भगवान की प्राप्ति "श्रद्धा" से ही होती है (श्रद्धा ही हमें भगवान से मिलाती है) ---
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साधना मार्ग पर मेरी सबसे बड़ी सहायक शक्ति यदि कोई है तो वह है --"मेरी श्रद्धा"। मेरी श्रद्धा और विश्वास ने मुझे कभी नीचे नहीं देखने दिया। श्रद्धा ने ही मेरे सारे संशय दूर किए हैं और सारा आवश्यक ज्ञान दिया है। मुझे भगवान में, शास्त्रों में, और गुरु में पूर्ण अडिग श्रद्धा है। जब तक मैं श्रद्धावान हूँ, भगवान मेरे साथ हैं।
भगवान कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
अर्थात् - "श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है॥"
The man who is full of faith, who is devoted to it, and who has subdued the senses obtains (this) knowledge; and having obtained the knowledge he attains at once to the supreme peace.
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मेरी श्रद्धा और विश्वास है कि भगवान हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, वे मुझसे दूर नहीं जा सकते। मेरी यह श्रद्धा ही मुझे भगवान की अनुभूतियाँ कराती हैं, और मुझे भगवान से जोड़े रखती है। रामचरितमानस के मंगलाचरण में लिखा है --
"भवानी शंकरौ वन्दे,श्रद्धा विश्वास रुपिणौ।
याभ्यां बिना न पश्यन्ति,सिद्धा: स्वन्तस्थमीश्वरं॥"
अर्थात् - श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप पार्वती जी और शंकर जी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते।
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श्रद्धाहीन व्यक्ति कभी भी ईश्वर को उपलब्ध नहीं हो सकता। श्रद्धा जागृत करो और उस पर दृढ़ रहो। श्रद्धा और विश्वास निश्चित रूप से हमें परमात्मा से मिला देंगे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ अक्तूबर २०२२
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