Wednesday, 6 February 2019

मैं ऐसे किसी मत या धर्म को नहीं मानता जो स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता, और उसके उपाय नहीं बताता .....

मैं ऐसे किसी मत या धर्म को नहीं मानता जो स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता, और उसके उपाय नहीं बताता .....
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भगवान हमारी स्वयं की अंतर्चेतना और अस्तित्व है| भगवान कहीं बाहर नहीं, हमारे चैतन्य में ही है| बाहर की दुनियाँ में भय ही भय प्रचारित किया गया है, पर वास्तविकता तो यह है कि जहाँ भगवान है वहाँ कोई भय हो ही नहीं सकता| भगवान तो स्वयं एक अनिर्वचनीय परमप्रेम और सच्चिदानंद हैं, वे अन्य कुछ भी नहीं हो सकते|
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जो भी मत अपनी स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता, और उसके उपाय नहीं बताता, वह धर्म नहीं, अधर्म है| वहाँ कोई अभ्युदय और निःश्रेयस नहीं है, वह किसी का कल्याण नहीं कर सकता| जो भी धर्मगुरु आँख मीचकर अंधविश्वास करने को कहता है या भगवान के नाम पर डराता है, वह अधर्मगुरु है, व त्याज्य है| हम अपने अतीत से मुक्त हों व स्वयं के चैतन्य में ही परमात्मा को ढूंढें|
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साथ साथ हमारा एक राष्ट्रधर्म भी है| जहाँ हमारे ऊपर हमारे पितृऋण, ऋषिऋण और देवऋण है वहीं साथ साथ एक राष्ट्रऋण भी है जिस से भी हमें उऋण होना ही पड़ेगा| राष्ट्र के कल्याण के लिए भी हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें| वर्त्तमान जनतांत्रिक व्यवस्था विफल हो चुकी है, उसके स्थान पर गुणतंत्र कैसे आये इस पर विचार कर हमें उस दिशा में बढ़ना चाहिए|
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आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ फरवरी २०१९

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