भगवान से कुछ मांगना भगवान का अपमान है ---
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हम सर्वव्यापी भगवान को कुछ दे ही सकते हैं, उनसे कुछ ले नहीं सकते। भगवान स्वयं ही यह सब कुछ बन गए हैं। सब कुछ तो वे ही हैं। सारा सामान उन्हीं का है। हम भी उन्हीं के हैं, उनसे कुछ मांगना उनका अपमान है।
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भगवान को देने के लिए अन्तःकरण के रूप में हमारे पास चार ही चीजें हैं, वे भगवान को समर्पित कर दें, अन्य कुछ भी हमारे पास नहीं है। भगवान को हम अपना -- (१) मन, (२) बुद्धि, (३) चित्त, और (४) अहंकार, -- ये ही दे सकते हैं। बाकी हमारे पास अन्य कोई सामान नहीं है। उनको ये बापस लौटाने की प्रक्रिया ही आध्यात्मिक साधना है, यही हमारा स्वधर्म और भगवत्-प्राप्ति है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है कि मन को भगवान में लगा कर किसी अन्य विषय का चिंतन न करें --
"शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्॥६:२५॥"
"यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥६:२६॥"
अर्थात् - शनै: शनै: धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा (योगी) उपरामता (शांति) को प्राप्त होवे; मन को आत्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे॥
यह चंचल और अस्थिर मन जिन कारणों से (विषयों में) विचरण करता है, उनसे संयमित करके उसे आत्मा के ही वश में लावे अर्थात् आत्मा में स्थिर करे॥
Little by little, by the help of his reason controlled by fortitude, let him attain peace; and, fixing his mind on the Self, let him not think of any other thing.
When the volatile and wavering mind would wander, let him restrain it and bring it again to its allegiance to the Self.
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ये सब बातें मैं फेसबुक नाम के मंच पर लिख रहा हूँ जिसका मालिक मार्क जुकरबर्ग नाम का एक अमेरिकन यहूदी है जो हनुमान जी का परम भक्त है, और ब्रह्मलीन नीमकरोरी बाबा का चेला है। इन्स्टाग्राम का मालिक भी वही है। सोशियल मीडिया के अन्य मालिक भी प्रायः अमेरिकन यहूदी हैं, जो किसी न किसी रूप में सनातन धर्म में आस्थावान हैं।
आप सभी को नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! जय जय श्रीसीताराम !! श्रीमते रामचंद्राय नमः !! सर्वेश्वरश्रीरघुनाथोविजयतेतराम !!
कृपा शंकर
११ जनवरी २०२४
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