सृष्टि बीज', 'संहार बीज' और 'अजपा जप' ......
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जब हम सामान्यतः साँस लेते हैं तब स्वाभाविक रूप से "हं" की ध्वनी उत्पन्न होती है, यह ध्वनी 'संहार बीज' है| और जब साँस छोड़ते हैं तब "सः" की ध्वनी उत्पन्न होती है, यह 'सृष्टि बीज' है| जब हम निरंतर चल रही इन ध्वनियों को सजग होकर सुनते हैं तब "हं सः" मन्त्र बनता है| यह एक बहुत उन्नत साधना है जो "अजपा-जप" कहलाती है| साँस लेते समय "हं" का मानसिक जाप, और छोड़ते समय "सः" का मानसिक जाप "अजपा गायत्री" कहलाता है| अचेतन रूप से हर मनुष्य इस मन्त्र का दिन में लगभग २१,६०० बार जाप करता है| अति उन्नत साधकों का क्रम स्वतः बदल जाता है, और यह मन्त्र "हंसः" से "सोहं" हो जाता है|
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इस साधना में साधक भ्रूमध्य में एक प्रकाश की भावना करता है जिसे वह समस्त ब्रह्मांड में फैला देता है और यह भाव रखता है की मैं सर्वव्यापी ज्योतिर्मय हूँ, यह देह नहीं| धीरे धीरे यह प्रकाश निरंतर दिखाई देने लगता है और कूटस्थ में ओंकार की ध्वनी सुनाई देने लगती है| यह एक बहुत उन्नत साधना है अतः परमात्मा को समर्पित होकर पूर्ण भक्तिभाव से करनी चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! तत्वमसि ! सोsहं | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१७ अक्तूबर २०१६