Sunday, 1 July 2018

"भूमा" का रहस्य ....."भगवान के मार्ग में नौकरी करने वाले से व्यापार यानी धंधा करने वाला अधिक व शीघ्र सफल होता है" .....

"भूमा" का रहस्य ....."भगवान के मार्ग में नौकरी करने वाले से व्यापार यानी धंधा करने वाला अधिक व शीघ्र सफल होता है" .....
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नौकरी करने वाला कभी खरबपति धनवान नहीं बन सकता, खरबपति धनवान बनने के लिए उसे व्यापार/धंधा ही करना होगा| एक नौकरी करने वाला दिन में कम से कम आठ घंटे परिश्रम करता है है और महीने के अंत में छोटा मोटा वेतन पाकर प्रसन्न हो जाता है| कभी कभी वेतन बढ़वाने के लिए हड़ताल पर चला जाता है| पर व्यापारी न तो कभी हड़ताल पर जाने की सोच सकता है, और न सिर्फ कुछ घंटे ही काम करने की| वह तो चौबीस घंटे अपने व्यापार की ही सोचता है, सोते समय भी वह व्यापार के स्वप्न लेता है, जागते समय भी व्यापार का ही चिंतन करता है और मिलना-जुलना भी उन्हीं से करता है जो उसके व्यापार में सहायक हैं| फालतू लोगों को वह अपने पास भी नहीं फटकने देता| यही स्थिति आध्यात्म में है|
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भगवान को पाने की नौकरी करने वालों से भगवान को पाने का धंधा यानि व्यापार करने वाले अधिक व शीघ्र सफल होते हैं| अतः भगवान को पाना अपना धंधा यानि व्यापार बना लेना चाहिए| संसार में ऐसा व्यक्ति दो लाख में से एक ही होता है जो भगवान को पाना अपना धंधा बना सकता है| वही भगवान को अत्यधिक प्रिय होता है| अन्धकार कभी सूर्य तक नहीं पहुँच सकता, वैसे ही जिज्ञासामात्र या सिर्फ पुस्तकें पढने मात्र से कोई भगवान को नहीं पा सकता|
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आध्यात्म में "भूमा" तत्व हमें यही सिखाता है| ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य भगवान सनत्कुमार से उनके प्रिय शिष्य देवर्षि नारद ने पूछा .... " सुखं भगवो विजिज्ञास इति|" जिसका उत्तर भगवान् श्री सनत्कुमार जी का प्रसिद्ध वाक्य है ..... "यो वै भूमा तत् सुखं नाल्पे सुखमस्ति|" अर्थात् भूमा तत्व में यानि व्यापकता, विराटता में सुख है, अल्पता में सुख नहीं है| जो भूमा है, व्यापक है वह सुख है| कम में सुख नहीं है| सनत्कुमार नारद को समझाते हुए कहते हैं कि "सत्य' को जानने के लिए विज्ञान और विज्ञान को जानने के लिए बुद्धि-विशेष का उपयोग करना चाहिए| बुद्धि के लिए श्रद्धा का होना अनिवार्य है| श्रद्धा द्वारा ही बुद्धि किसी विषय का मनन कर पाती है| श्रद्धा के साथ निष्ठा का होना भी अनिवार्य है, क्योंकि निष्ठा के बिना श्रद्धा नहीं होती|
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'भूमा' शब्द का अर्थ है ..... विशाल, विस्तृत, विराट, अनन्त, असीम और ऐश्वर्य| इस 'भूमा' की खोज ही भारतीय तत्त्व-दर्शन का आधार है| यह 'भूमा' अनन्त आनन्द का प्रदाता है| यह 'भूमा' ही 'ब्रह्म' का स्वरूप है| इसे ही अमृत, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वोत्तम कहा गया है| यही 'आत्मा' है| इसे जान लेने के उपरान्त मनुष्य समस्त सांसारिक भोगों से मुक्त होकर शुद्ध रूप से अपने अन्त:करण में विद्यमान 'परब्रह्म' को प्राप्त कर लेता है|
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भूमा तत्व की अनुभूति गहन ध्यान में होती है| भगवान को प्रेम करेंगे तभी तो तो उन पर ध्यान करने की पात्रता आयेगी| वह पात्रता हमारे में लानी ही पड़ेगी|
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वेद वाक्य ही प्रमाण हैं| श्रुति भगवती भी यही कहती है ..... यो वै भूमा तत् सुखम्, नाल्पे सुखमस्ति, भूमैव सुखं .... (छान्दोग्य उप. ७/२३/१)| यह सामवेद का उपनिषद् है|
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श्रुति भगवती ही कहती है कि मुमुक्षा जागृत होने पर श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य के पास जाकर मार्गदर्शन प्राप्त करें .....
"परीक्ष्य लोकान्‌ कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृतः कृतेन|
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्||" (मुण्डक.उप. १:२:१२)
अर्थात् ... ‘कर्मसे प्राप्त किये जानेवाले लोकोंकी परीक्षा करके ब्राह्मण वैराग्यको प्राप्त हो जाय, यह समझ ले कि किये जानेवाले कर्मोंसे परमात्मतत्त्व नहीं मिल सकता| वह उस ब्रह्मज्ञानको प्राप्त करनेके लिये हाथमें समिधा लेकर श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ गुरुके पास जाय|'
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श्रीमद्भागवत की उद्धव गीता में भी यह बात भगवान ने उद्धव को विस्तार से समझाई है| अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि तत्व की सारी बातें यहाँ आ चुकी हैं| आप सब महान दिव्य आत्माओं को नमन ! आप सब भगवान की श्रेष्ठतम साकार अभिव्यक्तियाँ हैं|
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ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जुलाई २०१८