भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे, ताकि डाकुओं से अपनी रक्षा करने में भारत सदा समर्थ हो ---
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रूस-उकराइन युद्ध -- अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा एक षड़यंत्र के अंतर्गत रूस को नष्ट करने के उद्देश्य से आरंभ करवाया गया था। लेकिन रूस की दृढ़ता से दाव उल्टा पड़ रहा है। इस युद्ध से विश्व को एक बड़ा लाभ हुआ है। विश्व की आर्थिक व्यवस्था में निश्चित रूप से अब परिवर्तन आने आरंभ हो जाएँगे। तथाकथित विकसित देशों के वर्चस्व का अंत भी आरंभ हो जाएगा।
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आधुनिक साम्राज्यवाद में अब बलपूर्वक दूसरे देश पर आधिपत्य नहीं जमाया जाता, बल्कि वहाँ मनचाही सरकार बनवायी जाती है, और उस देश के प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था पर शिकंजा कसकर वहाँ अपनी पूँजी लगाकर मुनाफा कमाया जाता है। सन १९४७ से सन २०१४ तक भारत को अमेरिका, ब्रिटेन व उनके सहयोगी देशों द्वारा इसी तरह लूटा जा रहा था। अमेरिका अकेला ही लूट-खसोट नहीं कर सकता था, इसलिए उसने ब्रिटेन व अन्य कुछ यूरोपीय देशों को भी अपने साथ मिला लिया। उनकी यही व्यवस्था पूंजीवाद कहलाती है।
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पश्चिमी पूंजीवाद का मुख्य शत्रु कम्युनिज्म था जिस कारण सभी प्रमुख पूँजीवादी देशों में परस्पर आर्थिक एवं सैन्य सहयोग आवश्यक था। एक ओर कम्युनिज्म को नष्ट करना या घेर कर रखना एवं दूसरी ओर तृतीय विश्व को चालाकी से लूटते रहना -- पूंजीवाद का लक्ष्य है।
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मैंने अनौपचारिक शौकिया रूप से प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के ऊपर लिखे गए आसानी से उपलब्ध साहित्य को अपनी बौद्धिक संतुष्टि के लिए खूब पढ़ा है। रूसी लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकें भी खूब पढ़ी हैं। मार्क्सवाद के विरुद्ध लिखा गया साहित्य भी खूब पढ़ा है। अब तो आयु अधिक होने के कारण बहुत कुछ भूल चुका हूँ, अतः स्मृति में बहुत कम रह गया है।
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मेरा यह मानना है कि ब्रिटेन से बाहर विश्व में मार्क्सवाद -- ब्रिटेन द्वारा ही कुटिल व गुप्त रूप से फैलाया गया था। रूस में मार्क्सवाद और लेनिन को स्थापित करने के पीछे भी ब्रिटेन का ही हाथ था। लेकिन वहाँ ब्रिटेन का यह दाव उल्टा पड़ गया।
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द्वितीय विश्वयुद्ध भी गुप्त रूप से ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा ही एक कुटिल षड़यंत्र के द्वारा आरंभ करवाया गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध का मुख्य उद्देश्य था रूस का पूर्ण विनाश। रूस की रक्षा वहाँ की भयानक ठंड ने ही सदा की है। नेपोलियन ने भी रूस को नष्ट करने का संकल्प किया था लेकिन उसकी सेना वहाँ की ठंड नहीं सहन कर पाई और उसके सिपाही बीमार होकर मरने लगे। उसे मजबूर होकर बापस भागना पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने जब रूस पर आक्रमण किया तब रूस ने यही योजना बनाई थी कि कैसे भी सर्दी पड़ने तक जर्मनी को स्टालिनग्राद में रोक के रखो। फिर सर्दी उनसे सहन नहीं होगी और वे मारे जाएँगे। अंततः यही हुआ। जर्मनी के सिपाहियों के शरीर महीनों तक नहीं नहाने के कारण जूओं से भर गए। जब कोई सिपाही मरता तो उसके शरीर की हजारों जूएं उतर कर जीवित सिपाहियों पर चढ़ जातीं। स्तालिनग्राद की भयंकर सर्दी से जर्मनी की सेना मरने और हारने लगीं, और कूर्स्क में तो पूरी तरह हार गईं।
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जब यह स्पष्ट हो गया कि रूस की विजय और जर्मनी की पराजय निश्चित है तो कहीं जर्मनी पर अकेली रूसी सेना अधिकार न कर ले, तो ४ जुलाई १९४४ को अमेरिका व ब्रिटिश सेनाओं ने यूरोप की मुख्यभूमि पर पाँव रखे। अमेरिका ने तो द्वितीय विश्वयुद्ध में भी खूब धन कमाया। जर्मनी को लड़ने के लिए सारा ईंधन तो अमेरिकी कंपनियाँ ही बेचती थीं, जिसके बिना जर्मनी लड़ ही नहीं सकता था। जापान को भी युद्ध के लिए ईंधन अमेरिकी कंपनियाँ ही बेचती थीं। अमेरिका लड़ाई लड़ भी रहा था और साथ साथ पूंजी भी कमा रहा था। जापान को अन्य देशों से मुक्त व्यापार करने से अमेरिका रोकता था, इसीलिए जापान ने अमेरिका पर आक्रमण किया था। अन्य कोई कारण नहीं था।
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यूरोप के देश और अब यूरोपीय लोगों से भरा हुआ अमेरिका -- ये डाकुओं के ही देश है। अमेरिका इस समय सबसे बड़ा डाकू है। पहले ब्रिटेन सबसे बड़ा डाकू हुआ करता था, जो अब दो नंबर पर है। इनका सबसे बड़ा शिकार भारत रहा है, फिर भारत के बाद चीन, और फिर अन्य देश। अमेरिका का तो राष्ट्रपति भी कोई डाकू ही बन सकता है। यह IMF भी अमेरिकी डाकुओं का अड्डा है। संयुक्त राष्ट्र संघ पर भी एक तरह से अमेरिका का ही वर्चस्व है। नकली दर वाले डॉलर द्वारा भारत को अमेरिका द्वारा लूटा जा रहा है।
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भारत इन डाकुओं से अपनी रक्षा करने में समर्थ हो। भारत में सत्ता सिर्फ निष्ठावान, विवेकशील और देशभक्त लोगों के हाथ में ही रहे।
वंदे मातरम्!! भारत माता की जय!!
४ अप्रेल २०२२
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