Monday, 14 June 2021

फेसबुक के अनुभव ---

 फेसबुक के अनुभव .....

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फेसबुक पर आज से दो-चार वर्ष पहिले बहुत अच्छे-अच्छे गंभीर लेखक और पाठक हुआ करते थे| अब तो नगण्य हैं| मैं जुलाई २०११ में फेसबुक पर आया तब हिन्दी में लिखने का बिल्कुल भी अभ्यास नहीं था| फेसबुक पर ही कुछ साधु-संतों ने मुझे हिन्दी में लेख लिखने की प्रेरणा दी और खूब प्रोत्साहन दिया| उस समय मुझे हिन्दी के अधिक शब्दों का ज्ञान नहीं था| मैंने अपने हिन्दी के शब्दकोष को बढ़ाया और हिन्दी में लिखना आरंभ किया तो इतना मजा आया कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा| बहुत गंभीर आध्यात्मिक विषयों पर भी सहज रूप से लिखने लगा| शुरू-शुरू में कुछ भूलें हुईं पर किसी ने बुरा नहीं माना और खूब प्रोत्साहन दिया|
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सबसे अच्छी बात तो यह हुई कि फेसबुक पर ही देश के अनेक विद्वानों, संतों और भक्तों से परिचय हुआ, जो अन्यथा नहीं हो सकता था| कुछ समूहों में धर्म और ज्ञान-विज्ञान पर खूब चर्चाएँ हुआ करती थीं, जिनसे बहुत कुछ सीखा| मैं सभी के नाम तो नहीं लिख सकता, पर दो-तीन नाम अवश्य लिखूँगा जिनसे परिचय फेसबुक पर ही हुआ था|
सबसे पहिला परिचय आचार्य सियारामदास नैयायिक से हुआ| उन्होने मुझे हिन्दी में लिखने की प्रेरणा दी और उनके व कुछ अन्य संतों के आशीर्वाद से मुझे लिखने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई| वे रामानंदी वैष्णव संप्रदाय के बहुत बड़े आचार्य हैं|
दंडी स्वामी मृगेंद्र सरस्वती (सर्वज्ञ शंकरेंद्र) के आशीर्वाद से मुझे वेदान्त का व्यवहारिक ज्ञान हुआ| वेदान्त पर साहित्य तो खूब पढ़ा था पर कभी कोई प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं हुई थी| कई अनुत्तरित प्रश्न थे| उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और उनकी उपस्थिति मात्र से ही मुझे कई दिव्य अनुभूतियाँ हुईं जिनसे वेदान्त का व्यवहारिक ज्ञान हुआ और सारे संशय दूर हुए| वे एक सिद्ध पुरुष हैं|
भुवनेश्वर के श्री अरुण उपाध्याय जैसे अलौकिक विलक्षण परम विद्वान से परिचय तो फेसबुक पर ही हुआ था और दो बार उनसे मिलने का सौभाग्य भी मिला| वे चलते-फिरते ज्ञान के भंडार हैं| उनके जैसा कोई अन्य विद्वान मुझे आज तक नहीं मिला| वे पूर्व जन्म के कोई सिद्ध पुरुष हैं जिनका ज्ञान कई जन्मों का है|
भक्तों में इंदौर के स्वर्गीय श्री हेमंत मिश्र उच्च कोटि के शिवभक्त थे| वे समय समय पर बड़े-बड़े विशाल यज्ञ करवाया करते थे जिन में करोड़ों रुपयों का खर्च हुआ करता था| दो बार उनके साथ हवन करने का अवसर मुझे भी मिला है|
इंदौर के ही डॉ. सुमित शुक्ल और उनकी धर्मपत्नी डॉ.(श्रीमती) सुधि शुक्ल दोनों ही विलक्षण व्यक्तित्व के धनी और परम भक्त हैं| उनसे मेरा बहुत अच्छा प्रेम है|
और भी अनेक दिव्य विभूतियाँ हैं जिनसे परिचय फेसबुक पर ही हुया था| कुछ से मिलना भी हुआ और कुछ से नहीं| वे सब मेरे हृदय में हैं और उन्हें मेरे हृदय का पूर्ण प्रेम समर्पित है|
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क्रिया और वेदान्त की साधना से मुझे अनेक लाभ हुए हैं| अपनी कमियों का पता चला है जिनमें से कुछ तो दूर हुई हैं, और बाकी बची हुई भी दूर हो जाएंगी| सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह हुई है कि कोई भी मुझसे दूर नहीं है| मैं अब किसी के अभाव को अनुभूत नहीं करता| परमात्मा में सभी मेरे साथ एक हैं| सारा ब्रह्मांड मेरा घर है और सारी सृष्टि मेरा परिवार| मैं सभी के साथ एक हूँ| कोई भी मुझसे पृथक नहीं है| क्रियायोग की साधना से प्राण-तत्व व आकाश-तत्व का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, और कूटस्थ-चैतन्य में स्थिति होती है| परमशिव का बोध भी बुद्धि से नहीं, ध्यान की अनुभूतियों से ही होता है|
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन| ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२०
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पुनश्च :--- प्रयागराज के स्वर्गीय पं. मिथिलेश द्विवेदी जी को भी मैं कभी नहीं भूल सकता| वे बड़ी प्रेरणात्मक बातें कहते थे और कभी निराश नहीं होने दिया| एक ही अफसोस रहा कि कभी उनसे मिलने का संयोग नहीं हुआ| उन्होंने अपनी हिन्दी भाषा में लिखी एक पुस्तक मुझे भेंट में दी थीं जो उच्च कोटि की साहित्यिक कृति है| वे एक भक्त और साहित्यकार थे| उर्दू भाषा पर भी उनका बहुत अच्छा अधिकार था| देवनागरी लिपि में लिखा उर्दू का एक लेख भी उन्होनें मुझे नेट पर ही भेजा था जिस से पता चला कि वे उर्दू के भी विद्वान थे| वे चाहे भौतिक देह में न हों पर मेरे हृदय में हैं|
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ओड़ीशा के ही भक्त श्री सोमदत्त शर्मा है जिनसे कई बार चलभाष पर ही सत्संग होता है|

