Wednesday 20 April 2022

सबसे बड़ी सेवा और परोपकार ---

 

यदि हम एक ब्रह्मशक्ति को जागृत कर स्वयं में अवतरित कर सकें तो यह सबसे बड़ी सेवा और परोपकार का कार्य होगा, जो हम इस जन्म में कर सकते हैं। लेकिन यह कार्य इतना सरल नहीं है। ब्रहमतेज को सहन करने की क्षमता भी स्वयं में होनी चाहिए, जिसके लिए मनसा, वाचा, कर्मणा -- ब्रह्मचर्य का पालन, नित्य-नियमित उपासना और भगवान की परम कृपा चाहिए। इस तरह के तेजस्वी महापुरुष भारत में अवतरित होंगे, तभी भारत का और धर्म का उद्धार होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०२२
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हे परमशिव, मेरी हर आती-जाती सांस के पीछे आप ही हैं। मेरे कूटस्थ में आप ही निरंतर बिराजमान हैं। मैं आपके ही मन की एक कल्पना मात्र हूँ। मुझ अकिंचन को कुछ भी और आता-जाता नहीं है। आपके अतिरिक्त मैं किसी भी अन्य को नहीं जानता। किसी भी तरह की कोई उपासना करना अब मेरे लिए संभव नहीं है। जो कुछ भी करना है, वह आप ही करेंगे। इस देह के अंत समय में याद भी मुझे आप ही करेंगे। मेरे कल्याण की ज़िम्मेदारी अब आपकी है। आपको मेरा उद्धार करना ही पड़ेगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०२२

"हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारा तमोगुण है" ---

 "हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारा तमोगुण है" ---

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भगवान श्रीकृष्ण ने यह बात बड़े स्पष्ट शब्दों द्वारा गीता में समझाई है। हालाँकि आध्यात्मिक प्रगति के लिए रजोगुण से भी ऊपर उठना पड़ता है। तमोगुण प्रधान व्यक्ति तो गीता को कभी समझ ही नहीं सकता। हमारी मूढ़ता, अज्ञान और दुःखों का एकमात्र कारण हमारा तमोगुण है।
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तमोगुण से मुक्त होने का एक ही उपाय है, और वह है -- आहारशुद्धि और सत्संग। अन्य कोई उपाय नहीं है। आप क्या आहार ग्रहण करते हैं, और किन लोगों के साथ रहते हैं? इस विषय पर सदैव सतर्क रहें। उच्च कोटि के महात्माओं का सत्संग करें, और अच्छा साहित्य पढ़ें। निश्चित रूप से लाभ होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
७ अप्रेल २०२२

अब भगवान का नाम लेकर छलांग लगा ली है, आर या पार ---

 अब भगवान का नाम लेकर छलांग लगा ली है-- आर या पार। पार पहुँच गए तो भगवती सीता जी के दर्शन हो जाएंगे। नहीं पहुंचे तो भगवान का नाम लेते हुए उन्हीं में विलीन हो जाएंगे। बीच में खड़े नहीं रह सकते।

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मैं बातें सिर्फ ज्ञान और भक्ति की ही करता हूँ, क्योंकि और कुछ मुझे आता-जाता भी नहीं है। निर्बल के बल राम। बीच में कभी कभी वेदान्त-वासना जागृत हो जाती है। अब किसी से कोई बात ही नहीं करनी है। भगवान ही एकमात्र सत्य हैं, बाकी सब मिथ्या है। किसी की भगवान में रुचि ही नहीं है। सब को भगवान का सामान चाहिए, भगवान से किसी को कोई मतलब नहीं है।
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मुझे निमित्त बनाकर भगवान स्वयं अपनी भक्ति और उपासना करते रहें। मेरा सब कुछ बापस ले लें, मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे भी अपने साथ कर लें। उनकी दुनियाँ से मन भर गया है।
ॐ ॐ ॐ !!
७ अप्रेल २०२२
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पुनश्च:---

