Thursday 26 January 2017

हमारा संकल्प -------

January 27, 2016 ·
हमारा संकल्प -------
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मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है , इतिहास की धारा को बदल सकते हैं|
मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं|
जब धर्म और राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं तब व्यक्तिगत मोक्ष और कल्याण की कामना धर्म नहीं हो सकती|

एक दृढ़ संकल्पवान व्यक्ति का संकल्प पूरे विश्व को बदल सकता है|
आप का दृढ़ संकल्प भी भारत के अतीत के गौरव और सम्पूर्ण विश्व में सनातन हिन्दू धर्म को पुनर्प्रतिष्ठित कर सकता है|
भारत माँ अपने पूर्ण वैभव के साथ पुनश्चः अखण्डता के सिंहासन पर निश्चित रूप से बिराजमान होगी| भारत के घर घर में वेदमंत्रों की ध्वनियाँ गूंजेगीं| पूरा भारत पुनः अखंड हिन्दू राष्ट्र होगा|
एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति भारतवर्ष का अभ्युदय करेगी|
कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं होगा| राम राज्य फिर से स्थापित होगा|
वह दिन देखने को हम जीवित रहें या ना रहें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता| अनेक बार जन्म लेना पड़े तो भी यह कार्य संपादित होते हुए ही हम देखेंगे| इसमें मुझे कोई भी संदेह नहीं है|
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अब आवश्यकता है सिर्फ अपन सब के विचारपूर्वक किये हुए सतत संकल्प और प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण की|
यह कार्य हम स्वयं के लिए नहीं अपितु भगवान के लिए कर रहे हैं| मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं| ज्ञान की गति के साथ साथ हमें भारत की आत्मा का भी विस्तार करना होगा| यह परिवर्तन बाहर से नहीं भीतर से करना होगा|
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भारत की सभी समस्याओं का निदान हमारे भीतर है|
हम स्वयं परमात्मा की उपलब्धि कर के, उस उपलब्धि के द्वारा बाहर के विश्व को एक नए साँचे में ढाल सकते हैं| सर्वप्रथम हमें स्वयं को परमात्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा|
फिर हमारा किया हुआ हर संकल्प पूरा होगा| तब प्रकृति की हरेक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य होगी|
जिस प्रकार एक इंजन अपने ड्राइवर के हाथों में सब कुछ सौंप देता है, एक विमान अपने पायलट के हाथों में सब कुछ सौंप देता है वैसे ही हमें अपनी सम्पूर्ण सत्ता परमात्मा के हाथों में सौंप देनी चाहिए|
अपने लिए कुछ भी बचाकर नहीं रखना चाहिये, जिससे परमात्मा हमारे माध्यम से कार्य कर सकें| उन्हें अपने भीतर प्रवाहित होने दें| सारे अवरोध नष्ट कर दें|
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जो लोग भगवन से कुछ माँगते हैं, भगवान उन्हें वो ही चीज देते हैं जिसे वे माँगते हैं| परन्तु जो लोग अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते, उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं, उस व्यक्ति का हर संकल्प पूरा होता है|
सारी सृष्टि का भविष्य इस पृथ्वी पर निर्भर है, इस पृथ्वी का भविष्य भारतवर्ष पर निर्भर है, और भारतवर्ष का भविष्य सनातन हिन्दू धर्म पर निर्भर है, सनातन हिन्दू धर्म का भविष्य आप के संकल्प पर निर्भर है|
और भी स्पष्ट शब्दों में आप पर ही पूरी सृष्टि का भविष्य निर्भर है|
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धर्मविहीन राष्ट्र और समाज से इस सृष्टि का ही विनाश निश्चित है|
