भगवान, भक्ति और भक्त ...
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"ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
ज्ञानवैराग्योश्चैव षण्णाम् भग इतीरणा।।" –विष्णुपुराण ६ । ५ । ७४
सम्पूर्ण ऐश्वर्य धर्म, यश, श्री, ज्ञान, तथा वैराग्य यह छः सम्यक् पूर्ण होने पर `भग` कहे जाते हैं और इन छः की जिसमें पूर्णता है, वह भगवान है।
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(२) भक्ति और भक्त का अर्थ ---
नारद भक्ति सूत्रों के अनुसार भगवान के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है| अर्थात जिसमें भगवान के प्रति परम प्रेम है वह ही भक्त है|
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आचार्य वल्लभ की भागवत पर सुबोधिनी टीका तथा नारायण भट्ट की भक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है:
सवै पुंसां परो धर्मो यतो भक्ति रधोक्षजे। अहैतुक्य प्रतिहता ययात्मा संप्रसीदति।।
भगवान् में हेतुरहित, निष्काम एक निष्ठायुक्त, अनवरत प्रेम का नाम ही भक्ति है। यही पुरुषों का परम धर्म है। इसी से आत्मा प्रसन्न होती है।
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भगवान की भक्ति एक उपलब्धी है, कोई क्रिया नहीं|
भगवान की भक्ति अनेकानेक जन्मों के अत्यधिक शुभ कर्मों की परिणिति है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|
स्वाध्याय, सत्संग, साधना, सेवा और प्रभु चरणों में समर्पण का फल है --- भक्ति|
यह एक अवस्था है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|
सभी प्रभु प्रेमियों को मेरा प्रणाम और चरण वन्दन|
ॐ ॐ ॐ||
(२) भक्ति और भक्त का अर्थ ---
नारद भक्ति सूत्रों के अनुसार भगवान के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है| अर्थात जिसमें भगवान के प्रति परम प्रेम है वह ही भक्त है|
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आचार्य वल्लभ की भागवत पर सुबोधिनी टीका तथा नारायण भट्ट की भक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है:
सवै पुंसां परो धर्मो यतो भक्ति रधोक्षजे। अहैतुक्य प्रतिहता ययात्मा संप्रसीदति।।
भगवान् में हेतुरहित, निष्काम एक निष्ठायुक्त, अनवरत प्रेम का नाम ही भक्ति है। यही पुरुषों का परम धर्म है। इसी से आत्मा प्रसन्न होती है।
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भगवान की भक्ति एक उपलब्धी है, कोई क्रिया नहीं|
भगवान की भक्ति अनेकानेक जन्मों के अत्यधिक शुभ कर्मों की परिणिति है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|
स्वाध्याय, सत्संग, साधना, सेवा और प्रभु चरणों में समर्पण का फल है --- भक्ति|
यह एक अवस्था है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|
सभी प्रभु प्रेमियों को मेरा प्रणाम और चरण वन्दन|
ॐ ॐ ॐ||
"मिले न रघुपति बिन अनुरागा, किए जोग जप ताप विरागा |"
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बिना प्रेम किये भगवन नहीं मिलते, चाहे कितना भी योग, जप, तप और वैराग्य हो|