Wednesday 22 May 2019

आतंकवाद विरोधी दिवस .....

आज २१ मई के दिन को पूरे भारत में "आतंकवाद विरोधी दिवस" मनाया जाता है| इसी दिन यानि २१ मई १९९१ को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हत्या कर दी गई थी जहाँ वे चुनाव प्रचार के लिए गए हुए थे|
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आतंकवाद के तीन कारण हैं .....
(१) पहला कारण है अपने विचारों को दैवीय मानकर दूसरों पर थोपने की भावना| जो आतंकवादी होते हैं उनके दिमाग में यह भावना भर दी जाती है कि जो तुम्हारे मत को नहीं मानते उनकी ह्त्या करना तुम्हारे लिए एक ईश्वरीय आदेश है जिसकी पालना से तुम्हें स्वर्ग के सारे भोग मिलेंगे तो तुम अपने परिवार वालों को भी दे सकोगे| इस तरह आतंकवाद को महिमान्वित किया जाता है| उनको यह भी सिखाया जाता है कि यदि तुम अन्य मत वालों को आतंकित नहीं करोगे तो ईश्वर तुम्हें दंड देगा|
(२) आतंकवाद का दूसरा कारण है युद्ध में विजय पाने के लिए स्वयं के लोगों में अत्यधिक उच्च भावना और दूसरों के प्रति घृणा की भावना भर देना|
(३) आतंकवाद का तीसरा कारण है ..... मनुष्य का लोभ और अहंकार| दूसरों को लूटने के लिए ये लोग आतंकित करते हैं|
मेरे विचार से आतंकवाद के ये तीन कारण ही हो सकते हैं| सभी को धन्यवाद | पूरा विश्व आतंकवाद से मुक्त हो| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मई २०१९

अनन्य भक्ति से बड़ा अन्य कुछ भी नहीं है .....

अनन्य भक्ति से बड़ा अन्य कुछ भी नहीं है .....
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अनन्य का अर्थ है .... जहाँ अन्य कोई नहीं है, जहाँ हमारे में और प्रत्यगात्मा में कोई भेद नहीं है| भगवान कहते हैं ....
"ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाऽहममृतस्याव्ययस्य च| शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च||१४:२७||
अर्थात् मैं अमृत, अव्यय, ब्रह्म, शाश्वत धर्म, और ऐकान्तिक अर्थात् पारमार्थिक सुख की प्रतिष्ठा हूँ||
(ध्यान करते करते उपास्य के गुण उपासक में भी आ ही जाते हैं)
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गीता में भगवान वासुदेव ने जिस अनन्य-अव्यभिचारिणी भक्ति की बात कही है वह अनंत चैतन्य का द्वार है| वह भक्ति जागृत होती है परमप्रेम और गुरुकृपा सेे| भगवान के प्रति परमप्रेम जागृत होते ही मेरुदंड उन्नत हो जाता है, दृष्टिपथ स्वतः ही भ्रूमध्य पथगामी हो जाता है, व चेतना उत्तरा-सुषुम्ना (आज्ञाचक्र व सहस्त्रार के मध्य) में स्थिर हो जाती है| मेरुदंड में सुषुम्ना जागृत हो जाती है और वहाँ संचारित हो रहा प्राण-प्रवाह अनुभूत होने लगता है| कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म और अनाहत नाद भी अनुभूत होने लगते हैं| यह ब्राह्मी स्थिति है, ऐसी स्थिति वाले महात्मा बहुत दुर्लभ हैं .....
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||"
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इस ब्राह्मी स्थिति के बारे में भगवान कहते हैं .....
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः| निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति||२:७१||"
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति| स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति||२:७२||"
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अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति वह है जहाँ भगवान के सिवाय अन्य कुछ भी प्रिय नहीं हो. भगवान कहते हैं ...
"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी| विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि||१३:११||"
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गुरुरूप में हे वासुदेव, आप की कृपा सदैव बनी रहे|
ॐ गुरु ! जय गुरु ! जय गुरु ! जय गुरु !
मुझ अकिंचन के लाखों दोष व नगण्य गुण ..... सब आप को समर्पित हैं| आप से मेरी कहीं पर भी कोई पृथकता नहीं है| मेरा सर्वस्व आपका है, और मेरे सर्वस्व आप हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ मई २०१९

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पुनश्चः :---

भगवान का इतना ऋण है कि उस से कभी उऋण नहीं हो सकता, सिर्फ समर्पित ही हो सकता हूँ, और कुछ भी मेरे बस में नहीं है.
भगवान की इस से बड़ी कृपा और क्या हो सकती है कि उन्होंने मुझे अपना उपकरण बनाया. वे ही मेरे माध्यम से स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं. इस ह्रदय में वे ही धड़क रहे हैं, इन फेफड़ों से वे ही साँसे ले रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, कानों से वे ही सुन रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे है, और इन हाथों से महाबाहू वे ही सारा कार्य कर रहे हैं. वास्तव में मैं तो हूँ ही नहीं, यह पृथकता का बोध एक मिथ्या आवरण है. सारा अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त अहंकार) व सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही हैं. उनकी पूर्णता का बोध सदा बना रहे. ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मई २०१९

१९४२ में ही भारत स्वतंत्र हो सकता था .....

