मैं ऐसे किसी मत या धर्म को नहीं मानता जो स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता, और उसके उपाय नहीं बताता .....
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भगवान हमारी स्वयं की अंतर्चेतना और अस्तित्व है| भगवान कहीं बाहर नहीं, हमारे चैतन्य में ही है| बाहर की दुनियाँ में भय ही भय प्रचारित किया गया है, पर वास्तविकता तो यह है कि जहाँ भगवान है वहाँ कोई भय हो ही नहीं सकता| भगवान तो स्वयं एक अनिर्वचनीय परमप्रेम और सच्चिदानंद हैं, वे अन्य कुछ भी नहीं हो सकते|
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जो भी मत अपनी स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता, और उसके उपाय नहीं बताता, वह धर्म नहीं, अधर्म है| वहाँ कोई अभ्युदय और निःश्रेयस नहीं है, वह किसी का कल्याण नहीं कर सकता| जो भी धर्मगुरु आँख मीचकर अंधविश्वास करने को कहता है या भगवान के नाम पर डराता है, वह अधर्मगुरु है, व त्याज्य है| हम अपने अतीत से मुक्त हों व स्वयं के चैतन्य में ही परमात्मा को ढूंढें|
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साथ साथ हमारा एक राष्ट्रधर्म भी है| जहाँ हमारे ऊपर हमारे पितृऋण, ऋषिऋण और देवऋण है वहीं साथ साथ एक राष्ट्रऋण भी है जिस से भी हमें उऋण होना ही पड़ेगा| राष्ट्र के कल्याण के लिए भी हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें| वर्त्तमान जनतांत्रिक व्यवस्था विफल हो चुकी है, उसके स्थान पर गुणतंत्र कैसे आये इस पर विचार कर हमें उस दिशा में बढ़ना चाहिए|
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आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ फरवरी २०१९
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भगवान हमारी स्वयं की अंतर्चेतना और अस्तित्व है| भगवान कहीं बाहर नहीं, हमारे चैतन्य में ही है| बाहर की दुनियाँ में भय ही भय प्रचारित किया गया है, पर वास्तविकता तो यह है कि जहाँ भगवान है वहाँ कोई भय हो ही नहीं सकता| भगवान तो स्वयं एक अनिर्वचनीय परमप्रेम और सच्चिदानंद हैं, वे अन्य कुछ भी नहीं हो सकते|
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जो भी मत अपनी स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता, और उसके उपाय नहीं बताता, वह धर्म नहीं, अधर्म है| वहाँ कोई अभ्युदय और निःश्रेयस नहीं है, वह किसी का कल्याण नहीं कर सकता| जो भी धर्मगुरु आँख मीचकर अंधविश्वास करने को कहता है या भगवान के नाम पर डराता है, वह अधर्मगुरु है, व त्याज्य है| हम अपने अतीत से मुक्त हों व स्वयं के चैतन्य में ही परमात्मा को ढूंढें|
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साथ साथ हमारा एक राष्ट्रधर्म भी है| जहाँ हमारे ऊपर हमारे पितृऋण, ऋषिऋण और देवऋण है वहीं साथ साथ एक राष्ट्रऋण भी है जिस से भी हमें उऋण होना ही पड़ेगा| राष्ट्र के कल्याण के लिए भी हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें| वर्त्तमान जनतांत्रिक व्यवस्था विफल हो चुकी है, उसके स्थान पर गुणतंत्र कैसे आये इस पर विचार कर हमें उस दिशा में बढ़ना चाहिए|
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आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ फरवरी २०१९