जिसे आप ढूँढ रहे हो, जिसके लिए आप व्याकुल हो, जिसे पाने के लिए आपके
ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जल रही है, जिसे पाने के लिए एक अतृप्त प्यास ने
आपको व्याकुल कर रखा है, .............. वह तो आप स्वयं ही हो|
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उसे देखने के लिए, उसे अनुभूत करने के लिए और उसे जानने या समझने के लिए कुछ तो दूरी होनी चाहिए| पर वह तो निकटतम से भी निकट है, अतः उसका कुछ भी आभास नहीं हो रहा है| वह आप स्वयं ही हो|
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उस स्वयं को, उस आत्मतत्व को जानना ही परमात्मा को जानना है| ॐ ॐ ॐ ||
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उसे देखने के लिए, उसे अनुभूत करने के लिए और उसे जानने या समझने के लिए कुछ तो दूरी होनी चाहिए| पर वह तो निकटतम से भी निकट है, अतः उसका कुछ भी आभास नहीं हो रहा है| वह आप स्वयं ही हो|
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उस स्वयं को, उस आत्मतत्व को जानना ही परमात्मा को जानना है| ॐ ॐ ॐ ||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.१ वि.स.२०७२, 24 जनवरी 2016
कृपा शंकर
माघ कृ.१ वि.स.२०७२, 24 जनवरी 2016
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