Tuesday 5 December 2017

श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी, चिद्ग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता .....

श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी, चिद्ग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता .....
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आध्यात्मिक और काव्यात्मक दृष्टी से जगन्माता का सर्वाधिक प्रभावशाली और सर्वश्रेष्ठ स्तोत्र है "श्रीललिता सहस्रनाम" जो ब्रह्माण्ड पुराण का अंश है| ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तर खण्ड में "ललितोपाख्यान" के रूप में भगवान हयग्रीव और महामुनि अगस्त्य के संवाद के रूप में इसका विवेचन मिलता है| कुछ भक्त इसकी रचना का श्रेय लोपामुद्रा को देते हैं जो अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं| जो भी हो यह स्तोत्र उतना ही शक्तिशाली है जितना "विष्णु सहस्त्रनाम" या "शिव सहस्त्रनाम" है| इसको समझकर सुनते ही कोई भी निष्ठावान साधक स्वतः ही ध्यानस्थ हो जाएगा| ध्यान से पूर्व इस स्तोत्र को सुनने या पढ़ने से बड़ी शक्ति मिलती है| साधनाकाल के आरम्भ में यह स्तोत्र मैं नित्य सुना करता था जिससे मुझे बड़ी शक्ति मिलती थी| मैनें अपनी दोनों पुत्रियों के नाम भी इसी स्तोत्र का पाठ सुनते हुए ही रखे थे|
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इसके अनेक ऑडियो और विडिओ विभिन्न भक्त गायकों द्वारा गाये हुए बाज़ार में उपलब्ध हैं| यू ट्यूब पर भी इसके अनेक संस्करण उपलब्ध हैं| आपको जिस भी गायक/गायिका की आवाज़ अच्छी लगे उस का ऑडियो खरीद लें या यू ट्यूब से डाउन लोड कर लें, फिर नित्य उसे भक्ति भाव से सुनें| किसी भी भक्त की अंतर्चेतना पर इसके अत्यधिक प्रभावशाली मन्त्रों का सकारात्मक प्रभाव निश्चित रूप से पड़ेगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

मेरी सबसे बड़ी विफलताएँ ये रही है .....

मेरी सबसे बड़ी विफलताएँ ये रही है .....

(१) मैं स्वयं के प्रति ईमानदार नहीं रहा हूँ | स्वयं के साथ बहुत अन्याय किया है | पिछले कई दशकों से मैंने डायरी लिखना बंद कर दिया जो मुझे नित्य लिखनी चाहिए थी | नित्य लिखना था कि उस दिन के जीवन में कितनी उन्नति और कितनी अवनति हुई | अपनी असफलता के भय और प्रमाद से ही ऐसे हुआ | यह प्रमाद ही साक्षात मृत्यु थी |

(२) फालतू विचारों का त्याग नहीं कर पाया यह एक प्रमाद यानि साक्षात् मृत्यु थी| पता नहीं है कि जीवित हूँ या मृत हूँ |

अब तो सुधरने का एक अंतिम अवसर है| अब नहीं तो कभी नहीं| फिर पता नहीं कितने जन्मों तक होश नहीं आयेगा| हे जगन्माता, सहायता करो |

ॐ ॐ ॐ !!

भगवान के विराट रूप का हम ध्यान करें .....

जहाँ कोई अन्धकार नहीं है, जो अन्धकार और प्रकाश से परे है, भगवान के उसी विराट रूप का हम ध्यान करें .....
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गीता के ग्यारहवें अध्याय विश्वरूपदर्शनयोग को समझने के पश्चात परमात्मा के किस रूप का ध्यान करें, इस में कोई संदेह ही नहीं होना चाहिए| फिर भी एक बार किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ श्रोत्रिय आचार्य से मार्गदर्शन ले लेना चाहिए| ध्यान साधकों को समय समय पर गीता के इस अध्याय का स्वाध्याय करना चाहिए| वैसे भी गीता के आरम्भ से अंत तक पांच श्लोक तो नित्य अर्थ सहित पढने चाहिएँ| सारे संदेहों का निवारण गीता ही कर सकती है|
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥ (११/१२)
यदि आकाश में एक हजार सूर्य एक साथ उदय हो तो उनसे उत्पन्न होने वाला वह प्रकाश भी उस सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रकाश की शायद ही समानता कर सके। (११/१२)
परमात्मा का वह प्रकाशरूप ही ज्योतिर्मय ब्रह्म है, वही परमशिव है, वही परमेश्वर है| उसी का हम ध्यान करें | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः -----
अनन्य भक्ति क्या है? गीता के इसी अध्याय के ५४ वें श्लोक में भगवान अन्य भक्ति की बात कह रहे हैं|
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन । ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥ (११/५४)
अनन्य भक्ति क्या है इस पर कई लोग विवाद करते हैं| इस का जो अद्वैतवादी अर्थ मैं समझ पाया हूँ वह यही है ..... "जहाँ अन्य कोई नहीं है" | भगवान के गहन ध्यान से यह स्पष्ट हो जाता है|
सार यह है की हम शरणागत हों, भक्ति में स्थित हों, कामनाओं और राग-द्वेष से मुक्त हों, और समस्त प्राणियों से मैत्री भाव रखें| यह परमात्मा के ध्यान द्वारा ही संभव है|
ॐ ॐ ॐ !!

दिशाहीन व्यवस्थाएँ ही हमारी दुर्गति का कारण हैं

दिशाहीन व्यवस्थाएँ (राजतंत्र, न्यायतंत्र, समाचार माध्यम, आस्थाएँ, आदि) ही हमारी दुर्गति का कारण हैं |
महासागर में जलयान, आकाश में वायुयान और अरण्य में कोई पथिक अपनी दिशा से भटक जाए तो उसका विनाश निश्चित है | वैसे ही दिशाहीन समाज, राष्ट्र और व्यक्ति का विनाश निश्चित है |

हमारी दिशा सिर्फ आध्यात्म ही हो सकती है, ऐसी मेरी सोच है |

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !

यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार का ही एक खेल है .....

यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार का ही एक खेल है .....
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एक महिला साधिका को एक महान संत ने साक्षात उसके समक्ष प्रकट होकर दर्शन दिए | साधिका ने उन संत से पूछा : "भगवन, आप विश्व में चारों ओर छाये हुए इस अज्ञानान्धकार को दूर क्यों नहीं कर सकते ?

“अन्धकार," उन संत ने उत्तर दिया, "सृष्टि के आरम्भ से ही अन्धकार का महत्व है, इस सृष्टि का अस्तित्व अन्धकार और प्रकाश के द्वैत का ही एक खेल है | मेरा कार्य सिर्फ प्रकाश का विस्तार करना है"|

अन्धकार और प्रकाश सदा रहेंगे | हमारा कार्य अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना है | अन्धकार कभी समाप्त नहीं हो सकता | अन्धकार के बिना यह सृष्टि नहीं चल सकती |

हमारी चेतना में हम परमात्मा के प्रकाश (ब्रह्मज्योति) का ही ध्यान करें | किसी तरह की हीन भावना न लायें | स्वयं को पापी समझना सबसे बड़ा पाप है | जीवन में प्रकाश का विस्तार करेंगे तो अन्धकार स्वतः ही दूर होगा | जीवन के अन्धकार की स्मृतियों को विस्मृत कर दें | परमात्मा की निरंतर उपस्थिति का सतत अभ्यास करें |

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
०१ दिसंबर २०१७

मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्‍ठामि नारद ....

नाहं वसामि वैकुण्‍ठे योगिनां हृदये न च, मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्‍ठामि नारद .......
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आज गीता जयंती के शुभ अवसर पर अप्रत्याशित रूप से भगवान की कृपा से बहुत अच्छा सत्संग हुआ| कुछ मित्रों नें भजन कीर्तन और प्रवचन का कार्यक्रम रखा था जिसमें जाने का सौभाग्य मिला| फिर एक बहुत ही अच्छे संत महात्मा जी के दर्शन का सुअवसर मिला|
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आज के पावन अवसर पर मैं तीन संत महात्माओं को श्रद्धांजलि देना चाहता हूँ|
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इनमें से दो संत महात्मा तो गृहस्थ थे और राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के चूरू जिले से थे| आज उन्हीं के पुण्य प्रताप से गीता के ज्ञान का इतना अधिक प्रचार-प्रसार हुआ है, और गीता की प्रति इतने सस्ते मूल्य पर भारत के हर घर में उपलब्ध है| ये दोनों ही संत मारवाड़ी अग्रवाल परिवार में जन्में थे| एक तो थे प्रातः स्मरणीय स्वर्गीय सेठ जयदयाल गोयनका जिन्होंने आरम्भ आरम्भ में तो गीता का सिर्फ एक ही श्लोक पढ़कर भगवान श्रीकृष्ण की पराभक्ति व परम कृपा को प्राप्त किया| इन्होनें गीता प्रेस गोरखपुर, गीताभवन स्‍वर्गाश्रम ऋषिकेश, गोविन्द भवन कोलकाता, श्री ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम चूरू, गीताभवन आयुर्वेद संस्‍थान, आदि संस्थाओं की स्थापना की| यह एक अतिमानवीय कार्य था| किसी भी प्रकार की औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त होने के पश्चात भी वे विद्वता के परम शिखर पर पहुंचे|
दूसरे संत उन्हीं के मौसेरे भाई स्वर्गीय सेठ हनुमान प्रसाद पोद्दार थे जो उनके सम्पर्क में आए तथा गीता प्रेस के लिए समर्पित हो गए| उन्होंने गीता प्रेस से "कल्याण" पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया|
उपरोक्त दोनों ही सेठों को नमन जिन के कारण आज गीता, रामचरितमानस व अन्य धार्मिक साहित्य घर घर में उपलब्ध है|
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तीसरे संत थे स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित (३० नवम्बर १९६७ ---- ३० नवम्बर २०१०) जिनका आज जन्मदिवस भी है और पुण्य स्मृति दिवस भी| ये एक वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे| बाबा रामदेव ने उन्हें भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व सौंपा था, जिस पद पर वे अपनी मृत्यु तक रहे| वे राजीव भाई के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे| ये भी एक परम संत थे जिन्होंने अपने संतत्व को सदा छिपाए रखा|
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उपरोक्त तीनों संतों को पुनश्चः श्रद्धांजली देते हुए इस लेख का समापन करता हूँ|
भगवान श्रीकृष्ण की परम कृपा हम सब पर बनी रहे|
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"वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनं |देवकी-परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

"वंशी विभूषित करान नव नीरदाभात पीताम्बरा अरुण बिम्ब फलाधरोष्टात |
पूर्णेंदु सुंदर मुखार अरविन्द नेत्रात कृष्णात परम किमअपि तत्वमहम न जाने ||"
"कस्तुरी तिलकं ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभं,
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले, वेणु करे कंकणम् |
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि,
गोपस्त्री परिवेश्टितो विजयते, गोपाल चूडामणी ||"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने | प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ||"
भगवान श्रीकृष्ण की जय ||

आजकल एक हिन्दुद्रोही राजनेता स्वयं को ब्राह्मण बता रहे हैं .....