परमात्मा की सबसे अधिक अभिव्यक्ति भारतवर्ष में ही है| भारत से सनातन हिन्दू धर्म नष्ट हुआ तो इस विश्व का विनाश भी निश्चित है| वर्त्तमान अन्धकार का युग समाप्त हो चुका है| बाकि बचा खुचा अन्धकार भी शीघ्र दूर हो जाएगा|
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अतीत के कालखंडों में अनेक बार इस प्रकार का अन्धकार छाया है पर विजय सदा सत्य की ही रही है|
परमात्मा के एक संकल्प से यह सृष्टि बनी है| आप भी एक शाश्वत आत्मा हैं| आप भी परमात्मा के एक दिव्य अमृत पुत्र हैं| जो कुछ भी परमात्मा का है वह आपका ही है| आप कोई भिखारी नहीं हैं| परमात्मा को पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप उसके अमृत पुत्र हैं|
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जब परमात्मा के एक संकल्प से इस विराट सृष्टि का उद्भव और स्थिति है तो आपका संकल्प भी भारतवर्ष का अभ्युदय कर सकता है क्योंकि आप स्वयं परमात्मा के अमृतपुत्र हैं| जो भगवान् का है वह आप का ही है| आपके विशुद्ध अस्तित्व और प्रभु में कोई भेद नहीं है| आप स्वयं ही परमात्मा हैं जिसके संकल्प से धर्म और राष्ट्र का उत्कर्ष हो रहा है| आपका संकल्प ही परमात्मा का संकल्प है|
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वर्तमान में जब धर्म और राष्ट्र के अस्तित्व पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे है तब व्यक्तिगत कामना और व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु साधना उचित नहीं है|
जो साधना एक व्यक्ति अपने मोक्ष के लिए करता है वो ही साधना यदि वो धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए करे तो निश्चित रूप से उसका भी कल्याण होगा| धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है| हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है धर्म और राष्ट्र की रक्षा|
आप धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी आप की रक्षा करेगा| धर्म की रक्षा आप का सर्वोपरि कर्तव्य है
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एक छोटा सा संकल्प रूपी योगदान आप कर सकते हैं| जब भी समय मिले शांत होकर बैठिये| दृष्टि भ्रूमध्य में स्थिर कीजिये| अपनी चेतना को सम्पूर्ण भारतवर्ष से जोड़ दीजिये| यह भाव कीजिये कि आप यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष हैं| एक दिव्य अनंत प्रकाश की कल्पना कीजिये जो आपका अपना ही प्रकाश है|आप स्वयं ही वह प्रकाश हैं| वह प्रकाश ही सम्पूर्ण भारतवर्ष है| उस प्रकाश को और भी गहन से गहनतम बनाइये| अब यह भाव रखिये कि आपकी हर श्वास के साथ वह प्रकाश और भी अधिक तीब्र और गहन हो रहा है और सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्माण्ड और सृष्टि को आलोकित कर रहा है| आप में यानि भारतवर्ष में कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं है| यह भारतवर्ष का ही आलोक है जो सम्पूर्ण सृष्टि को ज्योतिर्मय बना रहा है| इस भावना को दृढ़ से दृढ़ बनाइये| नित्य इसकी साधना कीजिये|
पृष्ठभूमि में ओंकार का जाप भी करते रहिये| आपको धीरे धीरे स्पष्ट रूप से प्रकाश भी दिखने लगेगा और ओंकार की ध्वनी भी सुनने लगेगी|
सदा यह भाव रखें की आप ही सम्पूर्ण भारतवर्ष हैं और आप निरंतर ज्योतिर्मय हो रहे हैं|
कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं है|
आप की रक्षा होगी| भगवन आपके साथ है|
ॐ तत्सत्|

