"निम्न प्रकृति" पर विजय पाये बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते।
निम्न प्रकृति है -- हमारे विचारों व भावों में तमोगुण की प्रधानता।
तमोगुण स्वयं को मोह, प्रमाद, दीर्घसूत्रता, लोभ व अहंकार आदि के रूप में व्यक्त करता है।
मोह है -- इंद्रीय सुखों के प्रति आकर्षण, और सांसारिक सम्बन्धों के प्रति मिथ्या कर्तव्य बोध।
प्रमाद है -- आलस्य, जिसे भगवान सनत्कुुमार ने साक्षात मृत्यु बताया है।
दीर्घसूत्रता है -- शुभ कार्य को आगे टालने की प्रवृति।
मुक्त होने का उपाय -- भगवान श्री कृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय के ४५ वें श्लोक में बताया है जो गुणातीत होने को कहता है| गुणातीत होने के लिए गहन व दीर्घ साधना करनी पड़ती है।।
|| शुभ कामनाएँ व नमन || ॐ स्वस्ति !!
६ अप्रेल २०२२
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