आजकल एक हिन्दुद्रोही राजनेता स्वयं को ब्राह्मण बता रहे हैं | उनसे अनुरोध है कि वे अपना ऋषिगौत्र, प्रवर, वेद, शाखा और सूत्र भी बताने का कष्ट करें | इनका ज्ञान हर ब्राह्मण को होता है | यह भी बताएँ कि उनका यज्ञोपवीत संस्कार कब, कहाँ और किस आचार्य के द्वारा हुआ था ? यह भी बताएँ कि क्या उन्होंने अपने जीवन में कभी गायत्री मन्त्र का जाप किया है, जिसके बिना ब्राह्मण अपने धर्म से च्युत हो जाता है | क्या उन्होंने कभी संध्याकर्म किया है ?

ब्राह्मण के लिए नित्य कम से कम एक माला गायत्री जप अनिवार्य है, जिसके बिना वह ब्राह्मण नहीं रहता | आचार्यों ने ब्राह्मण के लिए नित्य कम से कम दस माला गायत्री जप करने का विधान बताया है, पर एक माला तो किसी भी परिस्थिति में अनिवार्य है | ॐ ॐ ॐ !!

वह हम स्वयं ही हैं .....

वह हम स्वयं ही हैं .....
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इस संसार में जो कुछ भी हम ढूँढ रहे हैं ..... "सुख", "शांति", "सुरक्षा", "आनंद", "समृद्धि", "वैभव", "यश", और "कीर्ति" ...... वह सब तो हम स्वयं ही हैं | बाहर के विश्व में इन सब की खोज एक मृगतृष्णा मात्र है |
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पूर्णता का ध्यान करते हुए पूर्णता को समर्पित होकर ही हम पूर्ण हो सकते हैं | जिस परमब्रह्म परमशिव का कभी जन्म ही नहीं हुआ उस को समर्पित होकर ही हम अमर हो सकते हैं |
जिसे हम परमब्रह्म, सदाशिव या परमशिव कहते हैं, वह ही पूर्णता है जिसको उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है | जब तक हम उसमें समर्पित नहीं हो जायेंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी | पूर्णता का एकमात्र मार्ग है ..... परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की गहन अभीप्सा | अन्य कोई मार्ग नहीं है | जब इस मार्ग पर चलते हैं तो परमप्रेमवश प्रभु स्वयं ही निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं | कुछ बनना और कुछ होना ..... ये दोनों अलग अलग अवस्थाएँ हैं, जो कभी एक नहीं हो सकतीं |
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते |पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७

हे गुरु रूप परमशिव परब्रह्म, मैं और आप एक हैं ....

हे गुरु रूप परमशिव परब्रह्म, मैं और आप एक हैं| हम ही नौका हैं, हम ही कर्णधार हैं, हम ही भवसागर हैं, और हम ही उस से पार सर्वस्व हैं| जो आप हैं वो ही मैं हूँ, और जो मैं हूँ वो ही आप हैं| हमारे सिवाय अन्य किसी का कोई अस्तित्व नहीं है| हम दोनों एक हैं| कहीं कोई अन्धकार नहीं है, चारों और प्रकाश ही प्रकाश है, आनंद ही आनंद है| वह प्रकाश, और वह आनंद हम स्वयं हैं| हम ही ॐ और उस से भी परे हैं|

आप को भी नमन और मुझ को भी नमन ! आप परमात्मा हैं तो मैं आपकी सर्वव्यापकता हूँ| आप परम प्रेम हैं तो मैं उस से प्राप्त आनंद हूँ| हम एक हैं, और सदा एक ही रहेंगे|
ॐ ॐ ॐ

सफलता और विफलता का मापदंड .....

सफलता और विफलता का मापदंड .....
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हमारी सफलता का एक ही मापदंड है कि हम परमात्मा के कितने समीप हैं| पूरी सत्यनिष्ठा से जितने हम परमात्मा के समीप हैं, उतने ही सफल हैं| जितने हम परमात्मा से दूर है उतने ही विफल हैं|
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भौतिक धन-संपत्ति की प्रचूरता, समाज में अच्छा मान-सम्मान और सब कुछ पाकर भी हम यही सोचते सोचते इस ससार से विदा हो जाते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं कर पाए| हमारा जन्म अपने स्वयं के प्रारब्ध कर्मों के फल भोगने के लिए ही होता है, हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार अपना अपना भाग्य लेकर आता है| प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है| संचित कर्मों से हम मुक्त हो सकते हैं पर प्रारब्ध से नहीं| प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है और करती रहेगी| अपनी विफलताओं का दोष हम दूसरों पर या विपरीत परिस्थितियों पर न डालें|
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हमें कभी भी आत्म-ग्लानि, व क्षोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है वह परमात्मा के बनाए नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा हो रहा हैं| अतः सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए|
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यदि मनुष्य जन्म लेकर भी हम इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाये तो निश्चित रूप से हमारा जन्म लेना ही विफल था, हम इस पृथ्वी पर भार ही थे| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से हमारा कोई भेद नहीं रहेगा|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को प्रणाम !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७

सृष्टि का हर आकर्षण हमें परमात्मा से दूर करता है .....

सृष्टि का हर आकर्षण हमें परमात्मा से दूर करता है| पर परमात्मा का आकर्षण सर्वाधिक मोहक है| ध्यान के भावातिरेक में उनकी एक झलक मिल जाए, वह किसी भी अन्य आकर्षण से अधिक आनंददायक है| अन्य सब कामनाओं को त्याग कर हम उन्हीं के पीछे पूर्ण प्रेम से लगे रहें तो उनका स्पष्ट आभास और आगमन निश्चित रूप से होता है| यह भगवान का ही वचन है जो कभी झूठा नहीं हो सकता|

सर्वप्रथम हम परमात्मा को निज जीवन में व्यक्त करें, फिर हर उपलब्धि स्वतः ही हम से जुड़ जाती है| हर चीज प्रतीक्षा कर सकती है, पर प्रियतम की खोज नहीं| सर्वप्रथम परमात्मा, तत्पश्चात बाकी अन्य कुछ और|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२६ नवम्बर २०१७

कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले पूरी पोस्ट पढ़ें .....

कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले पूरी पोस्ट पढ़ें .....
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फेसबुक पर कुछ अत्यधिक उत्साही और अति सक्रिय लोग सिर्फ शीर्षक देखकर ही अनुमान लगा लेते हैं कि क्या लिखा है| पूरी पोस्ट तो पढ़ते ही नहीं हैं, पर अपनी भयंकर से भयंकर प्रतिक्रिया अभद्र शब्दों में देना शुरू कर देते हैं| उन्हें कम से कम यह तो देखना चाहिए कि क्या लिखा है| एक बार मैनें एक पोस्ट डाली थी जिस में मैनें मेरा यह विचार लिखा था कि प्रत्येक हिन्दू को कम से कम एक बार तो कुरान हदीस और बाइबिल अवश्य पढ लेनी चाहिए| लेख में मैनें इसके कारण भी विस्तार से लिखे थे| पर बिना मेरा लेख पढ़े और समझे, कुछ अति सक्रिय लोगों ने मेरे ऊपर गालियों की बौछार कर दी| फिर मैंने वह पोस्ट ही डिलीट कर दी|
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आपका बड़े से बड़ा विरोधी या प्रतिद्वंद्वी हो जब तक हम उसके विचार और सिद्धांत नहीं जानेंगे तब तक उस से अपना बचाव नहीं कर पायेंगे| सनातन धर्म के विरोधी जो मत हैं जब तक हमें उनके सिद्धांतों का ज्ञान नहीं होगा तब तक हम उनका सामना नहीं कर पाएँगे| एक बार जाकिर नाईक और श्री श्री रविशंकर एक मंच पर थे| श्री श्री रविशंकर वहाँ अपनी ओर से चलाकर धार्मिक सदभाव के लिए गए थे| जाकिर नाईक ने हिन्दू ग्रंथों से अनेक श्लोक उदधृत किये और घोषणा कर दी कि हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार मोहम्मद साहिब ही कल्कि अवतार हैं, और कहा कि हिन्दू ग्रंथों में मोहम्मद साहिब के अवतार होने के बारे में साफ़ साफ़ लिखा है पर हिन्दुओं के पंडित उसे बताते नहीं हैं| जब रविशंकर जी के बोलने की बारी आई तब वे जाकिर नाईक के किसी भी तर्क का खंडन नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने इसकी तैयारी ही नहीं की थी| उन्होंने कुरान हदीस कभी पढी ही नहीं थी| वे हँस कर इतना ही कह पाए की मुझे पता नहीं था कि आपकी याददाश्त इतनी तेज है| दूसरे ही दिन जाकिर नाईक की संस्था ने लाखों कैसेट बनवा कर लाखों लोगों तक पहुँचा दिए जिनमें कहा गया था कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े विद्वान् श्री श्री रवि शंकर को जाकिर नाईक ने शास्त्रार्थ में हरा दिया है और यह मनवा दिया है कि मोहम्मद साहिब के अवतार होने के बारे में हिंदुओं की किताबों में भी लिखा है, अतः सब हिन्दुओं को इस्लाम कबूल कर लेना चाहिए|
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आजकल ईसाई पादरी भी भोलेभाले हिन्दुओं के समक्ष मोक्ष की बातें करते हैं और कहते हैं कि जीसस क्राइस्ट में सिर्फ विश्वास करने से ही मोक्ष मिल जाता है अतः और चक्करों में क्यों पड़ते हो, बपतीज्मा करवा लो और जीसस को अपना मसीहा स्वीकार कर लो, मोक्ष मिल जाएगा| उनका खंडन करने के लिए बाइबिल का ज्ञान भी होना चाहिए|
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एक हिन्दू आश्रम में हिन्दू विद्यार्थियों को तुलनात्मक रूप से कुरान हदीस और बाइबिल भी पढाई जाती है जिससे विद्यार्थियों को पता चल जाए कि उनमें क्या लिखा है ताकि "सर्वधर्म समभाव" का बहुत बड़ा झूठ उन पर प्रभाव नहीं डाले| मैंने भी बाइबिल के ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट का अध्ययन किया था और विदेशों में कई पादरियों से इन पर बहस कर के उन को निरुत्तर भी किया है| मेरा यह स्पष्ट मानना है कि हिन्दू विद्यार्थियों को एक बार तुलनात्मक रूप से बाइबिल और कुरान को अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि वे अज्ञान में न रहें| इन्हें पढ़कर ही तो इनकी निःसारता का पता चलेगा|
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हम तुलनात्मक रूप से अध्ययन नहीं करते अतः "सर्वधर्म समभाव" वाली झूठी और भ्रामक विचारधारा के शिकार बन जाते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

धर्म का आचरण कैसे हो ? .....

