Wednesday 21 March 2018

किसी भी परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ हम क्या कर सकते हैं ? .....

किसी भी परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ हम क्या कर सकते हैं ? .....
.
विश्व में किसी को भी विचलित कर देने वाली अनेक घटनाएँ हो रही हैं जिनसे पहले मैं विचलित हो जाया करता था| अनेक राष्ट्रविरोधी कार्य हो रहे हैं जिनसे पीड़ा होती है| पर अंततः निज विवेक ने यह सोचने को बाध्य किया कि इस तरह विचलित होने से कुछ लाभ नहीं है| किसी भी परिस्थिति में हम सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, वही करना चाहिए|
.
मेरा विवेक तो यही कहता है कि निज जीवन में हमें अन्याय का प्रतिकार करना चाहिए पर सर्वश्रेष्ठ कार्य जो हम कर सकते हैं वह है ..... "परमात्मा का ध्यान" और "परमात्मा से समष्टि के कल्याण की प्रार्थना"| यह सर्वाधिक सकारात्मक कार्य है| परमात्मा हमारे जीवन में बहे| अपना जीवन हम उसे समर्पित कर दें| यह सृष्टि सृष्टिकर्ता परमात्मा की है| वे अपनी सृष्टि को चलाने में सक्षम हैं| उन्हें हमारी सलाह की आवश्यकता नहीं है|
.
आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ मार्च २०१६

हम परमात्मा की परम चैतन्यमय सर्वव्यापकता हैं ....

हम परमात्मा की परम चैतन्यमय सर्वव्यापकता हैं ....
.
प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर हाथ-पाँव व मुंह धोकर पद्मासन या सिद्धासन या स्थिर सुखासन में अपने आसन पर बैठिये| मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो| मेरुदंड उन्नत रहे| शिवनेत्र होकर यानि बिना तनाव के भ्रूमध्य में दृष्टि स्थिर रखते हुए अपनी चेतना को आज्ञाचक्र (जहाँ मेरुशीर्ष यानि Medulla है) पर स्थिर करें| आज्ञाचक्र से अपनी चेतना को सर्वत्र समस्त ब्रह्मांड में विस्तृत कर दें|
.
उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते| हम परमात्मा के अंश हैं, उनके अमृतपुत्र हैं, हमारा हृदय वैराग्य, भक्ति, विनम्रता और देवत्व से परिपूर्ण है| हम प्रभु के साथ एक हैं| अपनी बुराई-अच्छाई, अवगुण-गुण, पुण्य-पाप, सारे कर्मफल, यहाँ तक कि अपना सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा को समर्पित कर दें| किसी भी तरह की कोई कामना न रहे|
.
अपनी अपनी गुरु परम्परा के अनुसार अजपा-जप और ध्यान करें| कोई भी संदेह हो तो उसका निवारण दिन में कभी भी अपनी गुरु परम्परा के आचार्यों से कर लें| जो योगमार्ग के साधक हैं वे शिवभाव स्थित होकर शिव का ध्यान करें| भगवान की कृपा होगी तब विक्षेप और आवरण की मायावी शक्तियों का प्रभाव नहीं रहेगा| आवरण हटेगा तो हम स्वयं को सृष्टिकर्ता के साथ ही पायेंगे|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ मार्च २०१६