Wednesday 8 March 2017

भारत में महिलाओं की स्थिति .......

भारत में महिलाओं की स्थिति .......
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स्त्री और पुरुष दोनों एक ही गाडी के दो पहिये होते हैं| दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं| न तो स्त्री के बिना पुरुष रह सकता है और न पुरुष के बिना स्त्री| स्त्री जहाँ भाव प्रधान है, वहीं पुरुष विवेक प्रधान| मूल रूप से दोनों आत्मा हैं, आत्मा के कोई लिंग नहीं होता|
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भारत में स्त्रियों की स्थिति विदेशी आक्रमणों से पूर्व तक विश्व में सर्वाधिक सम्माननीय थी| भारत की नारियाँ विद्वान् और वीरांगणा होती थीं|
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भारत पर विदेशी आक्रमणकारी, पुरुषों को मार कर उनकी स्त्रियों का बलात् अपहरण कर लेते थे| आतताइयों द्वारा उन पर बहुत अधिक अत्याचार होता था| या तो वे बेच दी जाती या उन्हें घर में रखैल की तरह रख लिया जाता| इस कारण पर्दाप्रथा और बालविवाह का आरम्भ हुआ| जौहर की प्रथा क्षत्रानियों ने अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए आरम्भ कीं|
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अंग्रेजों ने अपनी सैनिक छावनियों के आसपास वैश्यालय स्थापित किये जहाँ वे भारतीय विधवाओं को बलात् अपहरण कर उन्हें वैश्या बना देते थे ताकि उनके अँगरेज़ सिपाही बापस अपने देश जाने की जल्दी न करें| इस कारण सती प्रथा का आरम्भ हुआ| जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनियाँ थीं उनके आसपास के क्षेत्रों में ही विधवाएँ आत्मदाह कर लेती थी या उन्हें आत्मदाह के लिए बाध्य कर दिया जाता था| वहीं से सतीप्रथा का आरम्भ हुआ|
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स्त्रियों पर अबसे अधिक अत्याचार यूरोप में ही हुए जहाँ डायन होने के संदेह में करोड़ों महिलाओं की ह्त्या कर दी जाती थी|
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भारत में स्त्रियों की दुर्दशा विदेशी आक्रमणकारियों के कारण ही हुई| पर अब भारत का पुनर्जागरण हो रहा है| पुरुषों के साथ साथ महिलाएँ भी प्रबुद्ध होंगी|
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महिला उत्थान के नाम पर आज जहाँ स्त्री-पुरुष दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध खडा किया जा रहा है उसका मैं विरोध करता हूँ|
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दोनों मिलकर सहयोग और प्रेम से रहें और दोनों मिलकर अपने जीवन के परम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करें|

ॐ ॐ ॐ ||

होली की दारुण रात्री ......

होली की दारुण रात्री ......
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भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद को नमन करते हुए मैं होली के सुअवसर पर पाँच दिन पूर्व ही आप सब को भी सप्रेम सादर नमन करता हूँ| इस माह रविवार 12 मार्च 2017 के दिन होली का त्यौहार है| होली का एक आध्यात्मिक महत्त्व है|
होली की यह दारुण रात्री, देह की चेतना से ऊपर उठने की साधना का एक अवसर है| आत्म-विस्मृति ही सब दुःखों का कारण है| इस दारुण रात्री को गुरु प्रदत्त विधि से अपने आत्म-स्वरुप यानि सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान करें| इस रात्री में सुषुम्ना का प्रवाह प्रबल रहता है अतः निष्ठा और भक्ति से सिद्धि अवश्य मिलेगी|
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अपने गुरु नारद के द्वारा बताए हुए मन्त्रों से प्रह्लाद ने पाँचों तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली थी, इस से उन्हें प्रत्येक पदार्थ में परमात्मा के दर्शन होने लगे| उनका कुछ भी अनिष्ट नहीं हो सका और उनकी रक्षा के लिए भगवान को स्वयं प्रकट होना ही पड़ा| इस रात्रि में पाँचों तत्व विद्यमान रहते हैं|
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आध्यात्मिक साधना और मंत्र सिद्धि के लिए चार रात्रियों का बड़ा महत्त्व है| होली की रात्री दारुण रात्री है जो मन्त्र सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ है| इसके अतिरिक्त अन्य रात्रियाँ है .... कालरात्रि ,महारात्रि , और मोहरात्रि|
दारुण रात्री को की गयी मंत्र साधना बहुत महत्वपूर्ण और सिद्धिदायी है| अनिष्ट शक्तियों से रक्षा, रोग निवारण, शत्रु बाधा, ग्रह बाधा आदि समस्त नकारात्मक बाधाओं के निवारण के लिए किसी आध्यात्मिक रक्षा कवच की साधना अवश्य करें| मेरी टाइमलाइन वाल पर श्रद्धेय Swami Rupeshwaranand जी ने एक लेख टैग किया है उसे अवश्य पढ़िए जिस में उन्होंने कवच सिद्धी की विधि लिखी है|
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मैं तो व्यक्तिगत रूप से अपनी गुरु प्रदत्त साधना में रहूँगा और आप ध्यान में मुझे अपने समीप ही पाओगे| होली पर करने के कई तांत्रिक टोटके व साधनाएँ हैं जिन्हें लिखना मैं उचित नहीं समझता हूँ क्योकि मैं स्वयं उनकी साधना नहीं करता|
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इस सुअवसर का सदुपयोग करें और समय इधर उधर नष्ट करने की बजाय आत्मज्ञान ही नहीं बल्कि धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए भी साधना करें| एक विराट आध्यात्मिक शक्ति के जागरण की हमें आवश्यकता है| यह कार्य हमें करना ही पड़ेगा| अन्य कोई विकल्प नहीं है|
पुनश्चः आप सब को नमन और होली की शुभ कामनाएँ|
ॐ ॐ ॐ ||

वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है .....

 जिन्होनें कभी जन्म ही न लिया हो, जिनकी कभी मृत्यु भी नहीं हो सकती, उन भगवान परम शिव का ध्यान ही हमें इस देह की चेतना से मुक्त कर सकता है| हर हर महादेव !

 वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है| क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इसका निर्णय करने में हमारा विवेक भी विफल हो सकता है| परमात्मा को पूर्ण समर्पण ही अभीष्ट है| परमात्मा या प्रकृति ही अपने नियमों के अनुसार जो करे वह ही सही है| मोक्ष क्रिया से नहीं वरन् ज्ञान से होता है, इतना तो अच्छी तरह समझ में आता है| अज्ञान ही बंधन है| परम प्रिय परमात्मा से पृथकता दूर हो|

हम कृष्ण, काली, क्राइस्ट या अल्लाह किसी की भी आराधना करते हों, वास्तव में हम उस परम ज्योति की ही आराधना कर रहे हैं जो सर्वत्र सर्वव्यापी हम स्वयं है| पूरी सृष्टि उसी ज्योति का ही घनीभूत रूप है| समस्त सृष्टि मूल रूप में वह दिव्य ज्योति ही है| वह ज्योति ही अनाहत नाद के रूप में व्यक्त होती है, वही प्रणव यानि ओंकार है| वह दिव्य ज्योति व ओंकार और उससे परे भी जो भी है वह मैं स्वयं हूँ| समस्त सृष्टि मुझमें है और मैं समस्त सृष्टि में व उससे परे भी हूँ|
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शिवोहं शिवोहं अहं ब्रम्हास्मि || ॐ ॐ ॐ ||


सभी को सप्रेम सादर नमन| ॐ ॐ ॐ ||