धर्म का आचरण कैसे हो ? .....
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हमारे सब दुःखों व कष्टों का कारण हमारे द्वारा धर्म का आचरण नहीं करना ही है| भगवान के प्रति परम प्रेम और सतत समर्पण की भावना द्वारा ही हम धर्म का मर्म समझ सकते हैं| धर्म एक अनुभव और प्रेरणा है जो हमें भगवान से प्राप्त होती है| हमारा आचरण धार्मिक तभी हो सकता है जब हमारे जीवन के केंद्रबिंदु और कर्ता सिर्फ भगवान हों और अपनी सारी इच्छाएँ हम उन में समर्पित कर दें|
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अधिकाँश लोग सोचते हैं कि भगवान हमारी प्रार्थनाओं व स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमें सुख शांति और भोग्य पदार्थ देते हैं| उनके लिए भगवान एक माध्यम यानि साधन है और संसार की वासनाएँ साध्य है| ऐसी सोच और समझ हमें बार बार दुःख के महासागर में डालती है|
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हमारे सब दुःखों का कारण हमारी कामनाएँ हैं| भगवान की ओर समस्त कामनाओं को मोड़ देंगे तो वे हमारी कामनाओं को निश्चित ही समाप्त कर देंगे| पूरा ह्रदय उनको दे देने से ही धर्म का आचरण हो सकता है|
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हे प्रियतम परमात्मा, हमें आपसे प्यार हो गया है, आप सदा हमें प्यारे लगें, आप सदा हमें प्यारे लगें, और आप सदा हमें प्यारे लगें| इसके अतिरिक्त हमारी कोई कामना नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ नवम्बर २०१७

क्या पाकिस्तान की बर्बादी के लिए श्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार हैं ? .....

क्या पाकिस्तान की बर्बादी के लिए श्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार हैं ? .....
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पिछले दिनों यू ट्यूब पर संयोग से कुछ पाकिस्तानी समाचार चैनलें देखी थीं, सब की सब सिर्फ नरेन्द्र मोदी जी को गालियाँ देकर अपनी स्थिति पर रो रही थीं| वास्तव में वहाँ की स्थिति बड़ी विकट है| वे लोग अपनी बर्बादी के लिए श्री नरेन्द्र मोदी को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं|
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उस देश पर इतना कर्जा है जो वह कभी भी नहीं उतार सकता| न तो कोई वहाँ निवेश को तैयार है और न ही वर्ल्ड बैंक कोई नया कर्जा दे रहा है| वहाँ विकास के नाम पर कुछ भी नहीं हो रहा है| सारे राजनेता और वरिष्ठ सैनिक अधिकारी अरबपति हो चुके हैं, उनके रुपये विदेशी बेंकों में हैं| आम आदमी अपनी रोजी रोटी के लिए पिस रहा है|
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क़ुरबानी के नाम पर सारी गायों को वे मारकर खा चुके हैं अतः ताजे दूध की उपलब्धि नहीं है| ऑस्ट्रेलिया से सूखा दूध पाउडर मंगाकर उसको घोलकर दूध बनाते हैं और बेचते हैं| अमेरिका ने बीच में रुपये देने बंद कर दिए तो पाकिस्तान के पास दूध पाउडर खरीदने के लिए रूपये ही नहीं रहे अतः वहाँ हाहाकार मच गया| बच्चों के लिए भी दूध नहीं रहा| अमेरिका के आगे हाथ-पैर जोड़े तब अमेरिका से मिले पैसों से उन्होंने दूध पाउडर खरीदा और बच्चों को दूध मिलना शुरू हुआ|
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वहाँ जिहादी आतंकवाद के अलावा और कोई उद्योग धंधे नहीं रहे हैं| चीन ने बहुत अधिक ब्याज दर पर पकिस्तान को कर्ज दिया है जिस से सड़कें बनी हैं| पर उन सडकों पर चीन का ही अधिकार है| चीन वहाँ खूब निवेश कर रहा है पर साथ साथ जमीनों पर भी अधिकार कर रहा है|
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वर्ल्ड बैंक उधार दिए पैसे बापस माँग रहा है पर चुकाने के लिए पकिस्तान के पास रुपये हैं नहीं, सिर्फ परमाणु बम हैं| परमाणु बम किस काम आयेंगे? कौन उन से डरता है? हो सकता है उधार चुकाने के लिए पकिस्तान को कराची बंदरगाह नीलाम करना पड़े|
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भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह क्या खोल दिया, अफगानिस्तान से होने वाला पाकिस्तान का व्यापार एक चौथाई रहा गया| पाकिस्तान की युवा पीढी हिसाब माँग रही है तो उनको कहा जा रहा है कि कश्मीर के लिए कुर्बानी करो|
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पाकिस्तानी वित्तमंत्री का खाता सीज कर दिया गया है और वे लन्दन के एक अस्पताल में भर्ती हैं| पाकिस्तान में सब्जियाँ बहुत मंहगी हैं, टमाटर साढ़े चार सौ से पाँच सौ रूपये किलो बिक रहा है| पाकिस्तान की हालत ऐसी है कि वह सिर्फ अमेरिकी मदद पर टिका हुआ है|
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पाकिस्तान एक विफल देश है जो अपने आप ही टूट कर बिखर जाएगा| पाकिस्तान का अन्त निकट है| अगले दो-तीन वर्षों में पकिस्तान की स्थिति सोमालिया जैसे भूखे नंगे देश की सी हो जायेगी| उनके पास सिर्फ एटम बम रहेंगे जिनसे वे अपनी प्रजा का तो पेट भर नहीं सकेंगे पर भारत पर आक्रमण कर सकते हैं| अपनी जनता का ध्यान बँटाने के लिए वे दिन रात मोदी को और भारत को गालियाँ देते रहते हैं|

क्या भारत और श्री नरेन्द्र मोदी उनकी विफलता के लिए जिम्मेदार हैं? क्या यह उनके कर्मों का फल नहीं है?
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हे प्रभु, ऐसे पैशाचिक विचारों वाले पड़ोसी देश से भारत की रक्षा करो| भारत की जनता भी पकिस्तान के नापाक इरादों से सचेत रहे |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः : मैंने जो कुछ भी लिखा है वह पाकिस्तानी समाचार माध्यमों से प्राप्त समाचारों का ही सार है| अपनी और से कुछ भी नहीं लिखा है |

दलाई लामा को अब भारत से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए .....

