Sunday 2 October 2016

कौन माँगे ? किससे माँगे ? क्या माँगे ? .........

कौन माँगे ? किससे माँगे ? क्या माँगे ? .........
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एक अथाह, अनंत, असीम और अति विराट महासागर में ...........
मैं एक लहर की बूँद मात्र हूँ |
महासागर की एक बूँद और लहर, महासागर से माँग ही क्या सकती है ?
और महासागर एक बूँद और लहर को दे ही क्या सकता है ?
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जो रुपये पैसे माँगते हैं, उनमें और आशीर्वाद, मोक्ष व मुक्ति माँगने वालों में क्या कोई अंतर है?
सभी भिखारी ही हैं| कुछ भी माँगना स्वयं में निहित देवत्व का क्या अपमान नहीं है?
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पुष्प की सार्थकता उसके खिलने में है, चाहे वह बगीचे में हो या वन में|
पुष्प कभी यह अपेक्षा नहीं करता कि कोई उसके सौन्दर्य को निहारे या उसकी सुगंधी का आनंद ले| पर प्रकृति उसे निहार कर नृत्य करती है और परमात्मा भी उसमें व्यक्त होकर प्रसन्न होते हैं|
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वैसे ही जल की एक बूँद और लहर मात्र समर्पण ही कर सकती है| उनका समर्पण ही सार्थकता है|
महासागर भी उस बूँद को अपने मैं मिलाकर उसे महासागर ही बना देता है|
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वैसे ही जीवात्मा स्वयं को समर्पित कर शिवत्व को प्राप्त हो जाती है| सपर्पित होकर जीव शिव बन जाता है, और आत्मा परमात्मा बन जाती है|
और क्या चाहिए ?????
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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