महाराष्ट्र का शिंगणापुर शनि मंदिर और वामपंथी सेकुलर नास्तिक महिलाओं का आन्दोलन ......

January 27, 2016 at 11:49pm ·
 
महाराष्ट्र का शिंगणापुर शनि मंदिर और
वामपंथी सेकुलर नास्तिक महिलाओं का आन्दोलन ......
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महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर के मामले में जो नास्तिक वामपंथी ध्रर्म-निरपेक्ष सेकुलर औरतें आंदोलनरत हैं और सैंकड़ों महिलाओं को एकत्र करके बसों में भरकर ला रही हैं, मुझे नहीं लगता कि वे किसी मंदिर में श्रद्धा के साथ कभी गयी होंगी| एक हेलिकोप्टर भी किराए पर लेकर वहां के चबूतरे पर उतरने की धमकी दे रही हैं|
उस मंदिर की परंपरा है कि वहाँ पिछले चारसौ वर्षों से किसी स्त्री को प्रवेश की अनुमति नहीं है|
इस बारे में मैं अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ|
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जहाँ तक मेरी जानकारी है ग्रहों के पूजन की शास्त्रोक्त परम्परा सनातन धर्म में नहीं है| ग्रहों की प्राण-प्रतिष्ठा भी नहीं की जाती| उनका आवाहन करते ही उन्हें आहुति देनी पडती है| उनका स्मरण करते ही उनका प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है जो गलत है| उनकी जगह उनका प्रभाव दूर करने के लिए शिव का स्मरण निरंतर करना चाहिए|
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टीवी पर अनेक सड़क छाप ज्योतिषी शनि महिमा का बखान करते हैं| फेसबुक पर भी अनेक लोग शनि की महिमा के पोस्ट डालते हैं| शनि के सम्मुख तो परम विद्वान् रावण भी नहीं जाना चाहता था| जो भी ज्योतिषी आपको शनि मंदिर में जाने को कहे वह गलत है| शनि की पीड़ा के निवारण के लिए हनुमान जी की साधना की जाती है, शनि मंदिर में नहीं जाया जाता|
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जो लोग शनि की पूजा करते हैं वे कोई धार्मिक या आध्यात्मिक लोग नहीं हैं, माँगना ही उनका मुख्य पेशा है| महाराष्ट्र में जहाँ शिंगणापुर में यह शनि मंदिर है वहाँ इतनी गरीबी है की लोगों को अपने घरों में ताले लगाने की आवश्यकता नहीं पडती| चोरी होने लायक वहां के लोगों के पास कुछ है ही नहीं|
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अतः जो औरतें वहाँ जाना चाहती हैं उन्हें जाने देना चाहिए बशर्ते की वे वहां जाकर शनि की पूजा करें, कोई तमाशा न करें|
उन पर शनि की दशा लगना भी निश्चित है और उनका विनाश भी निश्चित है| अतः उन्हें शनि की कुदृष्टि लगे इसलिए उन्हें जाकर वहां पूजा करने दी जाय |

ॐ नमः शिवाय | शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||

शिव बनकर शिव की आराधना करो .....

श्रुति भगवती कहती हैं ...... ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ यानि शिव बनकर शिव की आराधना करो।
पर जीवन बहुत ही अल्प है, और करना बहुत शेष है ......... इस अल्प काल में अब कुछ भी करना संभव नहीं है, अतः सारा दायित्व, यहाँ तक कि 'साधना' व 'उपासना' का दायित्व भी बापस प्रेममयी जगन्माता को सौंप दिया है, जो उन्होंने स्वीकार भी कर लिया है| अब शिवरूप में साधक, साधना और साध्य सब कुछ वे ही बन गयी हैं|
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जो समस्त सृष्टि का संचालन कर रही हैं उनके लिए इस अकिंचन का समर्पण स्वीकार कर उसका भार उठा लेना उनकी महिमा ही है| यह अकिंचन तो उनका एक उपकरण मात्र रह गया है|
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जीवन का मूल उद्देश्य है ----- शिवत्व की प्राप्ति| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस का उत्तर है --- कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव का ध्यान| यह किसी कामना की पूर्ती के लिए नहीं है बल्कि कामनाओं के नाश के लिए है|
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आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है --- कामना और इच्छा की समाप्ति|
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"शिव" का अर्थ ----
शिवपुराण में उल्लेख है ..... जिससे जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में संव्याप्त है, वह वेद में शिव रूप कहे गये है |
जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, उन्हें ही शिव कहा जाता है |
अमरकोष के अनुसार 'शिव' शब्द का अर्थ मंगल एवं कल्याण होता है |
विश्वकोष में भी शिव शब्द का प्रयोग मोक्ष में, वेद में और सुख के प्रयोजन में किया गया है | अतः शिव का अर्थ हुआ आनन्द, परम मंगल और परम कल्याण| जिसे सब चाहते हैं और जो सबका कल्याण करने वाला है वही ‘शिव’ है |
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शिवोहं शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.३, ४, वि.स.२०७२, 27 जनवरी 2016

भगवान, भक्ति और भक्त ...

