Monday, 23 August 2021

भारत की राजनीति सत्य-सनातन-धर्म हो, व गो-ब्राह्मण-प्रतिपालक सत्यधर्मनिष्ठ क्षत्रिय शासकों का नवोन्मेष हो ---

 

"भारत की राजनीति सत्य-सनातन-धर्म हो, व गो-ब्राह्मण-प्रतिपालक सत्यधर्मनिष्ठ क्षत्रिय शासकों का नवोन्मेष हो।" ---
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हमारा यह शिव-संकल्प निश्चित रूप से फलीभूत होगा, क्योंकि गीता में भगवान का वचन है, जो कभी मिथ्या नहीं हो सकता --
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
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भगवान की स्तुति --
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्, यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्, देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्॥"
"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् , पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात्।
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् , कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि॥"
"कस्तुरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि,
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूड़ामणी॥"
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||"
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२२ अगस्त २०२१

जिसमें जैसे गुण होंगे, उसकी वैसी ही गति होगी ---

 

जिसमें जैसे गुण होंगे, उसकी वैसी ही गति होगी। हमारे सारे बंधनों का और मोक्ष का कारण हमारा अहंकार ही है। अहंकार भी दो तरह का होता है। एक अहंकार तो स्वयं को यह शरीर मानता है, वहीं दूसरा अहंकार स्वयं को यह शरीर न मानकर सम्पूर्ण सृष्टि में व उस से भी परे सर्वव्यापी अनंत ब्रह्मरूप मानता है। पहले वाला अहंकार बंधनों का कारण है, और दूसरा वाला मुक्ति का।
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प्राचीन भारत में लोग संतान उत्पन्न करने के लिए बड़ी सावधानी बरतते थे। दो तरह की संताने होती हैं -- कामज और धर्मज। काम वासना के वशीभूत होकर उत्पन्न की गई संतान कामज होती है, और धर्म की दृष्टि से उत्पन्न संतति धर्मज कहलाती हैं। आज के समय उत्पन्न अधिकांश संतति कामज हैं, धर्मज नहीं। प्राचीन काल में प्रधानतः धर्मज संतति होती थी, इसलिये संतति के मन में प्रश्न होते थे कि -- "मैं कौन हूँ?", "मेरा क्या कर्तव्य है?", "मुझे क्या करना चाहिये?" आदि। आज कामज संतति द्वारा प्रश्न किया जाता है कि क्या करने से उन्हें भोग-विलास की प्राप्ति होगी। संतानोत्पत्ति के समय माता-पिता में यदि सतोगुण है तो सतोगुणी संतान होगी, रजोगुण है तो रजोगुणी, और तमोगुण है तो तमोगुणी संतान होगी।
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जिस समय पुरुष का शुक्राणु और स्त्री का अंडाणु मिलते हैं, उस समय सूक्ष्म जगत में एक विस्फोट होता है, और जैसे उनके भाव होते हैं, वैसी ही जीवात्मा आकर गर्भस्थ हो जाती है। संभोग के समय जिनमें कुटिलता होती है, उनकी सन्तानें कुटिल यानि Crook/Cunning होती हैं। जिनमें जैसी भावना होती है वैसी ही सन्तानें उनके यहाँ उत्पन्न होती हैं। आजकल कोई नहीं चाहता कि उनकी सन्तानें सतोगुणी हों, सब को कमाऊ संतान ही चाहिए।
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जिनमें कुटिलता नहीं है, वे सतोगुणी ही ब्रह्मज्ञान के अधिकारी होते हैं। अन्यथा उन्हें और अनेक जन्म लेने होंगे। ब्रह्मविद्या के लिए रुचि होगी तभी प्रवृति होगी। हमारे मन में अनेक तरह के भाव होते हैं, इसलिए अखंड परमात्मा खंडित रूप में अनुभूत होते हैं। शरणागत होकर समर्पित होने पर, करुणावश भगवान हमें अखंड भाव का बोध कराते हैं। वैराग्य होने से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। जो साधन-साध्य है, वह साध्य भी साधन के अभाव में लुप्त हो जाएगा। विषयों के प्रति वैराग्य हुये बिना आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। राग से बन्धन है, और वैराग्य से निवृत्ति है। जिनके अंदर विवेक जागृत होता है, वे जीवन के आरंभिक काल में ही विरक्त हो जाते हैं।
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हम स्वयं मुक्त होंगे तभी दूसरों को मुक्ति दिला सकते हैं। कोई हमारे से पृथक नहीं है, मिथ्या परोपकार का भाव भी एक बंधन है। इसलिए अनन्य भाव से भक्ति करनी चाहिए। जैसे हम स्वयं होंगे, वैसी ही हमारे चारों ओर की सृष्टि होगी।
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ये भाव मुझ में व्यक्त हुए, इसके लिए लिए मैं परमात्मा को नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् !
२३ अगस्त २०२१

चौक च्यानणी भादूड़ो, दे दे माई लाडूड़ो ---


गणेशचतुर्थी पर मैं एक बहुत पुराना बच्चों द्वारा गाये जाने वाला एक राजस्थानी गीत प्रस्तुत करना चाहता था जिसे ५०-६० वर्षों पूर्व गणेशचतुर्थी पर बच्चे लोग गाया करते थे, और किसी भी सहपाठी या परिचित के घर लड्डू खाने चले जाते थे| जिस के भी घर जाते वह बच्चों को लड्डू, गुड़-धाणी तो बड़े प्रेम से खिलाता ही, साथ में कुछ पैसे भी देता| मुझे वह गीत ठीक से याद नहीं आ रहा था और नेट पर भी कहीं मिल नहीं रहा था| आज एक मित्र ने भेजा है, जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ ...
"चौक च्यानणी भादूड़ो,
दे दे माई लाडूड़ो |
आधौ लाडू भावै कौनी,
सा'पतौ पाँती आवै कौनी ||
सुण सुण ऐ गीगा की माँ,
थारौ गीगौ पढ़बा जाय |
पढ़बा की पढ़ाई दै,
छोराँ नै मिठाई दै ||
आळो ढूंढ दिवाळो ढूंढ,
बड़ी बहु की पैई ढूंढ |
ढूंढ ढूंढा कर बारै आ,
जोशी जी कै तिलक लगा ||
लाडूड़ा में पान सुपारी,
जोशी जी रै हुई दिवाळी |
जौशण जी ने तिलिया दै,
छोराँ नै गुड़-धाणी दै |
ऊपर ठंडो पाणी दै ||
एक विद्या खोटी,
दूजी पकड़ी . चोटी |
चोटी बोलै धम धम,
विद्या आवै झम झम ||"
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२३ अगस्त २०२०