भ्रूमध्य में भगवान का ध्यान करते करते जब भी एक श्वेत रंग की ज्योति के दर्शन होने लगें, तब यह मानिये की आपका भटकाव समाप्त हो गया है। अपनी पूरी शक्ति से अपने मन को वहीं लगाइये। वहीं साधना कीजिये। वह ज्योति ही भगवान विष्णु के, भगवती के, अपने अपने गुरु महाराज के -- चरण कमल हैं। उस ज्योति का ध्यान ही गुरु-चरणों का ध्यान है। उस ज्योति मे आश्रय ही श्रीगुरु-चरणों में आश्रय है।
आगे लिखने को और कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन अपने स्वयं का अनुभव लीजिये। अपने इष्ट देव का ध्यान, अपने गुरु-मंत्र का जप, उस ज्योति में ही कीजिये। सारे देवी-देवताओं का निवास हमारे मेरुदंड में है। मूलाधार में भगवान श्रीगणेश, स्वाधिष्ठान में भगवती दुर्गा, मणिपुर में सूर्य, अनाहत में विष्णु, और विशुद्धि में शिव। आज्ञाचक्र में प्रकाश रूप में सभी देवी-देवताओं या इष्ट देव के दर्शन होते हैं।
एक बालक चौथी कक्षा में पढ़ता है, एक बालक दसवीं में, एक बालक कॉलेज में, और एक बालक पीएचडी कर रहा है, सबके अलग अलग क्रम हैं। वैसे ही साधना में भी अलग अलग क्रम हैं। जो जिस कक्षा में होता है, उसे उसी कक्षा की पढ़ाई समझ में आती है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
26 अक्तूबर 2022