Tuesday, 11 February 2025

सहज योग ---

'सहज' ,,,,, का अर्थ क्या होता है ? सहज का अर्थ ..... आसान या स्वभाविक नहीं है।

सहज' का अर्थ है ..... 'सह+ज' ..... यानि जो साथ में जन्मा है| साथ में जो जन्मा है उसके माध्यम से या उसके साथ योग ही सहज योग है|
.
कोई भी प्राणी जब जन्म लेता है तो उसके साथ जिसका जन्म होता है वह है उसका श्वास| अत: श्वास-प्रश्वास ही सह+ज यानि 'सहज' है|
.
महर्षि पतंजलि ने चित्त की वृत्तियों के निरोध को 'योग' परिभाषित किया है| चित्त और उसकी वृत्तियों को समझना बड़ा आवश्यक है| उसको समझे बिना आगे बढना ऐसे ही है जैसे प्राथमिक कक्षाओं को उतीर्ण किये बिना माध्यमिक में प्रवेश लेना|
.
चित्त है आपकी चेतना का सूक्ष्मतम केंद्र बिंदु जिसे समझना बड़ा कठिन है|
चित्त स्वयं को दो प्रकार से व्यक्त करता है ---- एक तो मन व वासनाओं के रूप में, और दूसरा श्वास-प्रश्वास के रूप में|
.
मन व वासनाओं को पकड़ना बड़ा कठिन है| हाँ, साँस को पकड़ा जा सकता है|
योगी लोग कहते हैं कि मानव देह और मन के बीच की कड़ी --- 'प्राण' है|
चंचल प्राण ही मन है| प्राणों को स्थिर कर के ही मन पर नियन्त्रण किया जा सकता है|
.
भारत के योगियों ने अपनी साधना से बड़े बड़े महान प्रयोग किये और योग-विज्ञान को प्रकट किया| योगियों ने पाया की श्वास-प्रश्वास कोई स्वतंत्र क्रिया नहीं है बल्कि सूक्ष्म देह में प्राण प्रवाह की ही प्रतिक्रिया है| जब तक देह में प्राणों का प्रवाह है तब तक साँस चलेगी| प्राण प्रवाह बंद होते ही साँस भी बंद हो जायेगी|
.
योगियों की स्वयं पर प्रयोग कर की गयी महानतम खोज इस तथ्य का पता लगना है कि श्वास-प्रश्वास पर ध्यान कर के प्राण तत्व को नियंत्रित किया जा सकता है, और प्राण तत्व पर नियन्त्रण कर के मन पर विजय पाई जा सकती है, मन पर विजय पाना वासनाओं पर विजय पाना है| यही चित्त वृत्तियों का निरोध है|
.
फिर चित्त को प्रत्याहार यानि अन्तर्मुखी कर एकाग्रता द्वारा कुछ सुनिश्चित धारणा द्वारा ध्यान किया जा सकता है, और ध्यान द्वारा समाधि लाभ प्राप्त कर परम तत्व यानि परमात्मा के साथ 'योग' यानि समर्पित होकर जुड़ा या उपलब्ध हुआ जा सकता है|
.
फिर इस साधना में सहायक हठ योग आदि का आविष्कार हुआ| फिर यम नियमों की खोज हुई|
फिर इस समस्त प्रक्रिया को क्रमबद्ध रूप से सुव्यवस्थित कर योग विज्ञान प्रस्तुत किया गया|
.
मूल आधार है श्वास-प्रश्वास पर ध्यान| यही सहज (सह+ज) योग है|
.
बौद्ध मतानुयायी साधकों ने इसे विपासना यानि विपश्यना और अनापानसति योग कहा जिसमें साथ में कोई मन्त्र नहीं होता है|
.
योगदर्शन व तंत्रागमों और शैवागमों में श्वास-प्रश्वास के साथ दो बीज मन्त्र .... 'हँ' और 'स:' जोड़कर एक धारणा के साथ ध्यान करते हैं| इसे अजपाजाप कहते हैं|
.
पतंजलि के योगदर्शन में यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) और नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान) की अनिवार्यता इसलिए कर दी गयी क्योंकि योग साधना से कुछ सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है| यदि साधक के आचार विचार सही नहीं हुए तो या तो उसे मस्तिष्क की कोई गंभीर विकृति हो सकती है या सूक्ष्म जगत की आसुरी शक्तियां उस को अपने अधिकार में लेकर अपना उपकरण बना सकती हैं|
.
उपरोक्त सभी तथ्यों को सुव्यवस्थित कर योग विज्ञान प्रस्तुत किया गया|
मूल आधार है श्वास-प्रश्वास पर ध्यान| यही सहज (सह+ज) योग है|
.
सूक्ष्म प्राणायाम एक दुधारी तलवार की तरह है| यदि साधक के आचार-विचार सही हैं तो वे उसे देवता बना देते है, और यदि साधक कुविचारी है तो वह असुर यानि राक्षस बन जाता है| इसीलिए सूक्ष्म प्राणायाम साधना को गोपनीय रखा गया है| वह गुरु द्वारा प्रत्यक्ष शिष्य को प्रदान की जाती है| गुरु भी यह विद्या शिष्य की पात्रता देखकर ही देता है|)
.
भारत की विश्व को सबसे बड़ी देन -- आध्यात्म, विविध दर्शन शास्त्र, अहैतुकी परम प्रेम यानि भक्ति व समर्पण की अवधारणा, वेद, वेदांग, पुराणादि अनेक ग्रन्थ, सब के उपकार की भावना के साथ साथ योग दर्शन भी है जिसे भारत की आस्तिक और नास्तिक (बौद्ध, जैन आदि) दोनों परम्पराओं ने स्वीकार किया है||
.
ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | अयमात्मा ब्रह्म ||
कृपा शंकर १२ फरवरी २०१६

