Monday, 22 January 2018

क्या स्वयं से पृथक अन्य कोई भी है ? .....

क्या स्वयं से पृथक अन्य कोई भी है ? .....
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सांसारिक चेतना में हर प्राणी एक दूसरे से पृथक है, पर आध्यात्मिक चेतना में नहीं| आध्यात्मिक चेतना में एकमात्र अस्तित्व परमात्मा का ही है, अन्य किसी का नहीं| ध्यान साधना की गहराइयों में पूर्णतः समर्पित हो जाने के पश्चात् पृथकता रूपी "मैं" का नहीं, सिर्फ आत्मतत्व रूपी "मैं" का ही अस्तित्व रहता है| उस आत्मतत्वरूपी "मैं" में ही अपनी चेतना बनाए रखें| उस आत्मतत्व "मैं" के अतिरिक्त अन्य किसी का कोई अस्तित्व नहीं है| जब मुझ से अतिरिक्त अन्य कोई है ही नहीं, तब किस का और किस को भय? जब कोई अन्य होगा तभी तो भय होगा, यहाँ तो कोई अन्य है ही नहीं| पर लोक व्यवहार में इस पृथकतारूपी "मैं" का होना भी आवश्यक है| यह एक गूढ़ विषय है जिसे बुद्धि से नहीं, अनुभव से ही सीखा जा सकता है|
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सभी को सप्रेम सादर नमन और शुभ कामनाएँ| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जनवरी २०१८

1 comment:

  1. वेद/उपनिषदों और ब्रह्मसूत्र को समझना तो मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है| अब तो उनको समझने का प्रयास करना भी छोड़ दिया है| सारे प्रश्न भी तिरोहित हो गये हैं, कोई शंका या संदेह नहीं है| कोई जिज्ञासा भी अब नहीं है| यह सीमित मन भी शांत है| कोई पीड़ा या व्याकुलता अब नहीं रही है| जीवन में पूर्ण संतुष्टि है| ह्रदय के सिंहासन पर जब से परम प्रिय आकर बिराजमान हो गए हैं, तब से अन्य कोई आकर्षण नहीं रहा है| उनका मनोहारी रूप इतना आकर्षक है जिसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है| बस वे ही इस चेतना में निरंतर रहें, और कुछ भी नहीं चाहिए|
    ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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