कर्ता कौन है और भोक्ता कौन है ? ......
इस सारी सृष्टि का उद्भव परमात्मा के संकल्प से हुआ है| और वे ही है जो सब रूपों में स्वयं को व्यक्त कर रहे है| कर्ता भी वे है और भोक्ता भी वे ही है|
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वे स्वयं ही अपनी सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार के कर्ता है| जीवों की रचना भी उन्हीं के संकल्प से हुई है| सारे कर्मों के कर्ता भी वे ही है और भोक्ता भी वे ही है| सृष्टि का उद्देष्य ही यह है कि आप अपनी सर्वश्रेष्ठ सम्भावना को व्यक्त कर पुनश्चः उन्हीं की चेतना में जा मिलें| यह उन्हीं की माया है जो अहंकार का सृजन कर आपको उन से पृथक कर रही है| ये संसार के सारे दु:ख और कष्ट भी इसी लिए हैं कि आप परमात्मा से अहंकारवश पृथक है और इनसे मुक्ति भी परमात्मा में पूर्ण समर्पण कर के ही मिल सकती है|
भगवान के पास सब कुछ है पर एक ऐसी भी चीज है जो आपके पास तो है पर उन के पास नहीं है क्योंकि उन्होंने वह चीज अपने पास रखे बिना सारी की सारी आप को ही दे रखी है| भगवान भी उसको बापस पाने के लिए तरसते हैं| उसके बिना भगवान भी दु:खी हैं| वह सिर्फ आप ही उन्हें दे सकते हैं, कोई अन्य नहीं| और वह है आपका अहैतुकी परम प्रेम|
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भगवान ने आपको सब कुछ दिया है, आप भगवान से सब कुछ माँगते हो| पर क्या आप भगवान को वह चीज नहीं दे सकते जो वे आपसे बापस चाहते हैं?????
भगवान भी उसके लिए तरस रहे हैं| वे भी सोचते हैं कि कभी तो कोई तो उनकी संतान उनको प्रेम करेगी| वे भी आपके प्रेम के बिना दु:खी हैं चाहे वे स्वयं सच्चिदानंद हों|
भगवन आपसे प्रसन्न तभी होंगे जब आप अपना पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम उन्हें दे दोगे| अन्य कोई मार्ग नहीं है उन को प्रसन्न करने का|
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कृपया इस पर विचार करें| धन्यवाद|
ॐ तत्सत्|
इस सारी सृष्टि का उद्भव परमात्मा के संकल्प से हुआ है| और वे ही है जो सब रूपों में स्वयं को व्यक्त कर रहे है| कर्ता भी वे है और भोक्ता भी वे ही है|
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वे स्वयं ही अपनी सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार के कर्ता है| जीवों की रचना भी उन्हीं के संकल्प से हुई है| सारे कर्मों के कर्ता भी वे ही है और भोक्ता भी वे ही है| सृष्टि का उद्देष्य ही यह है कि आप अपनी सर्वश्रेष्ठ सम्भावना को व्यक्त कर पुनश्चः उन्हीं की चेतना में जा मिलें| यह उन्हीं की माया है जो अहंकार का सृजन कर आपको उन से पृथक कर रही है| ये संसार के सारे दु:ख और कष्ट भी इसी लिए हैं कि आप परमात्मा से अहंकारवश पृथक है और इनसे मुक्ति भी परमात्मा में पूर्ण समर्पण कर के ही मिल सकती है|
भगवान के पास सब कुछ है पर एक ऐसी भी चीज है जो आपके पास तो है पर उन के पास नहीं है क्योंकि उन्होंने वह चीज अपने पास रखे बिना सारी की सारी आप को ही दे रखी है| भगवान भी उसको बापस पाने के लिए तरसते हैं| उसके बिना भगवान भी दु:खी हैं| वह सिर्फ आप ही उन्हें दे सकते हैं, कोई अन्य नहीं| और वह है आपका अहैतुकी परम प्रेम|
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भगवान ने आपको सब कुछ दिया है, आप भगवान से सब कुछ माँगते हो| पर क्या आप भगवान को वह चीज नहीं दे सकते जो वे आपसे बापस चाहते हैं?????
भगवान भी उसके लिए तरस रहे हैं| वे भी सोचते हैं कि कभी तो कोई तो उनकी संतान उनको प्रेम करेगी| वे भी आपके प्रेम के बिना दु:खी हैं चाहे वे स्वयं सच्चिदानंद हों|
भगवन आपसे प्रसन्न तभी होंगे जब आप अपना पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम उन्हें दे दोगे| अन्य कोई मार्ग नहीं है उन को प्रसन्न करने का|
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कृपया इस पर विचार करें| धन्यवाद|
ॐ तत्सत्|
भगवान हैं, यहीं हैं, अभी हैं, और सदा ही रहेंगे| वे निरंतर हमारे साथ हैं|
ReplyDeleteसारी सृष्टि ही परमात्मा से अभिन्न है , हम भी परमात्मा से अभिन्न हैं|
भगवान ही है जो "हम" बन गए हैं| भगवान ही हैं जो "मैं" बन गया हूँ| हम यह देह नहीं बल्कि एक सर्वव्यापी शाश्वत आत्मा हैं, भगवान के अंश हैं और भगवान के अमृत पुत्र हैं|
अयमात्मा ब्रह्म | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||