यह भगवान को प्रसन्न करने वाली बात कुछ जँचती नहीं है। प्रसन्नता और अप्रसन्नता -- उनका अपना मामला है, मुझे इससे क्या?
कभी मेरा साथ न छोड़ें, बस और कुछ नहीं चाहिए।
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कल अचानक ही मन में एक भाव उठा,और किसी से बात करने की इच्छा हुई, वह भी किसी ऐसे व्यक्ति से जो सौ काम छोड़ कर पहले मेरी बात सुने। वृंदावन के एक महात्मा जी को फोन लगाया, जो बड़े प्रसन्न हुये और पूछा कि फोन करने का क्या उद्देश्य है। मैंने कहा कि आज भगवान से लड़ाई करने का मानस हो रहा है। भगवान को कुछ बुरा-भला भी कहना चाहता हूँ, उनकी निंदा भी करना चाहता हूँ, और उनसे उनकी शिकायत भी करना चाहता हूँ, लेकिन किन शब्दों का प्रयोग करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। भगवान के बारे में सोचता हूँ तो वाणी मौन हो जाती है। उनके सिवाय कोई अन्य रहता भी नहीं है।
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किसी परिणाम पर पहुँच नहीं पाये, किसी के पास मेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। और भी अनेक बाते हैं, जिन्हें लिख नहीं सकता, और हर किसी के साथ बात भी नहीं कर सकता।

भारत के बिके हुए टीवी समाचार चैनलों की पीड़ा ---

 भारत के बिके हुए टीवी समाचार चैनलों की पीड़ा ---

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(१) एक बात की तो बधाई देना चाहता हूँ कि भारत की लगभग सारे टीवी समाचार चैनलों ने झूठ बोलने के मामले में तो बीबीसी को भी पछाड़ दिया है। भारत के सारे टीवी समाचार चैनल भारत की जनता को मूर्ख समझते हैं इसलिए पिछले ४५ दिनों से लगभग हर चैनल चीख चीख कर कह रही है कि अगले २४ घंटों में विश्वयुद्ध होगा, और अणुबम फटेंगे। लेकिन न तो विश्वयुद्ध आरंभ हुआ है, और न ही कहीं कोई अणुबम फटा है। पूरे डेढ़ महीने बीत गए हैं।
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रूस-उकराइन युद्ध पर हमारे सारे समाचार चैनल हमें बीबीसी की जूठन परोस रहे हैं। इस विषय पर वे ही समाचार दिये जा रहे हैं जिन्हें बोलने का निर्देश उन्हें अमेरिकी गुप्तचर संस्थाओं से मिलता है। डॉलर की कमाई कौन खोना चाहता है?
पश्चिमी बंगाल में, और राजस्थान के करौली में तो ये पत्रकार नहीं जा पाते, लेकिन सीधे यूक्रेन पहुँच जाते हैं, जहाँ से सारे रूस विरोधी समाचार दिये जाते हैं ताकि भारत के लोगों के मन में रूस विरोधी भावना भड़के।
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टीवी चैनलों की दूसरी पीड़ा यह है कि चैनलों पर होने वाली बहसों में जब भी सेना और विदेशसेवा के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया जाता है, तो वे कभी भी पत्रकारों के झूठ की हाँ में हाँ नहीं मिलाते। वे सत्य बात बोलते हैं जो झेलेंस्की और उकराइन के विरोध में होती है। उस समय इन पत्रकारों का चेहरा देखने लायक होता है।
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जब सोवियत संघ का और वारसा पेक्ट का विघटन हो चुका है तब नाटो का भी विघटन हो जाना चाहिए था। लेकिन तृतीय विश्व के देशों को डरा-धमका कर, वहाँ अपनी मनचाही सरकारें स्थापित करवा कर उन्हें लूटने के उद्देश्य से इस संगठन को चालू रखा हुआ है। अमेरिका रूस पर भूल कर भी कभी आक्रमण नहीं करेगा, क्योंकि रूस की हाइपरसोनिक मिसाइल Kh-47M2 Kinzhal की कोई काट अमेरिका के पास नहीं है। यह ध्वनि से १२ गुणा अधिक की गति से चलती है और जार बम को ले जाने में समर्थ है, जो ५०० लाख टन टीएनटी के बराबर है, यानि हिरोशिमा पर गिराए गए अणुबम से यह ३३३३ गुणा अधिक शक्तिशाली। रूस के पास अणुबमों की संख्या भी अधिक है, और उन बमों को लक्ष्य तक पहुंचाने की तकनीक में भी वह अमेरिका से बहुत आगे है। यदि अमेरिका ने गलती से कोई अणुबम रूस पर गिरा भी दिया तो अगले कुछ क्षणों में पूरा अमेरिका राख़ के ढेर में बदल जाएगा। यदि विश्वयुद्ध छिड़ गया तो रूस अथवा अन्य किसी देश को नष्ट करने से पहले ही अमरीका स्वयं भस्म हो जायगा।
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बुचा नरसंहार की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। ३१ मार्च को रूसी सेना बुचा से बापस चली गई थी। तब तो वहाँ का जनजीवन सामान्य था। उस समय तो सड़कों पर कोई लाश नहीं थी। २ अप्रैल को सैकड़ों लाशों के चित्र सड़कों पर दिखाये गए। भारत के पत्रकार भी वहाँ गए। लेकिन तब तक लाशों को बुचा के चर्च की क्रबगाह में बिना ईसाई रस्म के दफनाया जा चुका था। बहुत बड़ा झूठा प्रचार किया जा रहा है। उन लाशों की सही जाँच भी नहीं होने दी गई। मुझे लगता है कि यूक्रेन में रहने वाले रूसी भाषियों का नर-संहार कर के उनकी लाशों का वीडियो बनाया गया था।
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उकराइन की अझोव-बटालियन नाम की नात्सी गुंडों की फौज ने मारयूपोल में व उसके आसपास जो रूसियों का नर-संहार किया है, वह यदि अमेरिका की जनता देख ले तो वह वाइडेन को उखाड़ फेंकेगी। इसलिए रूसी मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन सारे हत्याकांडों के दोषी हैं तो सिर्फ झेलेंस्की और वाइडेन।
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आप ने बड़े धैर्य से मेरे विचारों को पढ़ा, उसके लिए मैं आपका ऋणी हूँ। आप सब महान आत्माओं को नमन !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
६ अप्रेल २०२२