दलाई लामा को अब भारत से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए| अब भारत में उनको रखने का उद्देश्य पूरा हो चुका है| भारत को उनकी आवश्यकता नहीं है और उनको भी भारत की आवश्यकता नहीं है| एक षडयंत्र के अंतर्गत अमेरिका की सीआईए ने ३१ मार्च १९५९ को (उस समय मात्र १५ वर्ष के) दलाई लामा को भारत में घुसा दिया था ताकि भारत और चीन के मध्य सदा तनाव बना रहे| उनके साथ उस समय ८० हज़ार तिब्बती शरणार्थी भी आये थे| भारत चाहता तो उस समय तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर एक स्वतंत्र देश बना सकता था| भारत के पास उस समय इतनी क्षमता थी| तिब्बत ..... भारत और चीन के मध्य एक buffer state की तरह रहता तो चीन की सीमा भारत से कहीं पर भी नहीं लगती, और चीन से कोई सीमा विवाद भी नहीं रहता| पर भारत का राजनीतिक नेतृत्व उस समय अदूरदर्शी, किंकर्तव्यविमूढ़ और अकुशल था|
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दलाई लामा कोई आध्यात्मिक संत नहीं हैं| अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें आध्यात्मिक संत के रूप में project कर रखा है| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कुछ भी लेनादेना नहीं है| आदतन वे नित्य बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती सूअर का और गाय का मांस खाते हैं| उनकी आस्था बौद्ध मत की वज्रयान शाखा से है|
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अब तो दलाई लामा स्वयं ही तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता दे रहे हैं, अतः भारत से उनको चले जाना चाहिए| दलाई लामा को भारत से बाहर करना भारत के राष्ट्रीय हित में रहेगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२५ नवम्बर २०१७

स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है ....

>>>>> स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है ....
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शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः ..... कृष्ण यजुर्वेद शाखा के श्वेताश्वतरोपनिषद में सनातन हिन्दू धर्म का सारा साधना पक्ष और ज्ञानयोग दिया हुआ है| इस उपनिषद् के छओं अध्यायों में जगत के मूल कारण, ॐकार-साधना, परमात्मतत्त्व से साक्षात्कार, ध्यानयोग, प्राणायाम, जगत की उत्पत्ति, जगत के संचालन और विलय का कारण, विद्या-अविद्या, जीव की नाना योनियों से मुक्ति के उपाय, और परमात्मा की सर्वव्यापकता का वर्णन किया गया है| सारी आध्यात्मिक साधनाएँ यहाँ से आरम्भ होती हैं| यह उपनिषद् अपने दूसरे अध्याय में हम सब को अमृत पुत्र कहता है| हम सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं|
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जो भी शिक्षा हमें जन्म से पापी होना सिखाती है वह वेदविरुद्ध होने के कारण विष के समान त्याज्य है| सिर्फ वेद ही प्रमाण हैं| कोई भी पौराणिक या आगम शास्त्रों की शिक्षा भी यदि वेदविरुद्ध है तो वह त्याज्य है| कुछ मंदिरों में आरती के बाद " पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः" जैसा अभद्र मंत्रपाठ करते हैं, मैं उस पर ध्यान नहीं देता क्योंकि मेरी दृष्टी में यह मन्त्र वेदविरुद्ध है|

ईसाईयत यानि ईसाई पंथ का मुख्य आधार मूल पाप यानि Original Sin का सिद्धांत है अतः वह वेदविरुद्ध, अमान्य और त्याज्य है| सारी ईसाईयत Original Sin के सिद्धांत पर खड़ी है जो खोखला और झूठा सिद्धांत है| ईसाई पंथ दो सिद्धांतों पर एक खडा है .... पहला तो Original Sin, और दूसरा Resurrection.| इनके बिना यह पंथ आधारहीन है| दोनों ही झूठे हैं|
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श्रुति भगवती तो ऋग्वेद में कहती है ..... "अहं इन्द्रो न पराजिग्ये" अर्थात मैं इंद्र हूँ, मेरा पराभव नहीं हो सकता| वेदों के चार महावाक्य हैं ....
(१) प्रज्ञानं ब्रह्म --- (ऐतरेय उपनिषद) --- ऋग्वेद,
(२) अहम् ब्रह्मास्मि --- (बृहदारण्यक उपनिषद) --- यजुर्वेद,
(३) तत्वमसि --- (छान्दोग्य उपनिषद्) --- सामवेद,
(४) अयमात्माब्रह्म --- (मांडूक्य उपनिषद) ---अथर्व-वेद |
हम महान ऋषियों की संतानें हैं, अतः जिन महावाक्यों को आधार बना कर हमारे हमारे महान ऋषियों ने तपस्या की और महान बने वे महावाक्य हमारे भी जीवन का आधार बनें| इन्हें परमात्मा की कृपा द्वारा ही समझा जा सकता है क्योंकि इनके दर्शन ऋषियों को गहन समाधि में हुए| इनकी समाधि भाषा है| इन्हें कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है|
सारे उपनिषद् हमें प्रणव यानि ओंकार पर ध्यान करने का आदेश देते हैं| गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण का यही आदेश और उपदेश है| हमारे शास्त्रों में कहीं भी मनुष्य को जन्म से पापी नहीं कहा गया है| अतः हम स्वधर्म पर अडिग रहें और स्वधर्म का पालन करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ नवम्बर २०१७

समृद्धि और विकास क्या हैं ? हम समृद्ध और विकसित कैसे बनें ?

