Sunday 10 December 2017

भगवान की पकड़ ......

भगवान की पकड़ ......
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कई बार प्रेमवश स्वयं भगवान ही हमें पकड़ लेते हैं, और सही मार्ग पर ले आते हैं ..... इसे कहते हैं ... भगवान की परम कृपा ..... | कोई भी माँ-बाप नहीं चाहते कि उनकी संतान बिगड़े| जब संतान गलत मार्ग पर चल पड़ती है तब माँ-बाप अपने बालक/बालिका को पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| भगवान भी हमारे माता-पिता हैं| वे कभी भी नहीं चाहेंगे कि हम गलत रास्ते पर चलें| वे भी हमें पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| उनकी पकड़ का हमें आनंद लेना चाहिए|
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मैनें जीवन में अनेक बार हिमालय जैसी बड़ी बड़ी भयंकर भूलें की हैं, जिनकी कोई क्षमा नहीं हो सकती| नित्य कोई न कोई भूल होती ही रहती है| पर भगवान इतने दयालू हैं कि अपनी परम करुणा से कैसे भी मुझे सही मार्ग पर ले आते हैं और पीछे की सभी भूलों को क्षमा कर देते हैं| उनकी करुणा और प्रेम का सागर इतना विराट है कि मेरी हिमालय जैसी सी भूलें भी उन के प्रेमसिन्धु में छोटे मोटे कंकर पत्थर से अधिक नहीं है|
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कभी कभी जब मैं स्वयं साधना नहीं कर पाता तो स्वयं वे ही मेरे स्थान पर मेरे ही माध्यम से साधना करने लगते हैं| उनकी पकड़ में बड़ा आनन्द है| कितना प्रेम है उनके हृदय में मेरे लिए! मुझे भी उन से प्रेम हो गया है| अब जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए| जीवन से पूर्ण संतुष्टि है, कोई शिकायत नहीं है, और आनंद ही आनन्द है| शेष जीवन का उपयोग उनकी ध्यान साधना में ही हो|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१० दिसम्बर २०१७

प्राण जाएँ पर मोबाइल न जाए .....

प्राण जाएँ पर मोबाइल न जाए .....
वर्तमान युवा व किशोर पीढ़ी को सर्वाधिक प्रिय यदि कोई चीज है तो वह है मोबाइल फोन| यह उन्हें अपने प्राणों से भी प्रिय है| दुपहिया और चारपहिया वाहनों को चलाते समय भी मोबाइल कानों से सटा ही रहता है| उनको न तो अपने स्वयं के प्राण की चिंता है और न दूसरों के प्राणों की| कोई कुछ कहता है तो स्पष्ट कहते हैं कि मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न भाग है, उसके बिना हम जी नहीं सकते|
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विद्यालयों के बालक/बालिकाएँ भी आजकल अपने माँ-बाप को अपनी सुरक्षा की दुहाई देकर मोबाइल खरीदवा ही लेते हैं| वे क्या सुनते हैं और क्या बात करते हैं यह तो सिर्फ वे और परमात्मा ही जानता है|
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किसी भी महाविद्यालय के बाहर का दृश्य देख लीजिये जो आजकल बहुत सामान्य है| कई लड़के सजधज कर मोटरसाइकिलों पर चक्कर लगाते ही रहते हैं, कानों में उनके मोबाइल सटा रहता है| लड़कियाँ भी सजधज कर अपने मुँह को कपड़े से ढककर और कानों में मोबाइल सटाकर आती हैं जिससे कोई उन्हें पहिचान नहीं सकता| अपने मोबाइल पर पता नहीं किस भाषा में क्या संकेत करती हैं, उनका मित्र लड़का अपनी मोटर साइकिल पर तुरंत उपस्थित हो जाता है| माँ-बाप सोचते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं, पर बच्चे क्या गुल खिला रहे हैं यह माँ-बाप की कल्पना के बाहर की बात है| तो यह सारी महिमा मोबाइल की है| आजकल व्हाट्सएप्प और अन्य कई एप्प इतने लोकप्रिय हैं युवा पीढी में कि उसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते|
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हमारे समय में खाली समय में सिर्फ दो तीन बाते ही दिमाग में रहती थीं .... या तो किसी पुस्तकालय में जाकर पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ़ना, या किसी खेल के मैदान में जाकर फ़ुटबाल या वॉलीबॉल खेलना| इससे भी परे की कोई बात यदि दिमाग में रहती थी तो वह थी संघ की सायं शाखा में जाना| इससे आगे की कोई बात दिमाग में कभी आई ही नहीं| उस जमाने में न तो मोबाइल फोन थे, न टेलीविजन और न मोटर साइकिलें| किसी के पास बाइसिकल होती तो सब उसको भाग्यशाली मानते थे| बड़ी से बड़ी विलासिता की कोई चीज थी तो वह थी एक ट्रांजिस्टर रेडियो का होना|
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मैं कोई शिकायत नहीं कर रहा, जो कह रहा हूँ वह एक वास्तविकता है| समय बहुत शीघ्रता से बदलता है| टेक्नोलॉजी भी इतनी शीघ्रता से बदल रही है कि उसके साथ कदम से कदम मिला के चलना असम्भव सा हो रहा है| यह सृष्टि परमात्मा की है, हम तो उसके सेवक मात्र हैं| जो कुछ भी हो रहा है उसे बिना कोई प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए देखते रहो| इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प भी नहीं है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
०९ दिसंबर २०१७