"निम्न प्रकृति" पर विजय पाये बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते ---

"निम्न प्रकृति" पर विजय पाये बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते।

निम्न प्रकृति है -- हमारे विचारों व भावों में तमोगुण की प्रधानता।
तमोगुण स्वयं को मोह, प्रमाद, दीर्घसूत्रता, लोभ व अहंकार आदि के रूप में व्यक्त करता है।
मोह है -- इंद्रीय सुखों के प्रति आकर्षण, और सांसारिक सम्बन्धों के प्रति मिथ्या कर्तव्य बोध।
प्रमाद है -- आलस्य, जिसे भगवान सनत्कुुमार ने साक्षात मृत्यु बताया है।
दीर्घसूत्रता है -- शुभ कार्य को आगे टालने की प्रवृति।
मुक्त होने का उपाय -- भगवान श्री कृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय के ४५ वें श्लोक में बताया है जो गुणातीत होने को कहता है| गुणातीत होने के लिए गहन व दीर्घ साधना करनी पड़ती है।।
|| शुभ कामनाएँ व नमन || ॐ स्वस्ति !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
६ अप्रेल २०२२

जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है ---

 एक बहुत पुरानी स्मृति --- अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के एक प्रायः निर्जन टापू पर घूमते हुए एक बार एक अति विशाल और बहुत ही ऊँचे वृक्ष को देखा, जिस पर एक लता भी चढ़ी हुई थी| वृक्ष की जितनी ऊँचाई थी, लिपटते-लिपटते वहीं तक वह लता भी पहुँच गई थी| जीवन में पहली बार ऐसे उस दृश्य को देखकर परमात्मा और जीवात्मा की याद आ गई, और एक भाव-समाधि लग गई| वह बड़ा ही शानदार दृश्य था जहाँ मुझे परमात्मा की अनुभूति हुई| प्रभु को समर्पित होने से बड़ी कोई उपलब्धी नहीं है|

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जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है| परमात्मा को हम कितना भी भुलायें, पर वे हमें कभी भी नहीं भूलते| सदा याद करते ही रहते हैं| उन्हें भूलने का प्रयास भी करते हैं तो वे और भी अधिक याद आते हैं| वास्तव में वे स्वयं ही हमें याद करते हैं| कभी याद न आए तो मान लेना कि --
"हम में ही न थी कोई बात, याद न तुम को आ सके."
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ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
६ अप्रेल २०२२

भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे, ताकि डाकुओं से अपनी रक्षा करने में भारत सदा समर्थ हो ---

 भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे, ताकि डाकुओं से अपनी रक्षा करने में भारत सदा समर्थ हो ---

