हमें भूमि पर बैठ कर भोजन करने में शर्म क्यों आती है ? ....
मुझे कई बार जापान जाने का अवसर मिला है| जापान के कई नगरों में खूब घूमा भी हूँ| १९७० और १९८० के दशक में जापान इतना मंहगा नहीं था| अब तो इतना मंहगा है कि कोई मुझे निःशुल्क भी वहाँ भेजे तो भी मैं नहीं जाऊं|
वहाँ की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी कि अपने अपने घरों में सब लोग भूमि पर बैठकर ही भोजन करते हैं| भूमि पर बैठकर सामने एक चौकी रख लेते हैं, जिस पर रखकर ही खाना खाते हैं| कितना भी समृद्ध व्यक्ति हो, अपने घर पर खाना खायेगा तो भूमि पर बैठ कर ही खायेगा|
आज से कुछ वर्ष पहले तक हम लोग भी भूमि पर बैठकर ही भोजन करते थे| अब दूसरों की नकल कर के टेबल-कुर्सी पर खाने लगे हैं| वास्तव में मेरी इच्छा सदा यही रहती है कि आलथी-पालथी मारकर भूमि पर बैठकर ही भोजन करूँ|
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नमन ....
मुझे जब भी कोई संत-महात्मा मिलते हैं तो उन को हाथ जोड़कर, भूमि पर घुटने टेक कर, और माथे को भूमि पर लगा कर प्रणाम करने में बड़ा आनंद आता है| आजकल तो ठीक से नहीं कर पाता क्योंकि अब इतनी भौतिक शक्ति नहीं रही है| फिर भी प्रयास सदा यही रहता है|
जब उनका आशीर्वाद मिलता है तब यही लगता है कि बहुत बड़ी मात्रा में उन्होंने मेरा दुःख-कष्ट, और आने वाली हर पीड़ा को हर लिया है| पता नहीं यह मनोवैज्ञानिक है या सत्य है|
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५ फरवरी २०१९
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