Sunday 2 October 2016

आत्म-तत्व में स्थित होना ही वास्तविक साधना और साध्य है .....

आत्म-तत्व में स्थित होना ही वास्तविक साधना और साध्य है .....
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परमात्मा से एक क्षण के लिए भी पृथक होना महाकष्टमय मृत्यु है| वास्तविक महत्व इस बात का है कि हम क्या हैं| सच्चिदान्द परमात्मा सदैव हैं, परन्तु साथ साथ जीवभाव रूपी मायावी आवरण भी लिपटा है| उस मायावी आवरण के हटते ही सच्चिदानन्द परमात्मा भगवान परमशिव व्यक्त हो जाते हैं| सच्चिदानन्द से भिन्न जो कुछ भी है उसे दूर करना ही आत्म-तत्व यानि पूर्णता यानि सच्चिदानंद की अभिव्यक्ति और वास्तविक साधना है| इस साधना में अन्य सब साधनाएं आ जाती हैं|
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अपने वास्तविक स्वरुप में स्थित होना ही साक्षात्कार है, उपासना और भक्ति ही मार्ग है| जब परमात्मा के प्रति प्रेम हमारा स्वभाव हो जाए तो लगना चाहिए कि हम सही मार्ग पर हैं| परमात्मा के प्रति सहज प्रेम ही हमारा वास्तविक स्वभाव है|
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कर्ता भाव को सदा के लिए समाप्त करना है| वास्तविक कर्ता तो परमात्मा ही हैं| कर्ताभाव सबसे बड़ी बाधा है| अतः सब कुछ यहाँ तक कि निज अस्तित्व भी परमात्मा को समर्पित हो| यह समर्पण ही साध्य है, यही साधना है और यही आत्म-तत्व में स्थिति है| इसके लिए वैराग्य और अभ्यास आवश्यक है| जो भी बाधा आती है उसे दूर करना है| अमानित्व, अदम्भित्व और परम प्रेम ये एक साधक के लक्षण हैं| हम जो कुछ भी है, जो भी अच्छाई हमारे में है, वह हमारी नहीं अपितु परमात्मा की ही महिमा है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

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