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रूस-उकराइन युद्ध -- अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा एक षड़यंत्र के अंतर्गत रूस को नष्ट करने के उद्देश्य से आरंभ करवाया गया था। लेकिन रूस की दृढ़ता से दाव उल्टा पड़ रहा है। इस युद्ध से विश्व को एक बड़ा लाभ हुआ है। विश्व की आर्थिक व्यवस्था में निश्चित रूप से अब परिवर्तन आने आरंभ हो जाएँगे। तथाकथित विकसित देशों के वर्चस्व का अंत भी आरंभ हो जाएगा।
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आधुनिक साम्राज्यवाद में अब बलपूर्वक दूसरे देश पर आधिपत्य नहीं जमाया जाता, बल्कि वहाँ मनचाही सरकार बनवायी जाती है, और उस देश के प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था पर शिकंजा कसकर वहाँ अपनी पूँजी लगाकर मुनाफा कमाया जाता है। सन १९४७ से सन २०१४ तक भारत को अमेरिका, ब्रिटेन व उनके सहयोगी देशों द्वारा इसी तरह लूटा जा रहा था। अमेरिका अकेला ही लूट-खसोट नहीं कर सकता था, इसलिए उसने ब्रिटेन व अन्य कुछ यूरोपीय देशों को भी अपने साथ मिला लिया। उनकी यही व्यवस्था पूंजीवाद कहलाती है।
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पश्चिमी पूंजीवाद का मुख्य शत्रु कम्युनिज्म था जिस कारण सभी प्रमुख पूँजीवादी देशों में परस्पर आर्थिक एवं सैन्य सहयोग आवश्यक था। एक ओर कम्युनिज्म को नष्ट करना या घेर कर रखना एवं दूसरी ओर तृतीय विश्व को चालाकी से लूटते रहना -- पूंजीवाद का लक्ष्य है।
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मैंने अनौपचारिक शौकिया रूप से प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के ऊपर लिखे गए आसानी से उपलब्ध साहित्य को अपनी बौद्धिक संतुष्टि के लिए खूब पढ़ा है। रूसी लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकें भी खूब पढ़ी हैं। मार्क्सवाद के विरुद्ध लिखा गया साहित्य भी खूब पढ़ा है। अब तो आयु अधिक होने के कारण बहुत कुछ भूल चुका हूँ, अतः स्मृति में बहुत कम रह गया है।
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मेरा यह मानना है कि ब्रिटेन से बाहर विश्व में मार्क्सवाद -- ब्रिटेन द्वारा ही कुटिल व गुप्त रूप से फैलाया गया था। रूस में मार्क्सवाद और लेनिन को स्थापित करने के पीछे भी ब्रिटेन का ही हाथ था। लेकिन वहाँ ब्रिटेन का यह दाव उल्टा पड़ गया।
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द्वितीय विश्वयुद्ध भी गुप्त रूप से ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा ही एक कुटिल षड़यंत्र के द्वारा आरंभ करवाया गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध का मुख्य उद्देश्य था रूस का पूर्ण विनाश। रूस की रक्षा वहाँ की भयानक ठंड ने ही सदा की है। नेपोलियन ने भी रूस को नष्ट करने का संकल्प किया था लेकिन उसकी सेना वहाँ की ठंड नहीं सहन कर पाई और उसके सिपाही बीमार होकर मरने लगे। उसे मजबूर होकर बापस भागना पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने जब रूस पर आक्रमण किया तब रूस ने यही योजना बनाई थी कि कैसे भी सर्दी पड़ने तक जर्मनी को स्टालिनग्राद में रोक के रखो। फिर सर्दी उनसे सहन नहीं होगी और वे मारे जाएँगे। अंततः यही हुआ। जर्मनी के सिपाहियों के शरीर महीनों तक नहीं नहाने के कारण जूओं से भर गए। जब कोई सिपाही मरता तो उसके शरीर की हजारों जूएं उतर कर जीवित सिपाहियों पर चढ़ जातीं। स्तालिनग्राद की भयंकर सर्दी से जर्मनी की सेना मरने और हारने लगीं, और कूर्स्क में तो पूरी तरह हार गईं।
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जब यह स्पष्ट हो गया कि रूस की विजय और जर्मनी की पराजय निश्चित है तो कहीं जर्मनी पर अकेली रूसी सेना अधिकार न कर ले, तो ४ जुलाई १९४४ को अमेरिका व ब्रिटिश सेनाओं ने यूरोप की मुख्यभूमि पर पाँव रखे। अमेरिका ने तो द्वितीय विश्वयुद्ध में भी खूब धन कमाया। जर्मनी को लड़ने के लिए सारा ईंधन तो अमेरिकी कंपनियाँ ही बेचती थीं, जिसके बिना जर्मनी लड़ ही नहीं सकता था। जापान को भी युद्ध के लिए ईंधन अमेरिकी कंपनियाँ ही बेचती थीं। अमेरिका लड़ाई लड़ भी रहा था और साथ साथ पूंजी भी कमा रहा था। जापान को अन्य देशों से मुक्त व्यापार करने से अमेरिका रोकता था, इसीलिए जापान ने अमेरिका पर आक्रमण किया था। अन्य कोई कारण नहीं था।
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यूरोप के देश और अब यूरोपीय लोगों से भरा हुआ अमेरिका -- ये डाकुओं के ही देश है। अमेरिका इस समय सबसे बड़ा डाकू है। पहले ब्रिटेन सबसे बड़ा डाकू हुआ करता था, जो अब दो नंबर पर है। इनका सबसे बड़ा शिकार भारत रहा है, फिर भारत के बाद चीन, और फिर अन्य देश। अमेरिका का तो राष्ट्रपति भी कोई डाकू ही बन सकता है। यह IMF भी अमेरिकी डाकुओं का अड्डा है। संयुक्त राष्ट्र संघ पर भी एक तरह से अमेरिका का ही वर्चस्व है। नकली दर वाले डॉलर द्वारा भारत को अमेरिका द्वारा लूटा जा रहा है।
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भारत इन डाकुओं से अपनी रक्षा करने में समर्थ हो। भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे।
वंदे मातरम्!! भारत माता की जय!!
४ अप्रेल २०२२

