Wednesday 10 January 2018

आध्यात्मिक रूप से सबसे बड़ी सेवा .....

आध्यात्मिक रूप से सबसे बड़ी सेवा .....
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धर्म, राष्ट्र, समाज और हम सब के समक्ष, बहुत विकराल समस्याएँ हैं| उनके समाधान पर चिंतन अवश्य करना चाहिए| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है अतः भारत का पुनरुत्थान एक विराट आध्यात्मिक शक्ति द्वारा ही होगा| सौभाग्य से ऐसी अनेक महान आत्माओं से मेरा मिलना हुआ है जो शांत रूप से स्वयं अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्र के उत्थान के लिए दिन-रात निःस्वार्थ रूप से कार्य कर रही हैं| धन्य हैं वे महान आत्माएँ|
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आध्यात्मिक रूप से सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा परोपकार जो हम समष्टि, राष्ट्र, समाज या व्यक्ति के लिए कर सकते हैं, वह है ..... "आत्म-साक्षात्कार"| इस से बड़ी सेवा और कोई दूसरी नहीं है| इस बात को वे ही समझ सकते हैं जो एक आध्यात्मिक चेतना में हैं, दूसरे नहीं, क्योंकि यह बुद्धि का विषय नहीं, अनुभूति का विषय है|
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जिसे हम अन्यत्र ढूँढ रहे हैं, वह कहीं अन्यत्र नहीं है, वह तो हम स्वयं ही हैं| हम में और परमात्मा में कोई भेद नहीं है| भेद अज्ञानता का है| जो ढूँढ रहा है वह परमात्मा ही है जो अपनी लीला में स्वयं स्वयं को ही ढूँढ रहा है| यह पृथकता, यह भेद .... सब उसकी लीला है, कोई वास्तविकता नहीं| वह स्वयं ही आत्म-तत्व, गुरु-तत्व और सर्वस्व है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१० जनवरी २०१८

अंत काल में भगवान का स्मरण .....

अंत काल में भगवान का स्मरण .....

इस देह के अंतकाल के समय जैसे विचार होते हैं वैसा ही अगला जन्म होता है| अंतकाल में भगवान का स्मरण करने वाले भगवान को प्राप्त होते है| जिसने जीवन भर भगवान का स्मरण किया है, उसी को अंत समय में भगवान की स्मृति होती है, अन्यों को नहीं| अंतकाल में स्मरण उसी का होता है जिसको जीवन में सबसे अधिक याद किया हो|

शास्त्रों के अनुसार अंतिम समय बड़ा भयंकर होता है| सूक्ष्म देह की मृत्यु तो होती नहीं है लेकिन पीड़ा उतनी ही होती है जितनी भौतिक देह को होती है| जिन कुटिल लोगों ने दूसरों को खूब ठगा है, पराये धन को छीना है, अन्याय और अत्याचार किये हैं, उनकी बहुत बुरी गति होती है| बहुत अधिक कष्ट उन्हें भोगने पड़ते हैं|

अपने जीवन काल में मुक्त वही है जो सब कामनाओं, यहाँ तक कि मोक्ष यानि मुक्ति की कामना से भी मुक्त है व इस देह की चेतना से ऊपर उठ चुका है| सब से अच्छी साधना वह है जो मनुष्य को इस देह की चेतना से मुक्त करा दे|

कई बाते हैं जिन्हें मैं लिखना नहीं चाहता क्योंकि उनकी प्रतिक्रिया अच्छी नहीं होती| लोग मुंह पर तो वाह वाह करते हैं लेकिन पीठ पीछे बहुत ही अभद्र शब्दों का प्रयोग कर के अपनी दुर्भावनाओं को व्यक्त करते हैं| फेसबुक पर मैं अपना समय ही नष्ट कर रहा हूँ| जितना समय यहाँ दे रहा हूँ उतने समय मुझे परमात्मा का ध्यान करना चाहिए|

अंतिम बात जो मैं सार रूप में कहना चाहूँगा वह यह है कि हम इस देहभाव को छोड़कर ब्रह्मरूप को प्राप्त हों| जिसमे यह जानने की पात्रता होगी उसे निश्चित मार्गदर्शन मिलेगा| मुझे तो किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है| सबके अपने अपने कर्म हैं, अपना अपना प्रारब्ध है| सभी को नमन!

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१० जनवरी २०१८

समाज में एकता कैसे स्थापित हो ? .....

समाज में एकता कैसे स्थापित हो ? .....
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समाज में एकता स्थापित करने के लिए समान विचारधारा के लोगों का या तो दैनिक, या साप्ताहिक या पाक्षिक अंतराल से एक निश्चित समय पर एक निश्चित स्थान पर आपस में एक दूसरे से मिलना अति आवश्यक है| वह मिलना चाहे सामाजिक रूप से हो या धार्मिक या राष्ट्र आराधना हेतु|
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मस्जिदों में मुस्लिम समाज के लोग दिन में पाँच बार एक निश्चित समय पर निश्चित स्थान पर एकत्र होते हैं, इस से उनमें एकता और भाईचारा बना रहता है| यही उनकी शक्ति और एकता का रहस्य है|
संघ के स्वयंसेवक दिन में एक बार एक निश्चित स्थान पर खेलने के लिए एकत्र होते हैं, फिर एक साथ प्रार्थना करते हैं| यह उनके संगठन की शक्ति का रहस्य है|
पुराने जमाने में हिन्दू समाज के लोग भगवान की आराधना के लिए प्रातःकाल या सायंकाल नियमित रूप से मंदिरों में जाते थे| वहाँ उनका आपस में एक-दूसरे से मिलना-जुलना हो जाता था| इस से उनमें भाईचारा और प्रेम बना रहता था| अब मंदिरों में नियमित जाना बंद कर दिया तो इस से समाज में एकता समाप्त हो रही है|
कई क्लबों के सदस्य महीने में एक या दो बार नियमित रूप से सभा कर के एक-दूसरे से मिलते हैं| इस से उनमें प्रेम और भाईचारा बना रहता है|
आज से कुछ वर्षों पूर्व तक हिन्दू समाज के लोग एक दूसरे से होली-दिवाली जैसे त्योहारों पर एक दूसरे से राम-रमी यानी अभिनन्दन करने के लिए मिलते थे| इस से समाज में प्रेम बना रहता था| अब वह परम्परा समाप्तप्राय है|
मेरे कई परिचित मित्र साप्ताहिक सत्संग करते हैं| सभी सत्संगियों में बड़ा प्रेम बना रहता है|
चर्चों में सभी सदस्यों का शनिवार या रविवार को प्रार्थना सभा में जाना अनिवार्य है| पादरी बराबर निगाह रखता है कि कौन आया और कौन नहीं आया| कोई नहीं आता तो उसको बुलाने के लिए एक आदमी भेज दिया जाता है| इस से उनके समाज में एकता बनी रहती है|
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समाज में सामान विचारधारा के लोगों को एक निश्चित समय पर एक निश्चित स्थान पर आपस में मिलना जुलना बड़ा आवश्यक है| इसी पद्धति से हम समाज में एकता स्थापित कर सकते हैं, अन्य कोई मार्ग नहीं है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०९ जनवरी २०१८