Thursday 26 January 2017

यह संसार वास्तव में दुखों का एक सागर है .....

January 22 at 9:08pm ·
 यह संसार वास्तव में दुखों का एक सागर है .....
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कैसा भी वातावरण हो, कैसी भी परिस्थितियाँ हों, उनमें रहते रहते हम उन्हीं के अभ्यस्त हो जाते हैं| नर्क में भी रहते रहते नर्क अच्छा लगने लगता है| इस संसार में रहते रहते संसार से भी राग होना स्वाभाविक है| संसार में सुख एक मृगतृष्णा मात्र ही है|

आज इसकी गहन अनुभूति हुई| सम्बन्ध में हमारी एक भाभीजी (हमारे ताऊजी की पुत्रवधू) का आज 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया| मेरा जन्म उनके विवाह के पश्चात हुआ था| हमारी विशाल पारिवारिक हवेली जहाँ मेरा जन्म, पालन-पोषण, पढाई लिखाई और विवाह हुआ था, वहीं जाना पड़ा| परिवार के सभी लोग एकत्र होकर वहाँ से दाह-संस्कार के लिए श्मसान में गए| बचपन और किशोरावस्था की सभी स्मृतियाँ ताजी हो गईं| इतना ही नहीं सभी उपस्थित और दिवंगत सम्बन्धियों के मन के विचार, भावनाएँ और पीड़ाएँ स्पष्ट अनुभूत हुईं| कौन कैसी पीड़ा में से निकला और कैसे कैसे संघर्ष किया, आदि सभी को स्पष्ट अनुभूत किया| श्मसान भूमि में दाह संस्कार के समय मैंने पंडित जी को बोलकर सबसे पुरुष-सूक्त का पाठ सस्वर जोर से बुलाकर करवाया|

चेतना में यह बिलकुल स्पष्ट हो गया कि वास्तव में यह संसार एक दुःख का सागर है जहाँ रहते रहते दुःख को ही हम सुख मानने लगते हैं| इस दुःख के सागर के पार जाने का प्रयास सभी को करते रहना चाहिए| सभी को सादर प्रणाम !
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव||
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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