पूरे विश्व में सुख-शांति-भाईचारा और प्रेम कैसे स्थापित हो? ---

 पूरे विश्व में सुख-शांति-भाईचारा और प्रेम कैसे स्थापित हो? ---

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मैं अपने जीवन के पूरे अनुभव से यह बात कह रहा हूँ, जिसे एक न एक दिन पूरी मनुष्य जाति को मानना ही पड़ेगा, अन्यथा मनुष्य जाति में कभी कोई सुख शांति प्रेम और भाईचारा स्थापित नहीं हो सकता; और मनुष्य जाति नष्ट हो जाएगी।
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यह विज्ञान का युग है, हर चीज और हर विचार पर वैज्ञानिक शोध होते हैं, जिनके परिणामों को पूरा विश्व मानता है। विश्व शांति के लिए निष्पक्ष वैज्ञानिक दृष्टि से निम्न विषयों पर पूरे विश्व में वैज्ञानिक शोध होने चाहियें ---
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(१) मृत्यु के पश्चात हम कहाँ जाते हैं? और हमारे साथ क्या होता है?
(२) विश्व में इतने सारे रिलीजन और मज़हब हैं। उनकी कौन सी उपासना पद्धति हमें आनंद प्रदान करती है?
(३) क्या हिंदुओं का आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों व पुनर्जन्म का सिद्धान्त सही है?
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प्रत्येक मनुष्य को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने विवेक से तय करे कि उसका मत, सम्प्रदाय या मज़हब कौन सा हो। यह आवश्यक नहीं हो कि जिस माँ-बाप के घर जन्म लिया हो, उनका मज़हब ही स्वयं का भी हो। यह निज विवेक से चुनने का अधिकार सभी को प्राप्त होना चाहिए। बलात् किसी भी लालच, भय या आतंक से किसी पर अपना मत थोपने की स्वतन्त्रता न हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
३ अप्रेल २०२२
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पुनश्च :---
पूरे देश में सरकारी भूमि पर बनी हुई सभी अवैध मजारों और दरगाहों को तुरंत प्रभाव से हटाया जाना चाहिए।
उन सभी मंदिरों को मुक्त किया जाये जिनको तोड़कर मस्जिदें बनाई गई हैं।
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विदेशी आक्रांताओं द्वारा स्वतंत्रता के लिए लड़ाई का दावा ---
दो विदेशी आक्रांता जो एक दूसरे के कट्टर शत्रु रहे हों, वे अगर किसी तीसरे देश में जाकर वहाँ की सत्ता प्राप्त करने के लिए आपस में लड़ाई करें, तो क्या वह लड़ाई -- उस देश का स्वतंत्रता संग्राम कहलाएगी ??

