Monday 10 December 2018

चिंता और भय हमारे सबसे बड़े छिपे हुए शत्रु हैं ......

 चिंता और भय हमारे सबसे बड़े छिपे हुए शत्रु हैं ......
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ये हम पर कब प्रहार करते हैं हमें पता ही नहीं चलता| जब तक इनके दुष्परिणाम सामने आते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है| प्रकृति ने हमें भय और चिंता मात्र सतर्क रहने के लिए ही प्रदान की हैं, न कि इनका शिकार बनने के लिए| बीमारी, दरिद्रता, अपमान, अपेक्षाओं का पूरा न होना, और मृत्यु की चिंता हमें सबसे अधिक होती हैं| मनोचिकित्सकों के अनुसार भय हमारी इच्छा शक्ति को समाप्त कर हमें मानसिक रूप से विक्षिप्त कर देता है| चिंता ह्रदय और फेफड़ों की क्षमता को कम कर देती है| यदि आपको विश्वास न हो तो यह बात आप मनोचिकित्सकों से पूछ सकते हैं| इससे शरीर में लकवा भी मार सकता है और अकाल मृत्यु भी हो सकती है| भगवान ने यह देह हमें एक उपकरण के रूप में दी है पर इसमें पूर्णता इसलिए नहीं दी कि हम इस देह में रहते हुए पूर्णता की प्राप्ति कर सकें|
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भय और चिंता एक मृत्यु दंड है जो हम स्वयं को बिना किसी कारण के देते हैं| ये भय और चिंता हमें पता नहीं कितनी बार मृत्यु दंड देते है| बार बार या निरंतर कष्ट पाने से तो साहस के साथ एक बार मर जाना ही अधिक अच्छा है| हम यह हाड-मांस की देह नहीं हैं, शाश्वत आत्मा हैं| यह देह एक वाहन है जो भगवान ने हमें लोकयात्रा के लिए दिया है| परमात्मा में गहन आस्था रखें और अपनी सारी चिंताएँ और भय भगवान को सौंप दें| भगवान सब परिस्थितियों में हमारी रक्षा करता है| मेरी ही नहीं हम सब की रक्षा भगवान ने अनेक बार की है| एक ऐसी चेतना का विकास करें जिसमें कोई हमें विचलित न कर सके| ऐसे नकारात्मक लोगों का साथ विष की तरह छोड़ दो जो जीवन में सदा शिकायत ही शिकायत, निंदा ही निंदा और असंतोष ही असंतोष व्यक्त करते रहते हैं| समष्टि के कल्याण में ही हमारा कल्याण है अतः निरंतर समष्टि के प्रति सद्भावना और प्रेम व्यक्त करते रहो| परमात्मा कोई भय या डरने का विषय नहीं है| जो लोग परमात्मा से डरने की बात कहते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| परमात्मा तो प्रेम का विषय है| जो परमात्मा को प्रेम नही कर सकते वे किसी को भी प्रेम नहीं कर सकते| मेरा प्रत्यक्ष अनुभव तो यही है कि जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमें प्रेम करेगी|
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हर रात सोने से पूर्व यह प्रार्थना करके सोयें .... "हे जगन्माता, आप मेरी निरंतर रक्षा कर रही हैं, आप सदा मेरे साथ हैं, इस जीवन का समस्त भार आपको समर्पित है| मेरे चैतन्य में आप निरंतर बिराजमान रहो| ॐ ॐ ॐ ||" फिर एक बालक की तरह जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाओ| दिन का प्रारम्भ भी परमात्मा के ध्यान के साथ करो| पूरे दिन उनकी स्मृति बनाए रखें|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
१० दिसंबर २०१६

हिन्दुओ, स्वयं धर्माचरण द्वारा अपने धर्म की रक्षा करो .....

हिन्दुओ, स्वयं धर्माचरण द्वारा अपने धर्म की रक्षा करो .....
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हमने धर्म की रक्षा की तो हमें ईश्वर के आशीर्वाद प्राप्त होंगे| हिन्दुओं को धर्मशिक्षा न मिलने से ही उनके द्वारा धर्माचरण नहीं होता, व धर्म के प्रति जागरूकता नहीं होती| इसी कारण हमें हिन्दू धर्म पर मंडरा रहे संकटों का ज्ञान नहीं है| हिन्दुओं को धर्मरक्षा हेतु धर्म के प्रति उदासनीता को छोड़कर संगठित होना चाहिए| भारत के वर्तमान संविधान के हिन्दू विरोधी प्रावधानों और वर्तमान शिक्षा पद्धति ने हिन्दुओं की विचारधारा को ही बदल दिया है| सर्वत्र भोगवाद बढ़ा है, हिन्दू देवताओं का अनादर हो रहा है, और मंदिरों का सरकारीकरण होने से श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक अर्पित धन का दुरूपयोग हो रहा है| धर्म ही ईश्वर है| हमने धर्म की रक्षा की तो ईश्वर के आशीर्वाद हमें प्राप्त होंगे|
९ दिसंबर २०१८ 

ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....

ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....
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"He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV."
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये).
For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल मिले बिना नहीं रहता|