महाशक्ति कुण्डलिनी और परमशिव का मिलन ही योग है .....
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सिद्ध गुरु की आज्ञा से भ्रूमध्य में दृष्टी रखते हुए उसके बिलकुल पीछे आज्ञाचक्र पर ध्यान किया जाता है| गुरुकृपा से कुण्डलिनी स्वयं जागृत होकर हमें जगाती है| ध्यान की गहराई में कुण्डलिनी मूलाधार चक्र से जागृत होकर स्वतः ही विभिन्न चक्रों को भेदती हुई सुषुम्ना में विचरण करने लगती है| उसके लिए कोई प्रयास नहीं करने पड़ते| प्रयास करना पड़ता है सिर्फ गुरु की बताई हुई विधि से आज्ञाचक्र पर ध्यान और बीज मन्त्र के जाप पर| मन्त्र की शक्ति और गुरु की कृपा ही सारे कार्य करती है|
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गुरु कृपा भी तभी होती है जब हमारे विचार और हमारा आचरण पवित्र होता है| विचारों और आचरण में पवित्रता के लिए भगवान के प्रति प्रेम जागृत कर उन्हें समर्पित होना पड़ता है, फिर सारा कार्य स्वतः ही होने लगता है| भगवान से प्रेम जागृत करना, विचारों में और आचरण में पवित्रता लाना .... यही हमारा कार्य है, यही साधना है| आगे का सारा कार्य भगवान की कृपा से स्वतः ही होने लगता है| हमारे विचार और हमारा आचरण पवित्र हों, व हमारे ह्रदय में भगवान् की पराभक्ति जागृत हो, यही भगवान से हमारी प्रार्थना है|
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प्रकृति में कुछ भी निःशुल्क नहीं है| हर चीज का शुल्क देना पड़ता है| भगवान की कृपा भी मुफ्त में नहीं मिलती, उसकी भी कीमत चुकानी पड़ती है| वह कीमत है .... "हमारे ह्रदय का पूर्ण प्रेम और हमारे आचार-विचार में पवित्रता"|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जनवरी २०१८
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सिद्ध गुरु की आज्ञा से भ्रूमध्य में दृष्टी रखते हुए उसके बिलकुल पीछे आज्ञाचक्र पर ध्यान किया जाता है| गुरुकृपा से कुण्डलिनी स्वयं जागृत होकर हमें जगाती है| ध्यान की गहराई में कुण्डलिनी मूलाधार चक्र से जागृत होकर स्वतः ही विभिन्न चक्रों को भेदती हुई सुषुम्ना में विचरण करने लगती है| उसके लिए कोई प्रयास नहीं करने पड़ते| प्रयास करना पड़ता है सिर्फ गुरु की बताई हुई विधि से आज्ञाचक्र पर ध्यान और बीज मन्त्र के जाप पर| मन्त्र की शक्ति और गुरु की कृपा ही सारे कार्य करती है|
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गुरु कृपा भी तभी होती है जब हमारे विचार और हमारा आचरण पवित्र होता है| विचारों और आचरण में पवित्रता के लिए भगवान के प्रति प्रेम जागृत कर उन्हें समर्पित होना पड़ता है, फिर सारा कार्य स्वतः ही होने लगता है| भगवान से प्रेम जागृत करना, विचारों में और आचरण में पवित्रता लाना .... यही हमारा कार्य है, यही साधना है| आगे का सारा कार्य भगवान की कृपा से स्वतः ही होने लगता है| हमारे विचार और हमारा आचरण पवित्र हों, व हमारे ह्रदय में भगवान् की पराभक्ति जागृत हो, यही भगवान से हमारी प्रार्थना है|
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प्रकृति में कुछ भी निःशुल्क नहीं है| हर चीज का शुल्क देना पड़ता है| भगवान की कृपा भी मुफ्त में नहीं मिलती, उसकी भी कीमत चुकानी पड़ती है| वह कीमत है .... "हमारे ह्रदय का पूर्ण प्रेम और हमारे आचार-विचार में पवित्रता"|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जनवरी २०१८