Friday, 10 January 2025

अपनी कमियों व कर्मों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, भगवान नहीं ---

 अपनी कमियों व कर्मों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, भगवान नहीं ---

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भगवान की कोई इच्छा या अनिच्छा नहीं होती, उनकी कृपा सब पर बराबर है। हम अपनी असफलता/असमर्थता/असहायता के लिए भगवान को दोष देते हैं, यह गलत है। यह झूठ है कि -- वही होता है जैसी भगवान की इच्छा होती है। यहाँ भगवान की कोई इच्छा या अनिच्छा नहीं है, यह सृष्टि अपने नियमों के अनुसार चल रही ही। प्रकृति अपने नियमों से कोई समझौता नहीं करती। उन नियमों को न समझना हमारा अज्ञान है। जिसे हम नहीं समझते, उसे अपना भाग्य कह देते हैं। उस दुर्भाग्य या सौभाग्य के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, भगवान नहीं।
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गुरुकृपा से मैंने कर्मफलों व पुनर्जन्म को बहुत अच्छी तरह से समझा है, और बहुत कुछ अनुभूत किया है जो अनिर्वचनीय है। मेरी भी अपनी सीमाएँ हैं, विवशता है। अपनी अनुभूतियों को शब्द देने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है। इसमें दोष किसी अन्य का या भगवान का नहीं है; मेरे अपने ही कर्मों का ही है, जिन का फल मैं भुगत रहा हूँ। अपने कई अनुभवों को मैं व्यक्त करना चाहता हूँ, लेकिन अपनी स्वयं कि कमजोरियों के कारण नहीं कर सकता। भगवान ने तो अपनी परमकृपा कर के अपने कई रहस्य मुझ पर अनावृत किए हैं -- जिनकी मुझमें पात्रता थी भी या नहीं, मुझे नहीं पता।
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सब बंधनों को तोड़ने का एकमात्र उपाय है - भगवान की भक्ति (परमप्रेम) और समर्पण; जैसा भगवान ने गीता में बताया है ---
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
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इस से अधिक कुछ लिखने की आंतरिक अनुमति मुझे नहीं है। आप सब में परमात्मा को नमन !! ॐ तत्सत् !! हरिः ॐ !!
कृपा शंकर
११ जनवरी २०२२ (23:32hrs.)

