महिषासुर और रावण कहीं बाहर नहीं है, हमारे भीतर ही छिपे हैं .....
महिषासुर और रावण कहीं बाहर नहीं है, वे हमारे भीतर ही छिपे हैं| मुझे उनकी भयावह हँसी और अट्टहास नित्य सुनाई देते हैं|
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असली महिषासुर भी भीतर ही छिपा है, और असली रावण भी हमारे भीतर ही है|
महिषासुर है .....हमारा आलस्य और दीर्घसूत्रता|
रावण है ..... वासनाओं का चिंतन और अहंकार| यही सब बुराइयों का कारण है|
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अपने अंतर में राम-तत्व को जागृत कर के ही हम अपने इन शत्रुओं का वध कर सकते हैं| हमें अपने चित्त में अहैतुकी परम प्रेम यानि भक्ति को जागृत कर के जगन्माता के श्रीचरणों में अपने अस्तित्व का सम्पूर्ण समर्पण करना होगा| तभी हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति होगी और तभी हमारे में श्रीराम जागृत होंगे|
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श्रीराम ..... सच्चिदानंद ब्रह्म हैं जिनमें समस्त योगी और भक्त सदैव रमण करते हैं|
राम ..... ज्ञान स्वरूप हैं,
सीताजी ..... भक्ति हैं, और
अयोध्या ..... हमारा ह्रदय है|
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राम को पाने के लिए हमें जगन्माता सीता जी का आश्रय लेना ही होगा, अर्थात अहैतुकी परमप्रेम जागृत कर अहंभाव का सम्पूर्ण समर्पण करना ही होगा|
तभी इस महिषासुर और रावण का नाश होगा|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!