Wednesday, 20 April 2022
सबसे बड़ी सेवा और परोपकार ---
"हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारा तमोगुण है" ---
"हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारा तमोगुण है" ---
अब भगवान का नाम लेकर छलांग लगा ली है, आर या पार ---
अब भगवान का नाम लेकर छलांग लगा ली है-- आर या पार। पार पहुँच गए तो भगवती सीता जी के दर्शन हो जाएंगे। नहीं पहुंचे तो भगवान का नाम लेते हुए उन्हीं में विलीन हो जाएंगे। बीच में खड़े नहीं रह सकते।
भारत के बिके हुए टीवी समाचार चैनलों की पीड़ा ---
भारत के बिके हुए टीवी समाचार चैनलों की पीड़ा ---
"निम्न प्रकृति" पर विजय पाये बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते ---
"निम्न प्रकृति" पर विजय पाये बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते।
जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है ---
एक बहुत पुरानी स्मृति --- अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के एक प्रायः निर्जन टापू पर घूमते हुए एक बार एक अति विशाल और बहुत ही ऊँचे वृक्ष को देखा, जिस पर एक लता भी चढ़ी हुई थी| वृक्ष की जितनी ऊँचाई थी, लिपटते-लिपटते वहीं तक वह लता भी पहुँच गई थी| जीवन में पहली बार ऐसे उस दृश्य को देखकर परमात्मा और जीवात्मा की याद आ गई, और एक भाव-समाधि लग गई| वह बड़ा ही शानदार दृश्य था जहाँ मुझे परमात्मा की अनुभूति हुई| प्रभु को समर्पित होने से बड़ी कोई उपलब्धी नहीं है|
भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे, ताकि डाकुओं से अपनी रक्षा करने में भारत सदा समर्थ हो ---
भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे, ताकि डाकुओं से अपनी रक्षा करने में भारत सदा समर्थ हो ---
पूरे विश्व में सुख-शांति-भाईचारा और प्रेम कैसे स्थापित हो? ---
पूरे विश्व में सुख-शांति-भाईचारा और प्रेम कैसे स्थापित हो? ---
नेहरू का झूठ व एटली का सच ---
नेहरू का झूठ व एटली का सच ---
विश्व शांति के लिए निष्पक्ष वैज्ञानिक दृष्टि से निम्न शोध होने चाहियें ---
विश्व शांति के लिए निष्पक्ष वैज्ञानिक दृष्टि से निम्न शोध होने चाहियें ---
महत्व -- कुछ बनने का है, पाने का नहीं ---
हमारा यह शरीर ही नहीं, यह समस्त सृष्टि -- ऊर्जा व प्राण का घनीभूत स्पंदन और प्रवाह है, जिसके पीछे परमात्मा का एक विचार है। हम उस परमात्मा के साथ पुनश्च एक हों, यही इस जीवन का उद्देश्य है। एकमात्र शाश्वत उपलब्धि और महत्व -- कुछ बनने का है, पाने का नहीं। पूर्णतः समर्पित होकर हम अपने मूल स्त्रोत परमात्मा के साथ एक हों, यही शाश्वत उपलब्धि है, जिसका महत्व है। अन्य सब कुछ महत्वहीन और नश्वर है। आध्यात्मिक दृष्टी से हम क्या बनते हैं, महत्व इसी का है, कुछ प्राप्त करने का नहीं। परमात्मा को प्राप्त करने की कामना भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमात्मा तो पहले से ही प्राप्त है। अपने अहं को परमात्मा में पूर्णतः समर्पित करने की साधना निरंतर करते रहनी चाहिए। हमारा यह समर्पण हमें परमात्मा में मिलायेगा, कोई अन्य साधन नहीं।