Thursday, 26 January 2017

शिव बनकर शिव की आराधना करो .....

श्रुति भगवती कहती हैं ...... ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ यानि शिव बनकर शिव की आराधना करो।
पर जीवन बहुत ही अल्प है, और करना बहुत शेष है ......... इस अल्प काल में अब कुछ भी करना संभव नहीं है, अतः सारा दायित्व, यहाँ तक कि 'साधना' व 'उपासना' का दायित्व भी बापस प्रेममयी जगन्माता को सौंप दिया है, जो उन्होंने स्वीकार भी कर लिया है| अब शिवरूप में साधक, साधना और साध्य सब कुछ वे ही बन गयी हैं|
.
जो समस्त सृष्टि का संचालन कर रही हैं उनके लिए इस अकिंचन का समर्पण स्वीकार कर उसका भार उठा लेना उनकी महिमा ही है| यह अकिंचन तो उनका एक उपकरण मात्र रह गया है|
.
जीवन का मूल उद्देश्य है ----- शिवत्व की प्राप्ति| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस का उत्तर है --- कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव का ध्यान| यह किसी कामना की पूर्ती के लिए नहीं है बल्कि कामनाओं के नाश के लिए है|
.
आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है --- कामना और इच्छा की समाप्ति|
.
"शिव" का अर्थ ----
शिवपुराण में उल्लेख है ..... जिससे जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में संव्याप्त है, वह वेद में शिव रूप कहे गये है |
जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, उन्हें ही शिव कहा जाता है |
अमरकोष के अनुसार 'शिव' शब्द का अर्थ मंगल एवं कल्याण होता है |
विश्वकोष में भी शिव शब्द का प्रयोग मोक्ष में, वेद में और सुख के प्रयोजन में किया गया है | अतः शिव का अर्थ हुआ आनन्द, परम मंगल और परम कल्याण| जिसे सब चाहते हैं और जो सबका कल्याण करने वाला है वही ‘शिव’ है |
.
शिवोहं शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.३, ४, वि.स.२०७२, 27 जनवरी 2016

No comments:

Post a Comment