Tuesday, 24 January 2017

ठाकुर जी (भगवान श्रीकृष्ण) बाँके-बिहारी क्यों हैं ? .......

वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात्
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् कृष्णात परम किमपि तत्व महम नजानि...
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ठाकुर जी (भगवान श्रीकृष्ण) बाँके-बिहारी क्यों हैं ? .......
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आप में से अधिकाँश श्रद्धालु वृन्दावन तो गए ही होंगे, और वहाँ बाँके-बिहारी जी के दर्शन भी किये होंगे| अन्यत्र भी बिहारी जी के सभी मंदिरों में ऐसा ही विग्रह है| ठाकुर जी ने स्वयं की देह को तीन स्थानों से बाँका यानी आड़ा-टेढ़ा तिरछा कर रखा है| इसे त्रिभंग मुद्रा कहते हैं| कुछ लोग इसे त्रिभंग-मुरारी मुद्रा भी कहते हैं| इस त्रिभंग मुद्रा का बहुत गहरा आध्यात्मिक रहस्य है जिसे हर कोई नहीं समझ सकता| कुछ इस विषय पर एक अति लघु चर्चा करेंगे|
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भक्तों के लिए ठाकुर जी इतने सुन्दर हैं कि एक बार भी जो इनके दर्शन करता हैं उसका ह्रदय चोरी हो जाता है, यानि ठाकुर जी स्वयं उसका ह्रदय चुराकर उसमें बिराजमान हो जाते हैं| ठाकुर जी एक बार ह्रदय में आ गए तो बाँके हो जाते हैं ........ फिर कभी बाहर नहीं निकलते| भक्तों के लिए वे इसीलिए बाँके बिहारी हैं|
फिर तो उनके प्रेम का जादू ही सिर पर चढ़कर बोलता है|
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योगियों के लिए यह अज्ञान की तीन ग्रंथियों के भंग करने यानि भेदन करने के लिए है| एक अति उन्नत योगमार्ग के साधक द्वादशाक्षरी भागवत मन्त्र का जाप एक अति गोपनीय विधि से सुषुम्ना नाड़ी के षटचक्रों में और सहस्त्रार तक करते हैं| इस विधि में ब्रह्मग्रन्थी, विष्णुग्रंथी और रुद्रग्रंथी (क्रमशः मूलाधार, अनाहत और आज्ञाचक्र) पर प्रहार होता है जो इन अज्ञान ग्रंथियों के भेदन के लिए है|
हाथों में बांसुरी है जिसके छओं छिद्र सुषुम्ना के षटचक्र है और सातवाँ छिद्र जिससे फूँक मार रहे हैं वह सहस्त्रार है| इस बांसुरी से ओंकार की ध्वनी निकल रही है जिससे सृष्टि का सृजन हो रहा है| योगी साधक उस ओंकार पर ही ध्यान करते हैं और उसी में लय हो कर ब्रह्ममय हो जाते हैं| यह योगमार्ग की उच्चतम साधना है|
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सार की बात यह हैं कि यह भगवान श्रीकृष्ण का सुन्दरतम विग्रह है जो निरंतर ह्रदय में रहता है| योगमार्ग के साधकों के लिए उनका ह्रदय इस देह का भौतिक ह्रदय नहीं बल्कि कूटस्थ (आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य दिखाई देने वाली ज्योति और नाद) होता है जहाँ उनकी चेतना घनीभूत हो जाती है| उस चेतना में रहना ही कूटस्थ चैतन्य है|
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बाँके बिहारी, तेरी छटा न्यारी| तुम्हारी जय हो| जब से तुम मेरे कूटस्थ ह्रदय में आये हो, यह ह्रदय तुम्हारा ही स्थायी निवास हो गया है| बस अब तुम ही तुम रहो| जय हो, जय हो, जय हो, तुम्हारी जय हो||
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अयमात्मा ब्रह्म | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.१ वि.स.२०७२, 25 जनवरी 2016

2 comments:

  1. बाँके बिहारी की बाँकी छटा है , कपटी केहिया में समात ही नाहि । बाँकी सी चितवन, बाँकी कटि है , युगल चरणन की भी बाँकी छवि है। साँठ - गाँठ करि सरण जो आवै उनके हिया से कभी निकसत नाहिं ।।

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  2. भगवान बाँके-बिहारी ---
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    भगवान श्रीकृष्ण की हाथ में बांसुरी बजाते हुए, दाहिने पैर पर भार डालकर बायाँ पैर आगे टिका कर, देह को तीन स्थानों से मोड़ कर खड़े होने की जो मुद्रा है वह त्रिभंग मुद्रा है। ऐसी मुद्रा में भगवान जैसे खड़े हैं, उन्हें "बाँके-बिहारी" कहते हैं। वृंदावन में मुख्य मंदिर ही भगवान बाँके-बिहारी का है।
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    यह मुद्रा -- योग साधना द्वारा ब्रह्मग्रंथि (आज्ञाचक्र), विष्णुग्रंथि (अनाहतचक्र) और रूद्रग्रंथि (मूलाधारचक्र) -- इन तीनों अज्ञान ग्रंथियों के भेदन का प्रतीक है, जो कुंडलिनी-जागरण और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
    श्रीमद्भागवत (१/२/२१) और मुन्डकोपनिषद (२/२/८) में इसकी चर्चा है।
    "भिद्यते हृदयग्रंथिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया।
    क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे॥" (मुन्डकोपनिषद : २/२/८)
    विष्णु ग्रंथि का भेदन होने से सब संशय दूर हो जाते हैं।
    दुर्गापूजा में असुर वध के माध्यम से उसी हृदय ग्रंथि भेद की क्रिया को ही रूपक द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
    इसी प्रकार रूद्रग्रंथि और ब्रह्मग्रन्थी भेदन की महिमा शास्त्रों में भरी पडी है। यह अत्यंत दुष्कर कार्य है, इससे पशुवृत्ति पर नियंत्रण होता है। ज्ञानसंकलिनी तंत्र के अनुसार ऐसा साधक ऊर्ध्वरेता बनता है।
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    यह विधि एक गुरु प्रदत्त विद्या है जो गुरु द्वारा ही शिष्य को प्रदान की जा सकती है। इसे गोपनीय इसलिए रखा गया है क्योंकि इसकी साधना करने से सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है जो पलटवार कर के साधक को विक्षिप्त भी बना सकती हैं। यम-नियमों का पालन इसमें आवश्यक है, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि होने की संभावना अधिक है।
    आप सब के ह्रदय में स्थित भगवान वासुदेव को नमन !!
    ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    १५ नवंबर २०२४

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