Sunday, 10 October 2021

हमें ध्यान-साधना किस बिन्दु से करनी चाहिए ? ---

 

हमें ध्यान-साधना किस बिन्दु से करनी चाहिए ?
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हमें अपने गुरु की आज्ञा से, उनके द्वारा बताई हुई विधि से ही ध्यान-साधना करनी चाहिए| इस से साधना में कोई त्रुटि रह जाये तो गुरु महाराज उसका शोधन कर देते हैं| धीरे-धीरे कर्ताभाव समाप्त हो जाता है, और गुरु ही कर्ता हो जाते हैं| हमें स्वयं को, साधना के फल को, और अपने सारे अस्तित्व को उनके श्रीचरणों में अर्पित कर देना चाहिए| अपने लिए बचाकर कुछ भी नहीं रखना चाहिए| गुरु-तत्व की अनुभूति होने के पश्चात सारे संशय दूर हो जाते हैं|
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ध्यान कूटस्थ में ही होता है| कूटस्थ शब्द को परिभाषित तो किया जा सकता है, पर इस की वास्तविक अनुभूति और ज्ञान ..... गुरु-कृपा से ही होता है| अतः शब्दों पर नहीं, अपनी अनुभूतियों पर ही मेरी आस्था है| मेरे अनुभूतियाँ किसी और के काम नहीं आ सकतीं, अतः उन के बारे में लिखना निरर्थक है| पिछले जन्म में जिस अवस्था तक साधना हुई थी, इस जन्म में उसका प्रारम्भ वहीं से हुआ| इस जन्म में जहाँ तक पहुँचूँगा, अगले जन्म में वहीं से इस यात्रा का पुनश्च प्रारम्भ होगा|
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अपने अनुभव से एक बात सदा से कहता आया हूँ, और फिर कह रहा हूँ कि हमें अपनी चेतना को प्रयासपूर्वक आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य ... उत्तरा-सुषुम्ना में रखना चाहिए और शिव, या विष्णु या उनके किसी अवतार का निरंतर ध्यान वहीं करना चाहिए| गुरु प्रदत्त बीज-मंत्र का जप भी निरंतर होते रहना चाहिए| आगे की साधना ...... भगवान स्वयं करेंगे, और सारी अनुभूतियाँ और उपलब्धियाँ भी उन्हीं की होंगी, हमारी नहीं| वास्तव में हम तो हैं ही नहीं, जो भी हैं, वे ही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अक्टूबर २०२०