Wednesday, 8 March 2017

वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है .....

 जिन्होनें कभी जन्म ही न लिया हो, जिनकी कभी मृत्यु भी नहीं हो सकती, उन भगवान परम शिव का ध्यान ही हमें इस देह की चेतना से मुक्त कर सकता है| हर हर महादेव !

 वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है| क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इसका निर्णय करने में हमारा विवेक भी विफल हो सकता है| परमात्मा को पूर्ण समर्पण ही अभीष्ट है| परमात्मा या प्रकृति ही अपने नियमों के अनुसार जो करे वह ही सही है| मोक्ष क्रिया से नहीं वरन् ज्ञान से होता है, इतना तो अच्छी तरह समझ में आता है| अज्ञान ही बंधन है| परम प्रिय परमात्मा से पृथकता दूर हो|

हम कृष्ण, काली, क्राइस्ट या अल्लाह किसी की भी आराधना करते हों, वास्तव में हम उस परम ज्योति की ही आराधना कर रहे हैं जो सर्वत्र सर्वव्यापी हम स्वयं है| पूरी सृष्टि उसी ज्योति का ही घनीभूत रूप है| समस्त सृष्टि मूल रूप में वह दिव्य ज्योति ही है| वह ज्योति ही अनाहत नाद के रूप में व्यक्त होती है, वही प्रणव यानि ओंकार है| वह दिव्य ज्योति व ओंकार और उससे परे भी जो भी है वह मैं स्वयं हूँ| समस्त सृष्टि मुझमें है और मैं समस्त सृष्टि में व उससे परे भी हूँ|
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शिवोहं शिवोहं अहं ब्रम्हास्मि || ॐ ॐ ॐ ||


सभी को सप्रेम सादर नमन| ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. प्रार्थना .....
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    हे प्रियतम परम शिव, अपने से कभी विमुख मत होने दो| आप से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता ही मृत्यु|
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    हमारा जीवन, हमारे प्राण, हमारा अस्तित्व, हमारे परम प्रिय आप स्वयं ही हैं|
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    जो ज्ञान ब्रह्मा ने अथर्व को, सनत्कुमार ने नारद को, और श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया, वही ज्ञान हमें भी प्रत्यक्ष आप से ही प्राप्त हो| उस से कम कुछ भी नहीं| यदि पात्रता नहीं है तो इस पात्र को तोड़ दो| आप से अन्यत्र कोई पात्रता नहीं चाहिए|
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    यह सम्पूर्ण अस्तित्व आप ही हैं| आप ही जगन्माता और आप ही परम पिता हैं|
    यह "मैं" नहीं, आप ही आप हैं| इस "मैं" का कभी अस्तित्व नहीं हो|

    || ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||

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