Wednesday, 21 March 2018

हम परमात्मा की परम चैतन्यमय सर्वव्यापकता हैं ....

हम परमात्मा की परम चैतन्यमय सर्वव्यापकता हैं ....
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प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर हाथ-पाँव व मुंह धोकर पद्मासन या सिद्धासन या स्थिर सुखासन में अपने आसन पर बैठिये| मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो| मेरुदंड उन्नत रहे| शिवनेत्र होकर यानि बिना तनाव के भ्रूमध्य में दृष्टि स्थिर रखते हुए अपनी चेतना को आज्ञाचक्र (जहाँ मेरुशीर्ष यानि Medulla है) पर स्थिर करें| आज्ञाचक्र से अपनी चेतना को सर्वत्र समस्त ब्रह्मांड में विस्तृत कर दें|
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उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते| हम परमात्मा के अंश हैं, उनके अमृतपुत्र हैं, हमारा हृदय वैराग्य, भक्ति, विनम्रता और देवत्व से परिपूर्ण है| हम प्रभु के साथ एक हैं| अपनी बुराई-अच्छाई, अवगुण-गुण, पुण्य-पाप, सारे कर्मफल, यहाँ तक कि अपना सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा को समर्पित कर दें| किसी भी तरह की कोई कामना न रहे|
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अपनी अपनी गुरु परम्परा के अनुसार अजपा-जप और ध्यान करें| कोई भी संदेह हो तो उसका निवारण दिन में कभी भी अपनी गुरु परम्परा के आचार्यों से कर लें| जो योगमार्ग के साधक हैं वे शिवभाव स्थित होकर शिव का ध्यान करें| भगवान की कृपा होगी तब विक्षेप और आवरण की मायावी शक्तियों का प्रभाव नहीं रहेगा| आवरण हटेगा तो हम स्वयं को सृष्टिकर्ता के साथ ही पायेंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ मार्च २०१६

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