भगवान, भक्ति और भक्त ...
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(१) विष्णु पूराण के अनुसार "भगवान" शब्द का अर्थ है -----
"ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
ज्ञानवैराग्योश्चैव षण्णाम् भग इतीरणा।।" –विष्णुपुराण ६ । ५ । ७४
सम्पूर्ण ऐश्वर्य धर्म, यश, श्री, ज्ञान, तथा वैराग्य यह छः सम्यक् पूर्ण होने पर `भग` कहे जाते हैं और इन छः की जिसमें पूर्णता है, वह भगवान है।

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(२) भक्ति और भक्त का अर्थ ---
नारद भक्ति सूत्रों के अनुसार भगवान के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है| अर्थात जिसमें भगवान के प्रति परम प्रेम है वह ही भक्त है|
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आचार्य वल्लभ की भागवत पर सुबोधिनी टीका तथा नारायण भट्ट की भक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है:
सवै पुंसां परो धर्मो यतो भक्ति रधोक्षजे। अहैतुक्य प्रतिहता ययात्मा संप्रसीदति।।
भगवान् में हेतुरहित, निष्काम एक निष्ठायुक्त, अनवरत प्रेम का नाम ही भक्ति है। यही पुरुषों का परम धर्म है। इसी से आत्मा प्रसन्न होती है।
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भगवान की भक्ति एक उपलब्धी है, कोई क्रिया नहीं|
भगवान की भक्ति अनेकानेक जन्मों के अत्यधिक शुभ कर्मों की परिणिति है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|
स्वाध्याय, सत्संग, साधना, सेवा और प्रभु चरणों में समर्पण का फल है --- भक्ति|

यह एक अवस्था है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|

सभी प्रभु प्रेमियों को मेरा प्रणाम और चरण वन्दन|
ॐ ॐ ॐ||

जगन्माता से प्रेम याचना ..........

जगन्माता से प्रेम याचना ..........
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माँ, प्रेम का एकमात्र स्त्रोत तो तुम परमात्मा का मातृरूप ही हो| तुम तो सदा करुणामयी और प्रेममयी हो| तुम्हीं ने मुझे सदा सन्मार्ग पर चलने की शक्ति और प्रेरणा दी है| तुम्हारी इस सृष्टि में मैं प्रेम की खोज में भटक रहा था जहाँ मुझे सिर्फ निराशा ही मिली है| यहाँ कोई मुझे प्रेम नहीं कर सकता, किसी को प्रेम करना आता भी नहीं है|
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इस लौकिक जीवन में गर्भस्थ होने से अब तक का सारा प्रेम तुमने ही मुझे माता-पिता, भाई-बहिन, सम्बन्धियों और मित्रों के रूप में दिया है|
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हे जगन्माता, मैं अपना समस्त प्रेम बिना कुछ चाहे बापस तुम्हें अर्पित करता हूँ और तुम मुझे अपने प्रेम में ही लीन कर दो| इसके अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| सभी रूपों में तो तुम ही हो| मेरे पास तुम्हें देने के लिए प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ है भी तो नहीं, सब कुछ तो तुम्हारा ही है|
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इस प्रेम को ही नहीं, इस पृथकता के बोध और इस अस्तित्व को भी स्वीकार करो| सब कुछ तुम्हें समर्पित है|
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.२ वि.स.२०७२, 26 जनवरी 2016
स्वयं को सीमित या परिभाषित ना करें  .....
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जीवन एक ऊर्ध्वगामी और सतत विस्तृत प्रवाह है कोई जड़ बंधन नहीं|
स्वयं को किसी भी प्रकार के बंधन में ना बाँधें| इसे प्रवाहित ही होते रहने दें| अपने व्यवहार, आचरण और सोच में कोई जड़ता ना लायें| अपने अहंकार को किनारे पर छोड़ दें और प्रभु चैतन्य के आनंद में स्वयं को प्रवाहित होने दें| सारी अनन्तता और प्रचूरता आपकी ही है|