(संशोधित व पुनःप्रस्तुत) ग्रेट-निकोबार द्वीप व इंदिरा पॉइंट की कुछ स्मृतियाँ ---

 (संशोधित व पुनःप्रस्तुत) ग्रेट-निकोबार द्वीप व इंदिरा पॉइंट की कुछ स्मृतियाँ ---

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लगभग छह वर्ष पहिले लिखे एक बहुत पुराने यात्रा-वृतांत को संशोधित कर के यह लेख लिख रहा हूँ। २२-२३ वर्ष पूर्व भारत के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित ग्रेट-निकोबार द्वीप की यात्रा का अवसर सन २००१ में मुझे दो बार मिला था। उसकी बड़ी मधुर स्मृति है। ग्रेट निकोबार द्वीप के समुद्र तट विश्व के सबसे शानदार और सबसे सुरक्षित समुद्र तटों में से हैं। सन २००४ में आई सुनामी में वहाँ बहुत लोग मरे, व सब कुछ नष्ट हो गया था। लेकिन शीघ्र ही सब कुछ पुनश्च: सुव्यवस्थित हो गया। वहाँ पर्यटकों के निवास के लिए आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं, इसलिए पर्यटन व्यवसाय आरंभ नहीं हुआ है। विदेशी पर्यटकों को यहाँ आने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं है। लगता है वहाँ तमिलनाडु से आकर बसे हुए लोग अधिक हैं। पंजाबी, बिहारी, तेलुगु और मलयाली भी हैं। हिन्दी वहाँ की सामान्य भाषा है, जो सभी को आती है। अधिकांश जनसंख्या हिंदुओं की है अतः कई हिन्दू मंदिर हैं, जिनमें मुझे पुजारी तमिल भाषी ही मिले, लेकिन उनको हिन्दी का अच्छा ज्ञान था। एक बहुत बड़ा रोमन केथोलिक चर्च भी था। निकोबारी लोग जरा हट कर रहते हैं। उनके मकान दूसरी तरह के होते हैं।
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वहाँ के अति सुंदर वीरान समुद्र तटों पर और जंगलों में मैं अकेला ही नित्य प्रातः कई दिनों तक निर्भय होकर घूमने जाता था, क्योंकि कोई हिंसक जीव वहाँ नहीं होते। कोई चोर व डकैत भी नहीं होते। एक बार मुझे लगा कि वहाँ कोई जंगली सूअर है तो दूसरे दिन आत्मरक्षा के लिए एक बल्लम हाथ में लेकर गया जिससे आत्मरक्षा का पूरा मुझे पूरा अभ्यास था। लेकिन उसकी आवश्यकता कभी नहीं पड़ी। फिर वहाँ के स्थानीय लोगों ने बताया कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। वहाँ कोई जंगली सूअर नहीं होते। दूर से किसी जंगली हिरण को मैंने सूअर समझ लिया होगा।
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वहाँ के इतिहास के अनुसार दक्षिण भारत के हिन्दू चोल साम्राज्य के राजा राजेन्द्र चोल का साम्राज्य पूरे इंडोनेशिया, लाओस, थाईलेंड और विएतनाम तक था। वे एक बार केरल से दस सहस्त्र सैनिकों के साथ इस द्वीप पर पधारे थे, और यहाँ एक सहस्त्र रुद्राक्ष के पेड़ लगवाये। रुद्राक्ष के पेड़ की आयु दो हजार वर्ष होती है। उनके समय के लगाए हुए पाँच सौ से अधिक रुद्राक्ष के वृक्ष अभी भी जीवित हैं। रुद्राक्ष की मालाएं वहाँ खूब मिलती हैं। इंडोनेशिया का सुमात्रा द्वीप अधिक दूर नहीं है। वहाँ भी खूब रुद्राक्ष के वृक्ष होते हैं।
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भारत के सबसे दक्षिणी भाग का नाम "इंदिरा पॉइंट" है। यह नाम स्वयं इंदिरा गाँधी ने दिया था। इस से पूर्व इस स्थान का नाम पिग्मेलियन पॉइंट था। यह बहुत सुन्दर एक छोटा सा गाँव है। नौसेना, वायुसेना, तटरक्षक व कुछ अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारी यहाँ रहते थे। अब तो सुना है सेना का बहुत बड़ा प्रतिष्ठान वहाँ है। वहाँ के प्रकाश-स्तम्भ पर चढ़ कर बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं। मैं सन २००१ में वहाँ गया था। बाद में २००४ में आई सुनामी में यह प्रकाश स्तम्भ थोड़ा सा हटकर पानी से घिर गया था। इस सुनामी में यहाँ के २० परिवार, चार वैज्ञानिक और बहुत सारे सरकारी कर्मचारी मारे गए थे।
यहाँ के जंगलों में मैनें एक विशेष अति सुन्दर चिड़िया की तरह के पक्षी देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी दिखाई नहीं दिये। ऐसे ही एक विशेष शक्ल के बन्दर देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी नहीं दिखाई दिए। एक समुद्र तट यहाँ है जिस की रेत में अंडे देने के लिए समुद्री कछुए ऑस्ट्रेलिया तक से आते हैं।
यह स्थान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप पर निकोबार तहसील की लक्ष्मी नगर पंचायत में है।
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ग्रेट निकोबार द्वीप पर सबसे बड़ा स्थान "कैम्पवेल बे" है जो अच्छी बसावट वाला एक छोटा सा नगर है। सारी सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं। यहाँ तमिलनाडू से आकर बहुत लोग बसे हैं, जो सब हिंदी बोलते हैं। यहाँ के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं। वहाँ प्रातःकाल घूमने का बड़ा ही आनंद आता है। 'कैम्पवेल बे' नगर में आने के लिए पोर्ट ब्लेयर से पवनहंस हेलिकोप्टर सेवा थी। सप्ताह में एक दिन एक यात्री जलयान भी पोर्ट ब्लेयर से यहाँ आता था। व्यवसायिक रूप से ताड़ के पेड़ और जायफल/जावित्री के पौधे भी खूब बड़े स्तर पर लगाए हुए थे। यहाँ के शास्त्री नगर से इंदिरा पॉइंट की दूरी २१ किलोमीटर है जो सड़क से जुड़ा हुआ है। मार्ग में गलाथिया नाम की एक नदी भी आती है जिस पर पुल बना हुआ है। बिजली उत्पादन का भी एक हाइड्रो-इलेक्ट्रिक संयंत्र उस समय लगवाया जा रहा था।
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यहाँ से सिर्फ १६३ किलोमीटर दक्षिण में इंडोनेशिया में सुमात्रा का सबांग जिला है। मैं अंडमान-निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ जिनमें से कुछ तो अविस्मरणीय हैं। मलयेशिया, इन्डोनेशिया और सिंगापूर का भी भ्रमण किया है।
कृपा शंकर
११ जनवरी २०२४