नेहरू का झूठ व एटली का सच ---

 नेहरू का झूठ व एटली का सच ---

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(लेखक : इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामन्त्री, वीर सावरकर फ़ाउंडेशन)
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१९४५ के केंद्रीय धारा सभा के चुनाव में कांग्रेस के बहुमत पाने के बाद १९४६ में नेहरू ने मुस्लिम लीग के सहयोग से भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली। फिर १९४७ में जिन्ना के साथ भारत के विभाजन के काग़ज़ातों पर हस्ताक्षर कर भारत का विभाजन किया व १५ अगस्त १९४७ को विभाजित हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में यह शपथ ली ---
“I shall remain loyal to King George and I shall serve the king and his heirs”.
वाइसराय माउंट बेटन ने नेहरू को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाई तथा माउंट बेटन बहुत समय तक वायसराय बने रहे वायसराय भवन से यूनियन जैक उतारा नही गया उसपर वर्षों तक उड़ता रहा।
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१६ अगस्त १९४७ नेहरू ने लालक़िले से घोषणा की, “महात्मा गाँधी के चमत्कृत नेतृत्व के चलते हमनेस्वाधीनता प्राप्त की”इसका अर्थ हुवा “अहिंसा का सिद्धांत अंगरेजो को समझ आने के कारण अंगरेजो का हृदय परिवर्तन हो गया अथवा साम्राज्यवाद अन्याय है इसीलिए स्वेच्छा से अंगरेजो ने हिंदुस्तान छोड़ा” जबकी सत्य नेहरू की घोषणा के विपरीत है।
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३ जून १९४७ को भारत को स्वतंत्र करने के लिये India Independence Act प्रधानमंत्री लॉर्ड एटली ने ब्रिटेन की संसद में रखा तो कहा कि द्वितीय महायुद्ध की त्रासदी के बाद अब ब्रिटिश शासन में भारत की नौसेना भी विद्रोह के पथ पर चल रही है तथा थल सेना भी आज़ाद हिन्द सेना जैसा मार्ग अपना सकती है। अतः उचित होगा कि भारत को स्वतंत्र कर दिया जाये परन्तु मुस्लिमों के लिये अलग देश पाकिस्तान की स्वीकृति दी जाये तथा राजे रजवाड़ों को अधिकार दिया जाये की वे स्वतंत्र रहे अथवा भारत या पाकिस्तान किसी एक क्षेत्र में मिल जाये। ब्रिटिश संसद में विपक्ष के नेता चर्चिल ने भारत से ब्रिटिश सत्ता के समाप्त होने पर दुखी अवस्था में प्रश्न किया कि भारत को ब्रिटेन के लिये बचाया नही जा सकता चर्चिल के इस प्रश्न का निरुपाय होने से उत्तर प्रधान मन्त्री एटली ने इस प्रकार दिया,
”Britain is transferring power due to the fact that (1) The Indian Mercenary Army is no longer loyal to Britain and (2)Britain cannot afford to have a large British Army to hold down India.”
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भारत में एक तरफ़ गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस का आंदोलन चल रहा था, मुस्लिम लीग का आंदोलन चल रहा था। तो अतीत के क्रांतिकारी हिन्दु महासभा के झण्डे तले भारत को स्वाधीन करने का सशस्त्र क्रांति का काम करने लगे। अतीत के क्रांतिकारु वीर सावरकर हिन्दु महासभा के अध्यक्ष बने व क्रांतिकारी रासबिहारी बोस जापान हिन्दु महा सभा के अध्यक्ष बने। जब सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष पद से पदत्याग करने को गाँधी ने बाध्य किया फिर कांग्रेस से भी निकाल दिया तब वीर सावरकर के सैनिकीकरण कार्यक्रम से सुभाष बाबु प्रभावित होकर उनसे मिलने बम्बई सावरकर सदन पहुँचे वही भविष्य में भारत को किस प्रकार स्वतंत्र करना है उससे प्रभावित होकर सुभाष चंद्र बोस भारत से अंगरेजो की आँख में धूल झोंक कर निकलने में सफल हुवे व जर्मनी होते हुवे जापान जाकर रासबिहारी बोस से मिलकर भारतीय रास्ट्रिय सेना की कमान सम्भाली। व स्वतंत्रता की सशस्त्र लड़ाई आरम्भ की।
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जब आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों का लाल क़िले में ट्रायल हुवा व इसके सेनापतियों को आजीवन कारादण्ड दिया गया हमारी नौसेना में १८ फ़रवरी १९४६ बिद्रोह आरम्भ हो गया वायु सेना के सैनिक भी हड़ताल पर चले जाने से यह विद्रोह वायु सेना में भी फेल गया। थल सेना में फ़ेलने के पहले ही वायसराय ने घोषणा कर दी भारतीय रास्ट्रिय सेना के सेनापतियों की सजा माफ़ होगी व सैनिकों का ट्रायल बंद होगा तथा भारत को आज़ादी दी जाएगी। जब एटली १९५६ में भारत भ्रमण में आये तो एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्पष्ट किया की सुभाष चंद्र बोस व उनकी भारतीय रास्ट्रिय सेना ने ब्रिटिश सैनिकों की वफ़ादारी ब्रिटिश ताज के प्रति समाप्त कर दी इसलिए हमें भारत को स्वतंत्रता देनी पड़ी। देश के स्वाधीनता मिलने की सच्चाई एटली का ब्रिटिश संसद से लेकर भारत में वक्तव्य है न कि नेहरू की झूठ।
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वैसे भी गाँधी देस की जब स्वतंत्र कराने निकले थे तो कहा था हिन्दु मुस्लिमों की एकता के बिना आज़ादी मिलना असम्भव है। और हिन्दु मुस्लिम एकता स्थापित करने लगे।ना तो गाँधी हिन्दु मुस्लिम एकता बना पाये नही तो पाकिस्तान नही बनता ना ही देश को स्वाधीन करा पाये कांग्रेस के हाथ में सत्ता का हस्तांतरण १९४५ के केंद्रीय धारा सभा के चुनाव में बिजय के कारण हुवा न की देस को स्वतंत्र कराने के कारण।
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हमारी प्रधान मन्त्री मोदी जी से प्रार्थना है अब से नेहरू का गढ़ा जूठा इतिहास पढ़ाना बन्द हो और सत्य इतिहास पढ़ाया जाय।
१ अप्रेल २०२२

