Thursday, 27 October 2022

भ्रूमध्य में सफ़ेद ज्योति का दर्शन ---

 भ्रूमध्य में भगवान का ध्यान करते करते जब भी एक श्वेत रंग की ज्योति के दर्शन होने लगें, तब यह मानिये की आपका भटकाव समाप्त हो गया है। अपनी पूरी शक्ति से अपने मन को वहीं लगाइये। वहीं साधना कीजिये। वह ज्योति ही भगवान विष्णु के, भगवती के, अपने अपने गुरु महाराज के -- चरण कमल हैं। उस ज्योति का ध्यान ही गुरु-चरणों का ध्यान है। उस ज्योति मे आश्रय ही श्रीगुरु-चरणों में आश्रय है।

आगे लिखने को और कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन अपने स्वयं का अनुभव लीजिये। अपने इष्ट देव का ध्यान, अपने गुरु-मंत्र का जप, उस ज्योति में ही कीजिये। सारे देवी-देवताओं का निवास हमारे मेरुदंड में है। मूलाधार में भगवान श्रीगणेश, स्वाधिष्ठान में भगवती दुर्गा, मणिपुर में सूर्य, अनाहत में विष्णु, और विशुद्धि में शिव। आज्ञाचक्र में प्रकाश रूप में सभी देवी-देवताओं या इष्ट देव के दर्शन होते हैं।
एक बालक चौथी कक्षा में पढ़ता है, एक बालक दसवीं में, एक बालक कॉलेज में, और एक बालक पीएचडी कर रहा है, सबके अलग अलग क्रम हैं। वैसे ही साधना में भी अलग अलग क्रम हैं। जो जिस कक्षा में होता है, उसे उसी कक्षा की पढ़ाई समझ में आती है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
26 अक्तूबर 2022

पढ़े फारसी बेचें तेल, देखो यह कुदरत का खेल ---

पढ़े फारसी बेचें तेल, देखो यह कुदरत का खेल ---
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जब तेल ही बेचना था तो फारसी क्यों पढ़ी? फारसी पढ़कर भी तेल ही बेच रहे हैं।
विडम्बना है प्रारब्ध की !! परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि तेल बेचने को मजबूर हैं।
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जब सांसारिक मोह माया में ही फँसे रहना था तो आध्यात्म में क्यों आये? त्रिशंकु की गति सबसे अधिक खराब होती है। या तो इस पार ही रहना चाहिए या उस पार। बीच में लटकना अति कष्टप्रद है।
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"पढ़ें फ़ारसी बेचें तेल" एक बहुत पुराना मुहावरा है| देश पर जब मुसलमान शासकों का राज्य था तब उनका सारा सरकारी और अदालती कामकाज फारसी भाषा में ही होता था| उस युग में फारसी भाषा को जानना और उसमें लिखने पढने की योग्यता रखना एक बहुत बड़ी उपलब्धी होती थी| फारसी जानने वाले को तुरंत राजदरबार में या कचहरी में अति सम्मानित काम मिल जाता था| बादशाहों के दरबार में प्रयुक्त होने वाली फारसी बड़ी कठिन होती थी, जिसे सीखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती थी| बादशाहों के उस जमाने में तेली और तंबोली (पान बेचने वाला) के काम को सबसे हल्का माना जाता था| अतः यह कहावत पड़ गयी कि "पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह कुदरत का खेल"| अर्थात जब तेल ही बेचना था तो इतना परिश्रम कर के फारसी पढने का क्या लाभ हुआ?
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किसी को आत्मज्ञान ही प्राप्त करना है तो लक्ष्य की प्राप्ति तक उसे गुरु प्रदत्त आध्यात्मिक साधना के अतिरिक्त अन्य सब कुछ भूल जाना चाहिए| इधर उधर हाथ मारने से कुछ भी लाभ नहीं है| फिर भी परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि तेल बेचने को मजबूर हैं|

भगवान की प्राप्ति "श्रद्धा" से ही होती है (श्रद्धा ही हमें भगवान से मिलाती है) ---

 भगवान की प्राप्ति "श्रद्धा" से ही होती है (श्रद्धा ही हमें भगवान से मिलाती है) ---

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साधना मार्ग पर मेरी सबसे बड़ी सहायक शक्ति यदि कोई है तो वह है --"मेरी श्रद्धा"। मेरी श्रद्धा और विश्वास ने मुझे कभी नीचे नहीं देखने दिया। श्रद्धा ने ही मेरे सारे संशय दूर किए हैं और सारा आवश्यक ज्ञान दिया है। मुझे भगवान में, शास्त्रों में, और गुरु में पूर्ण अडिग श्रद्धा है। जब तक मैं श्रद्धावान हूँ, भगवान मेरे साथ हैं।
भगवान कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥"
अर्थात् - "श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है॥"
The man who is full of faith, who is devoted to it, and who has subdued the senses obtains (this) knowledge; and having obtained the knowledge he attains at once to the supreme peace.
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मेरी श्रद्धा और विश्वास है कि भगवान हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, वे मुझसे दूर नहीं जा सकते। मेरी यह श्रद्धा ही मुझे भगवान की अनुभूतियाँ कराती हैं, और मुझे भगवान से जोड़े रखती है। रामचरितमानस के मंगलाचरण में लिखा है --
"भवानी शंकरौ वन्दे,श्रद्धा विश्वास रुपिणौ।
याभ्यां बिना न पश्यन्ति,सिद्धा: स्वन्तस्थमीश्वरं॥"
अर्थात् - श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप पार्वती जी और शंकर जी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते।
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श्रद्धाहीन व्यक्ति कभी भी ईश्वर को उपलब्ध नहीं हो सकता। श्रद्धा जागृत करो और उस पर दृढ़ रहो। श्रद्धा और विश्वास निश्चित रूप से हमें परमात्मा से मिला देंगे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ अक्तूबर २०२२