निःशब्द ध्वनी में तन्मय हो जाना स्वयं परम आनंदमय हो जाना है| मनुष्य मौज-मस्ती करता है सुख की खोज में| यह सुख की खोज, अचेतन मन में छिपी आनंद की ही चाह है| सांसारिक सुख की खोज कभी संतुष्टि नहीं देती, अपने पीछे एक पीड़ा की लकीर छोड़ जाती है| आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं सिर्फ ..... परमात्मा के ध्यान में| परमात्मा ही आनंद है, परम प्रेम जिसका द्वार है|

गहन ध्यान में प्राण ऊर्जा का घनीभूत होकर ऊर्ध्वगमन, सुषुम्ना के सभी चक्रों की गुरु-प्रदत्त विधि से परिक्रमा, कूटस्थ में अप्रतिम ब्रह्मज्योति के दर्शन, ओंकार का नाद, सहस्त्रार में व उससे भी आगे सर्वव्यापी भगवान परमशिव की अनुभूतियाँ .... जो शाश्वत आनंद देती हैं, वह भौतिक जगत में असम्भव है| सभी पर परमात्मा की अपार परम कृपा हो| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
२४ मई २०१८

1 comment:

  1. जो ग्रन्थ मेरे हृदय पर राज्य कर रहा है, वह गीता है. उसके स्वाध्याय के बाद लगता है उसी की उपासना में रहूँ, अन्यथा जीवन व्यर्थ है.

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