भारत के राजनेता १९४२ में यदि क्रिप्प्स कमीशन का प्रस्ताव स्वीकार कर लेते तो भारत खंडित नहीं होता व १९४२ में ही स्वतंत्र होकर एक महाशक्ति होता .....
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अप्रेल १९४२ में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने स्टैफ़ोर्ड क्रिप्प्स को भारत को एक अधिराज्य के रूप में स्वतन्त्रता देने के प्रस्ताव के साथ भारत भेजा था| उस प्रस्ताव में न तो कोई विभाजन की बात थी, और न ही श्रीलंका को भारत से पृथक करने की| श्रीलंका उस समय भारत का ही भाग था| श्री अरविन्द उस प्रस्ताव के पक्ष में थे| उन्होंने गाँधी व नेहरु को समझाने के लिए एक आदमी भी भेजा पर गाँधी और नेहरू ने उस प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें सत्ता सुभाषचंद्र बोस के हाथ में जाने का भय था|
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गाँधी और नेहरु ने लगातार भारत के विभाजन पर जोर दिया| देश को धोखा देने के लिए गाँधी ने झूठ बोला कि देश का विभाजन उसकी मृत देह पर ही होगा| परस्त्रीगामी नेहरु अपनी प्रेमिका लेडी एडविना के माध्यम से उसके पति लार्ड माउंटबैटन को भारत के विभाजन और स्वयं को खंडित भारत का प्रधानमंत्री बनाने का अनुरोध भिजवाता रहा| कांग्रेस में नेहरु को कोई समर्थन नहीं था| सत्ता हस्तांतरण के पश्चात भी नेहरु ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल व स्थल सेना प्रमुख को दो वर्ष तक रखा था| उस समय भी नेहरु ने पाक से समर्थन माँगा और पाकिस्तान में तीस करोड़ हिन्दुओं की ह्त्या और कश्मीर पर आक्रमण करवाने के लिए पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपये दिलवाए| उसी के परिणामस्वरूप कश्मीर का अधिकाँश भाग आज भी पाकिस्तान के अधिकार में है|
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भारत को एक अधिराज्य न मानने का अन्य कोई कारण नहीं था, सिर्फ सुभाष चन्द्र बोस का भय था| विडम्बना है कि भारत आज भी ब्रिटिश Commonwealth का भाग है| अगर भारत अधिराज्य भी रहता तो वैसे ही होता जैसे आज ऑस्ट्रेलिया है, जो भारत से भी अधिक स्वतंत्र है|
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यदि क्रिप्स कमीशन की बात मान ली जाती तो भारत आज एक महाशक्ति होता, कोई विभाजन नहीं होता| नेहरु ने मूर्खतापूर्ण तरीके से तिब्बत चीन को सौंप दिया, और संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता को चीन के पक्ष में त्याग दिया| चीन के राजनीतिक नेतृत्व ने नेहरु की हँसी ही उडाई जो अपने स्वयं के देश को बर्बाद कर के विश्वनेता बनना चाहता था|
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आज भी भारत में सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाली पीढ़ी स्वयं को अँगरेज़ ही मानती है, और बीबीसी व टाइम जैसी पत्रिकाओं में सत्य को ढूँढती है|

कृपा शंकर
१४ मई २०१९
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पुनश्चः --- अंग्रेज १९३५ में ही भारत को स्वतन्त्र करने का निर्णय कर चुके थे। Government of India Act 1935 बनाया था जिसकी नकल अभी का भारतीय संविधान है। उसके बाद पहले राज्यों में चुनाव करा कर भारतीय नेताओं को मुख्यमंत्री बना दिया। उसके ५ वर्ष बाद वे पूरे भारत में भारतीय को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। गान्धी नेहरू को कहीं भी बहुमत नहीँ आ रहा था, अतः पहले सुभाष चन्द्र बोस को भगाया, फिर विभाजन की जोड़ तोड़ शुरू की।