चाहे कितना भी असत्य रूपी अंधकार हो, दुःख के बादल कितने भी घने हों, पर कभी निराश न हों ---

 भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है -----

"क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते| क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप||२:३||"
"हे पार्थ क्लीव (कायर) मत बनो| यह तुम्हारे लिये अशोभनीय है, हे परंतप हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्यागकर खड़े हो जाओ||"
"O Partha, yield not to unmanliness. This does not befit you. O scorcher of foes, arise, giving up the petty weakness of the heart."
.
चाहे कितना भी असत्य रूपी अंधकार हो, दुःख के बादल कितने भी घने हों, पर कभी निराश न हों| मनुष्य अकेला कभी पैशाचिक/आसुरी जगत का सामना नहीं कर सकता, उसे देवताओं की सहायता लेनी ही पड़ेगी| इस सृष्टि में पता नहीं कितनी बार असुरों का राज्य हुआ है, पर देवताओं ने कभी साहस नहीं खोया| कैसे भी संगठित होकर बार बार उन्होने अपने खोये हुए साम्राज्य को बापस पाया है| वेद भी अनेक बार लुप्त हुए हैं, जिनका ज्ञान फिर से भगवान ने दिया है| कर्ता भगवान को बनाओं और अपने धर्मक्षेत्र/कुरुक्षेत्र में डटे रहो| भगवान हमारे साथ हैं| याद रहे .....
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||"
"जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है||"
"Wherever there is Kṛishṇa, the master of all mystics, and wherever there is Arjuna, the supreme archer, there will also certainly be opulence, victory, extraordinary power, and morality."
.
किसी भी तरह की आत्मनिंदा या आत्महीनता के भाव से हम मुक्त हों| अपेक्षाएं सदा दुःखदायी होती हैं| किसी भी परिस्थिति में निज विवेक के प्रकाश में जो भी सर्वश्रेष्ठ है, वह हम करें, और उसका परिणाम ईश्वर को सौंप दें| यह सृष्टि द्वन्द्वात्मक विपरीत गुणों से बनी है| यह अंधकार और प्रकाश का खेल है| दोनों ही शाश्वत हैं| इस द्वन्द्व से ऊपर उठें| जो सर्वश्रेष्ठ है, उसका चिंतन करें, उसका परिणाम भी सर्वश्रेष्ठ होगा| सर्वश्रेष्ठ चिंतन परमात्मा का है, उसे निज जीवन का केंद्रविंदु बनायें| अतः भगवान को कर्ता बनाकर, उन्हें अपने हृदय में बिराजमान कर, पूर्ण समर्पित हो, इस विकट रणभूमि में युद्धरत रहो| सारा मार्ग वे दिखायेंगे, रक्षा भी करेंगे| विजय हमारी सुनिश्चित है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
१२ फरवरी २०२०

असत्य और अंधकार की शक्तियों से हमारा एक युद्ध निरंतर चल रहा है ---

असत्य और अंधकार की शक्तियों से हमारा एक युद्ध निरंतर चल रहा है, जिससे हम बच नहीं सकते। यह युद्ध तो लड़ना ही पड़ेगा। हम हर साँस के साथ असत्य के अंधकार पर प्रहार कर रहे हैं। अपना सारथी भगवान पार्थसारथी को बना लो, फिर देखो, विजय ही विजय है।

"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥१८: ७८॥"
.
हे गुरु महाराज, आप धन्य हो। आपने मुझे एक घोर अंधकारमय नर्ककुंड से निकाल कर इस ज्योतिर्मय सन्मार्ग पर डाल दिया है, और अब भगवान का साक्षात्कार भी करवा रहे हो। आपकी परम कृपा से मुझे किसी भी तरह का कोई संशय नहीं रहा है। आपकी जय हो। मुझे आपके परमप्रेम के सिवाय और कुछ भी नहीं चाहिए। स्वयं परमशिव ही यह जीवन जी रहे हैं। ॐ ॐ ॐ !!
१२ फरवरी २०२३