भगवान से कुछ मांगना भगवान का अपमान है ---

 भगवान से कुछ मांगना भगवान का अपमान है ---

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हम सर्वव्यापी भगवान को कुछ दे ही सकते हैं, उनसे कुछ ले नहीं सकते। भगवान स्वयं ही यह सब कुछ बन गए हैं। सब कुछ तो वे ही हैं। सारा सामान उन्हीं का है। हम भी उन्हीं के हैं, उनसे कुछ मांगना उनका अपमान है।
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भगवान को देने के लिए अन्तःकरण के रूप में हमारे पास चार ही चीजें हैं, वे भगवान को समर्पित कर दें, अन्य कुछ भी हमारे पास नहीं है। भगवान को हम अपना -- (१) मन, (२) बुद्धि, (३) चित्त, और (४) अहंकार, -- ये ही दे सकते हैं। बाकी हमारे पास अन्य कोई सामान नहीं है। उनको ये बापस लौटाने की प्रक्रिया ही आध्यात्मिक साधना है, यही हमारा स्वधर्म और भगवत्-प्राप्ति है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है कि मन को भगवान में लगा कर किसी अन्य विषय का चिंतन न करें --
"शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्॥६:२५॥"
"यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥६:२६॥"
अर्थात् - शनै: शनै: धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा (योगी) उपरामता (शांति) को प्राप्त होवे; मन को आत्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे॥
यह चंचल और अस्थिर मन जिन कारणों से (विषयों में) विचरण करता है, उनसे संयमित करके उसे आत्मा के ही वश में लावे अर्थात् आत्मा में स्थिर करे॥
Little by little, by the help of his reason controlled by fortitude, let him attain peace; and, fixing his mind on the Self, let him not think of any other thing.
When the volatile and wavering mind would wander, let him restrain it and bring it again to its allegiance to the Self.
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ये सब बातें मैं फेसबुक नाम के मंच पर लिख रहा हूँ जिसका मालिक मार्क जुकरबर्ग नाम का एक अमेरिकन यहूदी है जो हनुमान जी का परम भक्त है, और ब्रह्मलीन नीमकरोरी बाबा का चेला है। इन्स्टाग्राम का मालिक भी वही है। सोशियल मीडिया के अन्य मालिक भी प्रायः अमेरिकन यहूदी हैं, जो किसी न किसी रूप में सनातन धर्म में आस्थावान हैं।
आप सभी को नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! जय जय श्रीसीताराम !! श्रीमते रामचंद्राय नमः !! सर्वेश्वरश्रीरघुनाथोविजयतेतराम !!
कृपा शंकर
११ जनवरी २०२४