शरणागति और समर्पण का मार्ग ही श्रेष्ठतम है ---

 शरणागति और समर्पण का मार्ग ही श्रेष्ठतम है .....

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वर्तमान काल में आध्यात्मिक योग-साधना के लिए भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताया हुआ शरणागति व समर्पण का मार्ग ही सर्वसुलभ और सर्वश्रेष्ठ है| इसमें कर्म, भक्ति और ज्ञान .... तीनों ही आ जाते है| यदि प्रबल बौद्धिक जिज्ञासा और समझने की क्षमता है तो उपनिषदों का स्वाध्याय कीजिये| जहाँ परमप्रेम और स्वभाविक अभीप्सा हैं, वहीं शरणागति द्वारा समर्पण की संभावना है| किसी भी तरह की आकांक्षा, कामना या अपेक्षा तुरंत भटका देगी|
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वर्तमान समय में पातंजलि ऋषि के नाम पर हठयोग के जो आसन-प्राणायाम आदि सिखाये जाते हैं, वे हठयोग के हैं, जिनका वर्णन पातंजलि योग-दर्शन में कहीं भी नहीं है| अतः उनके लिए पातंजलि ऋषि का नाम लेना असत्य का प्रचार और गलत बात है| हठयोग के आचार्य तो गुरु गोरखनाथ और घेरण्ड मुनि हैं|
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हठयोग के तीन ग्रंथ हैं .... (१) शिव संहिता, (२) घेरण्ड संहिता (३) हठयोग प्रदीपिका|
शिव-संहिता और हठयोग-प्रदीपिका ..... नाथ संप्रदाय के ग्रंथ हैं| शिव-संहिता के रचयिता गुरु मत्स्येंद्रनाथ को माना जाता है जो गोरखनाथ के गुरु थे| हठयोगप्रदीपिका के रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वात्मारामनाथ को माना जाता है|
घेरंड-संहिता के रचयिता घेरंड मुनि हैं| यह ज्ञान उन्होने अपने शिष्य चंड कपाली को दिया था|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार योग का अर्थ है ....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
अर्थात् हे धनंजय आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो| यह समभाव ही योग कहलाता है||
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आचार्य शंकर के अनुसार हमें जीवन का हर कार्य केवल ईश्वर के लिये करना चाहिए| यह भावना भी नहीं होनी चाहिए कि "ईश्वर मुझपर प्रसन्न हों"| इस आशारूप आसक्ति को भी छोड़ कर, फलतृष्णारहित कर्म किये जाने पर अन्तःकरण की शुद्धि से उत्पन्न होने वाली ज्ञानप्राप्ति तो सिद्धि है, और उससे विपरीत (ज्ञानप्राप्ति का न होना) असिद्धि है| ऐसी सिद्धि और असिद्धि में भी सम होकर, अर्थात् दोनोंको तुल्य समझकर कर्म करना चाहिए| यही जो सिद्धि और असिद्धि में समत्व है इसीको योग कहते हैं।
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तंत्र शास्त्रों के अनुसार योग साधना का उद्देश्य परम शिवभाव को प्राप्त करना है|
भगवान वासुदेव को नमन !!
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"वसुदेव सुतं देवं, कंस चाणूर मर्दनं| देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम्||"
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् || पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२०