समृद्धि और विकास क्या हैं ? हम समृद्ध और विकसित कैसे बनें ?
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भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की निरंतर आपूर्ति ही समृद्धि है| निजात्मा का विकास ही वास्तविक विकास है | समृद्धि आती है अपनी मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमताओं को विकसित करने से, अतः इन क्षमताओं को विकसित कर के ही हम समृद्ध बन सकते हैं | निजात्मा का विकास ही वास्तविक विकास है जो परमात्मा के प्रति परम प्रेम, समर्पण, और परमात्मा की कृपा से ही हो सकता है |
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हमें क्या चाहिए और हम क्या चाहते हैं, इसमें बहुत अधिक अंतर है | हमें जिस भी वस्तु की या परिस्थिति की आवश्यकता हो वह हमें तुरंत प्राप्त हो जाए यही समृद्धि है | अपने अहंकार की तृप्ति के लिए वस्तुओं को और धन को एकत्र करना कोई समृद्धि नहीं है | ईमानदारी से रुपये कमाना अपराध नहीं है, अपराध तो बेईमानी से अर्जित करना है | रूपयों का सदुपयोग होना चाहिए | दुरुपयोग से हमें भविष्य में दरिद्रता का दुःख भोगना पड़ता है | रुपयों की आवश्यकता तो सब को पडती है चाहे वह साधू, संत, वैरागी हो या गृहस्थ | भूख सब को लगती है, ठण्ड और गर्मी भी सब को लगती है, और बीमार भी सभी पड़ते हैं | भोजन, वस्त्र, निवास और रुग्ण होने पर उपचार के लिए धन आवश्यक है | जितना आवश्यक है उतना धन तो सबको कमाना ही चाहिए पर उसके पश्चात अधिक से अधिक समय परमात्मा के ध्यान में लगाना चाहिए | आज के युग में समाज अभावग्रस्त है | अतः किसी को समाज पर भार नहीं बनना चाहिए | जिन्होनें सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दिया है उनकी बात दूसरी है |
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एक आध्यात्मिक पूँजी भी है| उस आध्यात्मिक पूँजी से सम्पन्न होने पर परिस्थितियाँ ऐसी बनती हैं कि भौतिक पूँजी की भी कमी नहीं रहती |
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प्रकृति उपलब्ध जीवों की आवश्यकतानुसार ही उत्पन्न करती है | हमें जितने की आवश्यकता है , उससे अधिक पर यदि हम अपना अधिकार समझते हैं तो यह एक हिंसा ही है | आवश्यकता से अधिक का संग्रह "परिग्रह" कहलाता है | पाँच यमों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) में अपरिग्रह भी है, जिनके बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते| सच्चे साधू संत सबसे बड़े अपरिग्रही होते हैं |
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सभी को शुभ कामनाएँ | ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
November 22, 2017

एक साथ इतने गुण कहाँ से लायें ? .....

एक साथ हम "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" कैसे बनें कभी इस पर भी विचार करें | बनना तो पडेगा ही क्योंकि यह भगवान का आदेश है ......

"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्" ||२.४५||

भगवान ने पाँच आदेश एक साथ दे दिए हैं | पर सभी एक दूसरे के पूरक हैं | जब तक हम इस स्थिति में नहीं पहुंचेंगे तब तक पाशों में बंधे ही रहेंगे, और पुनर्जन्म होता ही रहेगा | इसके लिए हमें किन्हीं तत्वज्ञ श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन लेना ही पड़ेगा |
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इसको समझना और व्यवहार रूप में उपलब्ध करना असम्भव तो नहीं पर कठिन अवश्य है | इसको समझने के लिए अर्जुन जैसा शिष्य और भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु हों, या देवर्षि नारद जैसे शिष्य और भगवान सनत्कुमार जैसे गुरु हों, तभी कल्याण हो सकता है |
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हमारे में पात्रता हो, बस यही आवश्यक है, फिर सब काम हो जाएगा |
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हे प्रभु कल्याण करो | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता का सच ......

विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता का सच ......
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मेरा किसी से कोई द्वेष या दुर्भावना नहीं है, जो भी लिख रहा हूँ वह निष्पक्ष है| अतः बिना पूरा लेख पढ़े, कोई अति उत्साही भड़के नहीं और मुझे गालियाँ देना आरम्भ न करे|
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विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता आयोजित करवाने वाले संगठन उन व्यापारियों के समूह हैं जो सौंदर्य उत्पादन बेचते हैं| जो संगठन इसकी तैयारी करवाते हैं वे भी सौंदर्य उत्पादनों के व्यापारी है|
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ऐसी प्रतियोगिताओं का एकमात्र उद्देश्य अपने सौंदर्य उत्पादनों का विक्रय बढ़ाना है| यह एक मार्केटिंग टेक्निक मात्र है| पहले तो ये सुन्दर महिलाओं की देह दिखा कर विज्ञापनों से पैसा कमाते हैं| फिर जो सुन्दरी चुनी जाती है उसे एक वर्ष तक उनकी हर शर्त मानने को बाध्य होना पड़ता है और बिना कोई अतिरिक्त पैसे लिए विज्ञापनों का मॉडल बनना पड़ता है| एक वर्ष बाद उसे कोई नहीं पूछता| हाँ, फिल्मों में अभिनय आदि करने या मॉडलिंग के अवसर अवश्य मिल जाते हैं| यह कोई नारी सशक्तिकरण का कार्यक्रम नहीं है|
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जब विदेशी सौंदर्य उत्पादनों की माँग भारत में घट जाती है तब भारत की किसी सुन्दरी को विश्व सुन्दरी चुन लिया जाता है| यह सिर्फ एक मार्केटिंग है|
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विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता सुन्दर महिलाओं की नग्न प्राय देह का व्यवसायिक लाभ के लिए किया जाने वाला प्रदर्शन मात्र है| इंच और सेन्टीमीटर में जांघें और नितंब नापे जाते हैं, स्तन सुडौल हैं कि नहीं, होठ मानकों पर खरे उतरते हैं कि नहीं, यह देखा जाता है| फिर आखिर में सुंदरी से रटी रटाई मानवता की बातें पूछी जाती हैं, और विजेता घोषित होने पर उसे रोने का अभिनय करना पड़ता है|
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सौंदर्य उत्पादनों के बाजार की शक्तियाँ अपनी आवश्यकतानुसार इस तरह की प्रतियोगिताएँ करवाती हैं| इसमें कोई उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है| धन्यवाद|

प्रमाद ही मृत्यु है .....