आत्मतत्व में स्थित होना ही स्वस्थ (स्व+स्थ) होना है .....

आत्मतत्व में स्थित होना ही स्वस्थ (स्व+स्थ) होना है, स्व में स्थिति ही स्वास्थ्य है, यही आध्यात्म है, यही गुरुतत्व है, और यही परमात्मा की प्राप्ति है ....
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यह एक अनुभूति का विषय है जो परमात्मा की कृपा से ही समझ में आता है, बुद्धि से नहीं, अतः इस पर किसी भी तरह का विवाद निरर्थक है| आत्मतत्व में स्थिति ही गुरुतत्व में स्थिति है, और यही परमात्मा की प्राप्ति है| लोग कुतर्क करते हैं कि परमात्मा तो सदा प्राप्त है, परमात्मा कब अप्राप्त था? यह एक भ्रामक कुतर्क मात्र है| वास्तव में परमात्मा उसी को प्राप्त है जो आत्मतत्व में स्थित है| यही आध्यात्म है| बिना किसी शर्त के परमात्मा से परम प्रेम यानि Unconditional love to the Divine ही द्वार है| जितना अधिक हमें परमात्मा से प्रेम होता है उसी अनुपात में हमारा मार्ग प्रशस्त होता जाता है|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण का कथन है .....
"निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः |
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ||"
अर्थात जो मोह से रहित हैं, जिन्होनें संगदोषों अर्थात आसक्ति से होने वाले दोषों को जीत लिया है, जो नित्य आध्यात्म (निरंतर आत्मा में ही) में स्थित हैं, जो कामनाओं से रहित हैं, जो सुख-दुःख रूपी द्वंद्वो से मुक्त है, ऐसे साधक भक्त उस अविनाशी परमपद (परमात्मा) को प्राप्त होते हैं|

यहाँ भगवान ने "अध्यात्मनित्याः" शब्द का प्रयोग भी किया है जो विचारणीय है| अनेक मनीषी व्याख्याकारों ने इसकी बड़ी सुन्दर और विस्तृत व्याख्या की है| यह भगवान का आदेश है कि हम निरंतर आत्म तत्व यानि परमात्मा का चिंतन करें| यही आध्यात्म है और यही परमात्मा की प्राप्ति है|
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इन पंक्तियों के लिखते समय हमारे मोहल्ले की अनेक माताएँ संकीर्तन करते हुए अपनी दैनिक प्रभातफेरी निकाल रही हैं, उनके शब्द आत्मा को जागृत कर रहे हैं| उन सब को मैं प्रणाम करता हूँ| इसे मैं परमात्मा का आशीर्वाद मान कर स्वीकार कर रहा हूँ| उनकी कृपा सदा बनी रहे|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१७