विश्व शांति के लिए निष्पक्ष वैज्ञानिक दृष्टि से निम्न शोध होने चाहियें ---

 विश्व शांति के लिए निष्पक्ष वैज्ञानिक दृष्टि से निम्न शोध होने चाहियें ---

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(१) मृत्यु के पश्चात जीव की क्या गति होती है?
(२) कौन सी उपासना पद्धति सर्वाधिक सुख-शांति व आनंद को प्राप्त करवाती है?
(३) क्या आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों व पुनर्जन्म का सिद्धान्त सही है?
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प्रत्येक मनुष्य को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने विवेक से तय करे कि उसका मत, सम्प्रदाय या मज़हब कौन सा हो। यह आवश्यक नहीं हो कि जिस माँ-बाप के घर जन्म लिया हो, उनका मज़हब ही स्वयं का भी हो। यह निज विवेक से चुनने का अधिकार सभी को प्राप्त होना चाहिए। बलात् किसी भी लालच, भय या आतंक से किसी पर अपना मत थोपने की स्वतन्त्रता न हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२२

महत्व -- कुछ बनने का है, पाने का नहीं ---

 हमारा यह शरीर ही नहीं, यह समस्त सृष्टि -- ऊर्जा व प्राण का घनीभूत स्पंदन और प्रवाह है, जिसके पीछे परमात्मा का एक विचार है। हम उस परमात्मा के साथ पुनश्च एक हों, यही इस जीवन का उद्देश्य है। एकमात्र शाश्वत उपलब्धि और महत्व -- कुछ बनने का है, पाने का नहीं। पूर्णतः समर्पित होकर हम अपने मूल स्त्रोत परमात्मा के साथ एक हों, यही शाश्वत उपलब्धि है, जिसका महत्व है। अन्य सब कुछ महत्वहीन और नश्वर है। आध्यात्मिक दृष्टी से हम क्या बनते हैं, महत्व इसी का है, कुछ प्राप्त करने का नहीं। परमात्मा को प्राप्त करने की कामना भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमात्मा तो पहले से ही प्राप्त है। अपने अहं को परमात्मा में पूर्णतः समर्पित करने की साधना निरंतर करते रहनी चाहिए। हमारा यह समर्पण हमें परमात्मा में मिलायेगा, कोई अन्य साधन नहीं।

ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२२