प्रमाद ही मृत्यु है .....
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भक्तिसूत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु भगवान सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य हैं | उन्होंने अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को सर्वप्रथम ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया था | ब्रह्मा जी के ध्यान के परिणामस्वरूप साक्षात् श्री हरि ने ही इन चारों सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार के रूप में अवतार लिया था | शरीर से ये पाँच वर्ष की आयु वाले लगते थे तथा सर्वदा पाँच वर्ष की आयु के देह में ही रहे, अभी भी ये पाँच वर्ष की आयु के ही लगते हैं | समय समय पर हर युग में ये प्रकट हुए हैं |
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भगवान सनत्कुमार ने अपने उपदेशों में मृत्यु के अस्तित्व को नकार दिया है | महाभारत काल में महात्मा विदुर की प्रार्थना मान कर ये प्रकट हुए और धृतराष्ट्र को भी उपदेश दिए जो सनत्सुजातीय ग्रन्थ में उपलब्ध हैं | उन का कथन था .. "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि", अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है | अपने "अच्युत स्वरूप" को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है और इसी का नाम "मृत्यु" है | जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए, बस वहीँ मृत्यु है |

भगवान सनत्कुमार की जय हो | ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय |
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दुर्गा सप्तशती में 'महिषासुर' --- प्रमाद --- यानि आलस्य रूपी तमोगुण का ही प्रतीक है | आलस्य यानि प्रमाद को समर्पित होने का अर्थ है -- 'महिषासुर' को अपनी सत्ता सौंपना |
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तैत्तिरीयोपनिषद् भी प्रमाद से बचने का उपदेश देता है ......
धर्मं चर स्वाध्यायात् मा प्रमदः आचार्याय प्रियं धनम् आहृत्य प्रजा - तन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः सत्यात् न प्रमदितव्यम् धर्मात् न प्रमदितव्यम्। कुशलात् न प्रमदितव्यम् भूत्यै न प्रमदितव्यम् स्वाधायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् |
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हे भगवन आपकी जय हो | सभी का कल्याण करो | हमें धर्म, स्वाध्याय, और सत्य के पालन में कभी प्रमाद न हो | हम अपने अच्युत स्वरुप में रहें, कभी च्युत न हों |
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ओम् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि र्व्यशेम देवहितं यदायुः ||
स्वस्ति न इन्द्रो वॄद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः |
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ||
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति |

कृपा शंकर
१९ नवम्बर २०१७

मैं सिर्फ भारतीय मूल की देसी गायों को ही गौमाता मानता हूँ ....

गौ वंश की रक्षा ......

मैं सिर्फ भारतीय मूल की देसी गायों को ही गौमाता मानता हूँ |

विदेशी नस्ल की विलायती गायें जिन्हें सूअर के जीन के साथ मिलाकर विकसित किया गया है, गौमाता नहीं हो सकतीं | इन विलायती गायों के बछड़े किसी काम के नहीं होते | इन्होने किसानों को दुखी कर रखा है |
मेरा सुझाव है कि विलायती गायों को गौ रक्षण क़ानून से बाहर रखा जाए | गौ रक्षण सिर्फ देसी गायों का ही हो |

ॐ ॐ ॐ !!

मुझे मोक्ष या मुक्ति नहीं चाहिए ....

मुझे ऐसा कोई मोक्ष या ऐसी कोई मुक्ति नहीं चाहिए जैसी सांसारिक लोगों की अवधारणा है| मुझे परमात्मा का कार्य करने के लिए बार बार पुनर्जन्म और लाख गुणा अधिक उत्साह और अखंड ऊर्जा चाहिए|

भगवान परमशिव से प्रार्थना है कि मेरा अगला जन्म ऐसे माँ-बाप के यहाँ हो जो वेदों के पूर्ण मर्मज्ञ हों, जिनसे मैं वेदों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकूँ| जन्म भी ऐसी प्रज्ञा और बौद्धिक प्रतिभा के साथ हो जो वेदों की समाधि भाषा को समझने में समर्थ हो|

प्रारब्धवश इस जन्म में तो बुद्धि में इतना कूड़ा-कचरा बैठा है कि मैं उपनिषदों की भाषा भी समझ नहीं पा रहा हूँ, यह मेरा दुर्भाग्य है|

पर इस जन्म में भी मरते दम तक ध्यान साधना व स्वाध्याय तो चलता ही रहेगा| आत्मा नित्य मुक्त है| मैं भी नित्य मुक्त था, नित्य मुक्त हूँ, और नित्य मुक्त रहूँगा| बुद्धि पर एक कोहरा सा छाया हुआ है जो निश्चित रूप से शीघ्र ही दूर होगा|

मैं निश्चित रूप से परमात्मा के साथ एक हूँ और सदा एक रहूँगा| उनका प्रेम मेरा प्रेम है, और उनकी पूर्णता ही मेरी पूर्णता है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!