Thursday, 5 July 2018

हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारा मानसिक व्यभिचार है .....

हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारा मानसिक व्यभिचार है .....
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मैं अपने जीवन के अब तक के सारे अनुभवों के आधार पर यह कह रहा हूँ कि हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारा मानसिक व्यभिचार है| अन्य कोई कारण नहीं है| मन में बुरी बुरी कल्पनाओं का आना, और उन कल्पनाओं में मन का लगना मानसिक व्यभिचार है| यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है| यह मानसिक व्यभिचार आध्यात्म मार्ग की सबसे बड़ी बाधा तो है ही, लौकिक रूप से भी समाज में दुराचार फैलाता है| अपने चारों ओर जो भी बुराइयाँ हम देख रहे हैं, उनके स्त्रोत में हमारा स्वयं का ही मानसिक व्यभिचार है|
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इससे कैसे बचें इसका निर्णय प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ले| आजकल किसी को कुछ कहना भी अपना अपमान करवाना है| समाज का वातावरण बहुत अधिक खराब है| बड़े बड़े धर्मगुरु भी अपनी बात कहते हुए संकोच करते हैं| मैं फेसबुक के अपने पेज पर तो यह बात निःसंकोच होकर कह रहा हूँ, पर किसी को व्यक्तिगत रूप से कुछ कहने का अर्थ है .... गालियाँ, तिरस्कार और अनेक अपमानजनक शब्दों को निमंत्रित करना| आज के युग में व्यक्ति स्वयं को बचाकर रखे| उपदेश ही देना है तो अपने बच्चों को ही दे, अन्य किसी को नहीं| आजकल तो स्वयं के बच्चे भी नहीं सुनते| इतना लिख दिया यही बहुत है| भगवान सब का कल्याण करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जुलाई २०१७
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पुनश्चः :---
आजकल इतने जो बलात्कार, अपहरण, चोरी, डकैती, लूट-खसोट, और बेईमानी हो रही है इसका कारण भी हमारा मानसिक व्यभिचार है| इसका निदान यही है कि बाल्यकाल से ही सब को अच्छे संस्कार दें, और किशोरावस्था से ही सब में भक्ति व ध्यान साधना में रूचि जागृत करें|