आप ना तो स्त्री हैं और ना पुरुष| आप एक शाश्वत आत्मा हैं|
आप कर्ता नहीं हैं| कर्ता तो परमात्मा है| आप तो उसके उपकरण मात्र हैं|
आप ना तो पापी हैं और ना पुण्यात्मा| आप परमात्मा की छवि मात्र हैं|

आपकी मनुष्य देह आपका वाहन मात्र है| आप यह देह नहीं हैं| आप का स्तर तो देवताओं से भी ऊपर है| अपने देवत्व से भी उपर उठो|

किसी भी विचारधारा या मत-मतान्तर में स्वयं को सीमित ना करें| आप सबसे उपर हैं| ये सब आपके हैं, आप उनके नहीं|

आप सिर्फ और सिर्फ भगवान के हैं, अन्य किसी के नहीं| उनकी सारी सृष्टि आपकी है, आप अन्य किसी के नहीं हैं और कोई आपका नहीं है| अपने समस्त बंधन और सीमितताएँ उन्हें पुनर्समर्पित कर उनके साथ ही जुड़ जाओ|
आप शिव है, जीव नहीं| अपने शिवत्व को व्यक्त करो|

शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि||

परमात्मा की मात्र चर्चा निरर्थक है .....

परमात्मा की मात्र चर्चा निरर्थक है .....
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हम लोग दिन-रात परमात्मा के बारे में तरह तरह के सिद्धांतों पर चर्चा करते हैं| वह निरर्थक है| परमात्मा तो हमारे समक्ष ही है| उसी को खाओ, उसी को पीओ, उसी में डूब जाओ, उसी का आनंद लो, और उसी में स्वयं को लीन कर दो|
हमारे समक्ष कोई मिठाई रखी हो या कोई फल रखा हो, तो बुद्धिमानी उसको खाने में है, न कि उसकी विवेचना करने में| उसी तरह परमात्मा का भक्षण करो, उसका पान करो, उससे साँस लो और उसी में रहो|
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कौन क्या सोचता है यह उसकी समस्या है| परमात्मा का जो भी प्रियतम रूप है उसी के साथ तादात्म्य स्थापित कर लो| अपना लक्ष्य परमात्मा है कोई सिद्धांत नहीं| एक साधे सब सधै, सब साधे सब खोय| वाद-विवाद में समय नष्ट न करो| कुसंग का सर्वदा त्याग करो और जो भी समय मिलता है उसमें प्रभु की उपासना करो|
ॐ ॐ ॐ ||

गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएँ .....

गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएँ .....
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जिस देश में गंगा, गोमति, गोदावरी, सिन्धु, सरस्वती, सतलज, यमुना, नर्मदा, कावेरी, कृष्णा व ब्रह्मपुत्र जैसी पवित्र नदियाँ बहती हैं; जहाँ हिमालय जैसे अति विस्तृत और उत्तुंग पर्वत शिखर और अनेक पावन पर्वतमालाएँ; सप्त पुरियाँ, द्वादश ज्योतिर्लिंग, बावन शक्तिपीठ; अनगिनत पवित्र तीर्थ, वन, गुफाएँ, वैदिक संस्कृति, सनातन धर्म की परम्परा, अनेक ऊर्ध्वगामी मत-मतान्तर, तपस्वी संत-महात्मा व ऐसे अनगिनत लोग भी हैं जो दिन-रात निरंतर परमात्मा का चिन्तन करते हैं और परमात्मा का ही स्वप्न देखते हैं| हम सब धन्य हैं जिन्होनें इस पावन भूमि में जन्म लिया है|
मैं उन सब का सेवक हूँ जिन के ह्रदय में परमात्मा को पाने की एक प्रचंड अभीप्सा और अग्नि जल रही है, जो निरंतर प्रभु प्रेम में मग्न हैं| उन के श्रीचरणों की धूल मेरे माथे की शोभा है|
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हर चौबीस हज़ार वर्षों के कालखंड में चौबीस सौ वर्षों का एक ऐसा समय आता है जब इस भूमि पर अन्धकार व असत्य की शक्तियाँ हावी होने लगती हैं| वह समय अब व्यतीत हो चुका है| ऐसी शक्तियाँ अब पराभूत हो रही हैं| आने वाला समय सतत प्रगति का है| कोई चाहे या न चाहे अब हमारी चेतना को ऊर्ध्वगामी होने से कोई नहीं रोक सकता| भारतवर्ष निश्चित रूप से एक आध्यात्मिक राष्ट्र होगा और अपने परम वैभव को प्राप्त करेगा, अतः चिंता की कोई बात नहीं है| अपना दृष्टिकोण बदल कर अपना अहैतुकी परम प्रेम परमात्मा को दें| अपने जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनायें| जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ करते रहें| सब अच्छा ही अच्छा होगा|
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गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएँ | ॐ ॐ ॐ ||

"उत्तरा सुषुम्ना", "कूटस्थ चैतन्य" और परमात्मा के मेरे सर्वप्रिय साकार रूप .....

"उत्तरा सुषुम्ना", "कूटस्थ चैतन्य" और परमात्मा के मेरे सर्वप्रिय साकार रूप .....
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यह मेरे सर्वप्रिय विषयों में से एक है जिसे व्यक्त करने में बहुत अधिक समय, विस्तार और स्थान चाहिए| पर मैं कम से कम शब्दों में और कम से कम समय में इस अति गूढ़ विषय को व्यक्त करूंगा| जिस पर भी मेरे परम प्रिय प्रभु की कृपा होगी वह इसे निश्चित रूप से समझ जाएगा|
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(1) उत्तरा सुषुम्ना ....
आज्ञाचक्र से सहस्त्रार में प्रवेश के दो मार्ग हैं| एक तो भ्रूमध्य से है जो गुरुप्रदत्त उपासना/साधना से खुलता है| यह परा सुषुम्ना का मार्ग है| दूसरा एक सीधा मार्ग है जो आज्ञाचक्र के ऊपर से सीधा सहस्त्रार में चला जाता है| यह उत्तरा सुषुम्ना का मार्ग है जो या तो सिद्ध गुरु की विशेष कृपा से खुलता है, या मृत्यु के समय जब जीवात्मा इस में से निकल कर ब्रह्मरंध्र को भेदती हुई कर्मानुसार अज्ञात में चली जाती है| जीवित रहते हुए इसमें केवल गुरु कृपा से ही प्रवेश मिलता है| सभी सिद्धियाँ और सभी निधियाँ भी यहीं निवास करती हैं|
यदि गुरुकृपा से घनीभूत प्राण चेतना (कुण्डलिनी) जागृत है तो यह उत्तरा सुषुम्ना ही ध्यान के समय हमारा निवास, आश्रय और प्रियतम परमात्मा का मंदिर होना चाहिए|

