भारत के बिके हुए टीवी समाचार चैनलों की पीड़ा ---
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(१) एक बात की तो बधाई देना चाहता हूँ कि भारत की लगभग सारे टीवी समाचार चैनलों ने झूठ बोलने के मामले में तो बीबीसी को भी पछाड़ दिया है। भारत के सारे टीवी समाचार चैनल भारत की जनता को मूर्ख समझते हैं इसलिए पिछले ४५ दिनों से लगभग हर चैनल चीख चीख कर कह रही है कि अगले २४ घंटों में विश्वयुद्ध होगा, और अणुबम फटेंगे। लेकिन न तो विश्वयुद्ध आरंभ हुआ है, और न ही कहीं कोई अणुबम फटा है। पूरे डेढ़ महीने बीत गए हैं।
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रूस-उकराइन युद्ध पर हमारे सारे समाचार चैनल हमें बीबीसी की जूठन परोस रहे हैं। इस विषय पर वे ही समाचार दिये जा रहे हैं जिन्हें बोलने का निर्देश उन्हें अमेरिकी गुप्तचर संस्थाओं से मिलता है। डॉलर की कमाई कौन खोना चाहता है?
पश्चिमी बंगाल में, और राजस्थान के करौली में तो ये पत्रकार नहीं जा पाते, लेकिन सीधे यूक्रेन पहुँच जाते हैं, जहाँ से सारे रूस विरोधी समाचार दिये जाते हैं ताकि भारत के लोगों के मन में रूस विरोधी भावना भड़के।
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टीवी चैनलों की दूसरी पीड़ा यह है कि चैनलों पर होने वाली बहसों में जब भी सेना और विदेशसेवा के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया जाता है, तो वे कभी भी पत्रकारों के झूठ की हाँ में हाँ नहीं मिलाते। वे सत्य बात बोलते हैं जो झेलेंस्की और उकराइन के विरोध में होती है। उस समय इन पत्रकारों का चेहरा देखने लायक होता है।
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जब सोवियत संघ का और वारसा पेक्ट का विघटन हो चुका है तब नाटो का भी विघटन हो जाना चाहिए था। लेकिन तृतीय विश्व के देशों को डरा-धमका कर, वहाँ अपनी मनचाही सरकारें स्थापित करवा कर उन्हें लूटने के उद्देश्य से इस संगठन को चालू रखा हुआ है। अमेरिका रूस पर भूल कर भी कभी आक्रमण नहीं करेगा, क्योंकि रूस की हाइपरसोनिक मिसाइल Kh-47M2 Kinzhal की कोई काट अमेरिका के पास नहीं है। यह ध्वनि से १२ गुणा अधिक की गति से चलती है और जार बम को ले जाने में समर्थ है, जो ५०० लाख टन टीएनटी के बराबर है, यानि हिरोशिमा पर गिराए गए अणुबम से यह ३३३३ गुणा अधिक शक्तिशाली। रूस के पास अणुबमों की संख्या भी अधिक है, और उन बमों को लक्ष्य तक पहुंचाने की तकनीक में भी वह अमेरिका से बहुत आगे है। यदि अमेरिका ने गलती से कोई अणुबम रूस पर गिरा भी दिया तो अगले कुछ क्षणों में पूरा अमेरिका राख़ के ढेर में बदल जाएगा। यदि विश्वयुद्ध छिड़ गया तो रूस अथवा अन्य किसी देश को नष्ट करने से पहले ही अमरीका स्वयं भस्म हो जायगा।
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बुचा नरसंहार की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। ३१ मार्च को रूसी सेना बुचा से बापस चली गई थी। तब तो वहाँ का जनजीवन सामान्य था। उस समय तो सड़कों पर कोई लाश नहीं थी। २ अप्रैल को सैकड़ों लाशों के चित्र सड़कों पर दिखाये गए। भारत के पत्रकार भी वहाँ गए। लेकिन तब तक लाशों को बुचा के चर्च की क्रबगाह में बिना ईसाई रस्म के दफनाया जा चुका था। बहुत बड़ा झूठा प्रचार किया जा रहा है। उन लाशों की सही जाँच भी नहीं होने दी गई। मुझे लगता है कि यूक्रेन में रहने वाले रूसी भाषियों का नर-संहार कर के उनकी लाशों का वीडियो बनाया गया था।
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उकराइन की अझोव-बटालियन नाम की नात्सी गुंडों की फौज ने मारयूपोल में व उसके आसपास जो रूसियों का नर-संहार किया है, वह यदि अमेरिका की जनता देख ले तो वह वाइडेन को उखाड़ फेंकेगी। इसलिए रूसी मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन सारे हत्याकांडों के दोषी हैं तो सिर्फ झेलेंस्की और वाइडेन।
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आप ने बड़े धैर्य से मेरे विचारों को पढ़ा, उसके लिए मैं आपका ऋणी हूँ। आप सब महान आत्माओं को नमन !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
६ अप्रेल २०२२
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