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(2) कूटस्थ चैतन्य ....
कूटस्थ का अर्थ है जिसका कभी नाश व परिवर्तन नहीं होता| शिवनेत्र होकर (बिना तनाव के दोनों नेत्रों के गोलकों को नासामूल के समीपतम लाकर भ्रूमध्य में दृष्टी स्थिर कर, जीभ को ऊपर पीछे की ओर मोड़कर) प्रणव यानि ओंकार की ध्वनि को सुनते हुए उसी में लिपटी हुई सर्वव्यापी ज्योतिर्मय अंतर्रात्मा का चिंतन करते रहें| साधना करते करते गुरु कृपा से एक दिन विद्युत् की चमक के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति ध्यान में प्रकट होगी| ब्रह्मज्योति का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करने के बाद उसी की चेतना में रहें| यह ब्रह्मज्योति अविनाशी है, इसका कभी नाश नहीं होता| लघुत्तम जीव से लेकर ब्रह्मा तक का नाश हो सकता है पर इस ज्योतिर्मय अक्षर ब्रह्म का कभी नाश नहीं होता| यही कूटस्थ है, और इसकी चेतना ही कूटस्थ चैतन्य है| यह योगमार्ग की उच्चतम साधनाओं में से है|
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(3) परमात्मा के मेरे सर्वप्रिय साकार रूप ...
भगवान नारायण का साकार रूप सर्वाधिक सम्मोहक है| पूरी सृष्टि उन्हीं में है और वे ही समस्त सृष्टि में व्याप्त है| ध्यान में वे एक विराट श्वेत ज्योति में परिवर्तित हो जाते हैं जिसमें समस्त सृष्टि और उससे भी परे जो कुछ भी है वह सब व्याप्त है| एक नीला और स्वर्णिम आवरण भी उन्हें घेरे रहता है|
वे ही परमशिव हैं और वे ही सर्वव्यापी परम चैतन्य हैं| सहस्त्रार से ऊपर समस्त सृष्टि में वे व्याप्त हैं| उन परम शिव की जटाओं से उनकी प्रेममयी कृपा और ज्ञानरूपी गंगा की निरंतर मुझ पर वर्षा होती रहती है|
दोनों के ही ध्यान में अक्षर ब्रह्म ओंकार की ध्वनी बराबर सुनाई देती है| दोनों एक ही हैं, उनमें कोई अंतर नहीं है, सिर्फ अभिव्यक्तियाँ ही पृथक हैं| यह उनकी ही इच्छा है कि किस रूप में वे अपना ध्यान करवाते हैं| कभी इन में और कभी इन से भी परे|
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ॐ तत्सत् | ॐ गुरु | ॐ ॐ ॐ ||
"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||

यह संसार वास्तव में दुखों का एक सागर है .....

January 22 at 9:08pm ·
 यह संसार वास्तव में दुखों का एक सागर है .....
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कैसा भी वातावरण हो, कैसी भी परिस्थितियाँ हों, उनमें रहते रहते हम उन्हीं के अभ्यस्त हो जाते हैं| नर्क में भी रहते रहते नर्क अच्छा लगने लगता है| इस संसार में रहते रहते संसार से भी राग होना स्वाभाविक है| संसार में सुख एक मृगतृष्णा मात्र ही है|

आज इसकी गहन अनुभूति हुई| सम्बन्ध में हमारी एक भाभीजी (हमारे ताऊजी की पुत्रवधू) का आज 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया| मेरा जन्म उनके विवाह के पश्चात हुआ था| हमारी विशाल पारिवारिक हवेली जहाँ मेरा जन्म, पालन-पोषण, पढाई लिखाई और विवाह हुआ था, वहीं जाना पड़ा| परिवार के सभी लोग एकत्र होकर वहाँ से दाह-संस्कार के लिए श्मसान में गए| बचपन और किशोरावस्था की सभी स्मृतियाँ ताजी हो गईं| इतना ही नहीं सभी उपस्थित और दिवंगत सम्बन्धियों के मन के विचार, भावनाएँ और पीड़ाएँ स्पष्ट अनुभूत हुईं| कौन कैसी पीड़ा में से निकला और कैसे कैसे संघर्ष किया, आदि सभी को स्पष्ट अनुभूत किया| श्मसान भूमि में दाह संस्कार के समय मैंने पंडित जी को बोलकर सबसे पुरुष-सूक्त का पाठ सस्वर जोर से बुलाकर करवाया|

चेतना में यह बिलकुल स्पष्ट हो गया कि वास्तव में यह संसार एक दुःख का सागर है जहाँ रहते रहते दुःख को ही हम सुख मानने लगते हैं| इस दुःख के सागर के पार जाने का प्रयास सभी को करते रहना चाहिए| सभी को सादर प्रणाम !
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव||
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||