Thursday 8 December 2016

गुरु-तत्व अनुभूति का विषय है

गुरु-तत्व अनुभूति का विषय है जो परमात्मा की परम कृपा से ही समझ में आता है, बुद्धि से नहीं|
गुरु तत्व में स्थिति ही आत्म तत्व में स्थिति है|
बिना किसी शर्त के परमात्मा से परम प्रेम यानि Unconditional love to the Divine ही द्वार है|
जितना अधिक हमें परमात्मा से प्रेम होता है उसी अनुपात में हमारा मार्ग प्रशस्त होता जाता है|
आज गुरूवार है, गुरु प्रदत्त विधि से रात्री में खूब ध्यान करें|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!

(1) इस संसार में जीवन के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण हो ? ..... (2) क्या यह संसार मिथ्या है ? ......

(1) इस संसार में जीवन के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण हो ? .....
(2) क्या यह संसार मिथ्या है ? ......
आज उपरोक्त दो विषयों पर पूरे ह्रदय से पूरी ईमानदारी के साथ अपने विचार और भावनाओं को संक्षेप में व्यक्त कर रहा हूँ|
.
(1) इस संसार में जीवन के प्रति हमारा क्या दृष्टीकोण हो ? ....
--------------------------------------------------------------
उपरोक्त प्रश्न का उत्तर हमारी मानसिक और आध्यात्मिक परिपक्वता पर निर्भर है|
किशोरावस्था में मैं सोचता था की इस संसार में गलत स्थान पर आ गए है| यहाँ जन्म नहीं होता तो अच्छा होता|
फिर युवावस्था में यह सोच बनी कि यहाँ अपने कर्मों का फल भोगने के लिए आये हैं| यह संसार कर्मभूमि भी है और भोगभूमि भी| यह सोच अभी तक थी|
अब सोच दूसरी है, और वह यह है कि जैसी भी परमात्मा की इच्छा हो वैसे ही ठीक है, मेरी कोई अलग इच्छा नहीं होनी चाहिए|
.
वैसे जीवन जीने के तीन ही दृष्टिकोण हो सकते हैं ... एक तो है सेवक का दृष्टिकोण, ... दूसरा है अतिथि का दृष्टिकोण, ... और तीसरा है आसुरी दृष्टिकोण|
.
सेवक का दृष्टिकोण .......... यह है कि इस संसार में मैं परमात्मा का मात्र एक सेवक हूँ| उनका दास ही नहीं दासानुदास हूँ| यहाँ मेरे द्वारा वह कार्य ही होगा जिससे मेरे स्वामी यानि परमात्मा प्रसन्न हों| ऐसी सोच वाला व्यक्ति भगवान का परम भक्त होता है|
.
अतिथि का दृष्टिकोण ........ यह है कि इस संसार में मेरा कुछ भी नहीं है, सब कुछ परमात्मा का है, मैं यहाँ मात्र एक अतिथि पर्यटक हूँ, जो कुछ भी है वह सब परमात्मा का है और स्वयं परमात्मा ही सब कुछ है| मेरा कार्य सिर्फ परमात्मा की इच्छानुसार चलना है और स्वयं को परमात्मा के प्रति समर्पित करना है| ऐसे लोग ज्ञानी होते हैं|
.
आसुरी दृष्टिकोण ...... यह है कि इस संसार में जो कुछ भी है वह मेरे भोग के लिए है, मैं अधिक से अधिक उपार्जन करूँ और अधिक से अधिक अधिकार प्राप्त करूँ| ऐसा व्यक्ति सोचता है कि भगवान ने सब कुछ जो भी बनाया है वह उसके भोगने के लिए है और वह स्वयं को ही अपने अधिकार में आई हर वस्तु का स्वामी मानता है| ऐसे लोग असुर होते हैं|
इससे भी नीचे के कुछ राक्षसी और पैशाचिक दृष्टिकोण होते हैं जिन की मैं चर्चा भी नहीं करना चाहता| ये भी आसुरी श्रेणी में ही आते हैं|
.
अब निर्णय हमारा है कि हम क्या बनें| जैसी हमारी सोच होगी वैसे ही हम बन जायेंगे|
.
(2) क्या यह संसार मिथ्या है ? ......
--------------------------------
जी, नहीं, बिलकुल नहीं | यह संसार ईश्वर की बहुत सुन्दर रचना है जिसे हमें और भी अधिक सुन्दर बनाना है| यह ईश्वर रचित संसार मिथ्या कैसे हो सकता है ?
कई लोग कहते हैं कि संसार वन्ध्यापुत्र के समान है, मिथ्या है, भ्रम है आदि आदि | वे कहते हैं कि इस संसार को त्याग दो| पर इस संसार को आज तक न तो कोई त्याग सका है और न कोई त्याग सकेगा| कुछ लोग घर छोडकर आश्रमों में, निर्जन वनों में, पर्वतों में और शमसानों में रहते हैं| मैं उनके विचारों और भावनाओं का पूर्ण सम्मान करता हूँ पर हैं तो वे संसार के भीतर ही| उनको भी भूख-प्यास सर्दी-गर्मी लगती है| उन्हें भी किसी का साथ चाहिए, चाहे वह परमात्मा का ही क्यों न हो| अतः संसार मिथ्या कैसे हो सकता है ? जिसे लोग त्याग रहे हैं वह क्या एक सच्चाई नहीं है?
हाँ यह सच्चाई है कि हरेक व्यक्ति अपने ही विचारों के लोगों के साथ रहना चाहता है| जब समाज में अपने विचारानुकूल लोग नहीं मिलते तो वह एकांत में रहने लगता है| ईश्वर ने बहुत सुन्दर संसार बनाया है जिसके लिए हम उसके आभारी हैं|
हाँ, जो सिद्ध पुरुष तुरीयातीत अवस्था में हैं, वे ही संसार को मिथ्या कह सकते हैं, अन्य कोई नहीं|
.
हमें स्वार्थी भी होना चाहिए, पर स्वार्थ के साथ साथ परमार्थ भी हो|
.
आप सब के हृदयों में स्थित भगवान वासुदेव को प्रणाम ! सभी को शुभ कामनाएँ और नमन|
ॐ नमः शिवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||

भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है .....

भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है ......
------------------------------
पूरी पृथ्वी पर भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है| यहाँ वर्ष में अधिकतम दो या तीन बार समुद्री चक्रवात आते हैं, जिनकी भी गहनता अधिक नहीं होती| इनके प्रभाव से तटीय क्षेत्रों में खूब वर्षा होती है|
अगर हम उन विकराल समुद्री तूफानों से तुलना करें जो उत्तरी प्रशांत के पश्चिमी भाग में 180° व 100°E.की देशान्तर रेखाओं के मध्य में फिलिपीन्स सागर में उत्पन्न होते हैं तो भारत के चक्रवात उनके सामने कुछ भी नहीं हैं|
वहाँ अभी सर्दियों में एक के बाद एक महा भयावह तूफानों की श्रृंखला जन्म लेना प्रारम्भ कर देगी| ये फिलिपीन के लुज़ॉन द्वीप के पूर्वी भाग से टकराते हुए ताइवान के पास से जापान की ओर बढ़ जाते हैं| कभी तो ये जापान से टकराते हैं और कभी जापान के पास से अमेरिका के अल्युशियन द्वीप समूह की ओर बढ़ जाते हैं| इनके केंद्र के आसपास कोई जहाज आ जाए तो उसका डूबना निश्चित है| पूरा उत्तरी प्रशांत महासागर छोटे मोटे अनेक तूफानों से भर जाता है| सबसे खराब मौसम तो जापान का है|
प्रकृति ने हमें पृथ्वी पर सबसे अच्छा मौसम दिया है|
धन्य है भारत माँ | ॐ ॐ ॐ ||

अंडमान का हेवलॉक द्वीप .....

अंडमान का हेवलॉक द्वीप .....
=================
आज वहाँ आये एक समुद्री चक्रवात के कारण इस द्वीप का नाम बार बार आ रहा है| इस द्वीप पर दो-तीन बार जाने का अवसर मिल चुका है| वहाँ कई बंगाली हिन्दू शरणार्थी परिवार भी बसे हुए हैं जिनमें से एक दो परिवारों से मेरा परिचय भी था|
यहाँ के कुछ द्वीपों के अंग्रेजों द्वारा रखे हुए नामों पर मुझे आपत्ति है, विशेषकर नील, हेवलॉक और रोज़ जैसे कुछ द्वीपों के नाम पर|
.
ये नाम उन अँगरेज़ सेना नायकों के नाम हैं जिन्होनें भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को निर्दयता से कुचला, लाखो भारतीयों का नरसंहार किया और झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की ह्त्या की|
.
हेवलॉक द्वीप का नाम अँगरेज़ General Sir Henry Havelock के नाम पर रखा गया है जिनके नेतृत्व में अँगरेज़ सेना ने झाँसी की रानी को भागने को बाध्य किया और उनकी ह्त्या की|

ऐसे ही रोज द्वीप का नाम अँगरेज़ Field Marshal Hugh Henry Rose के नाम पर रखा गया है जो १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को कुचलने के जिम्मेदार थे|
ऐसे ही नील द्वीप का नाम भी अँगरेज़ सेनाधिकारी General James George Smith Neill के नाम पर रखा गया है जिसने लाखों भारतीयों की निर्मम हत्याएँ की|
और भी ऐसे कई उदाहरण हैं|
,
भारत को स्वतंत्र हुए इतने वर्ष बीत गए पर अभी भी गुलामी के निशान इन द्वीपों के नाम यथावत हैं|
नेताजी सुभाष बोस ने अंडमान-निकोबार का नाम बदलकर स्वराज-शहीद द्वीप समूह कर दिया था पर भारत सरकार ने अंग्रेजों के दिए हुए नाम ही यथावत रखे|
कम से कम अब तो हमें ये नाम बदलने चाहिएँ|
धन्यवाद |
जय जननी, जय भारत | ॐ ॐ ॐ ||

हमें सिर्फ और सिर्फ परमात्मा चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं .....

हमें सिर्फ और सिर्फ परमात्मा चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं .....
===========================================
परमात्मा से कम कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं है| हमें न तो उसकी विभूतियों से कोई मतलब है, न उसके ऐश्वर्य से, और न उसकी किसी महिमा से|
न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य|
कोई भी और कुछ भी अन्य नहीं चाहिए| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए|
परमात्मा से अन्य कुछ भी कामना का होना सबसे बड़ा धोखा है, अतः हमें सिर्फ परमात्मा ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं|
.
किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई मतलब हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|
यह संसार है, जिसमें तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं|
भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ---- ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है|
चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है|
.
नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है|
.
ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||

चलाचली का मेला .....

इस चलाचली के मेले में जो आयेगा वह जाएगा भी| किस किस का शोक करें?
आत्मा तो शाश्वत है| सिर्फ दृश्य बदलते हैं|
.
जिन्होनें कभी जन्म ही नहीं लिया वे मृत्युंजय परमात्मा परमशिव ही हमारे उपास्य और परम आराध्य हैं| उन्हीं के प्रति हमारा पूर्ण समर्पण है| उनके अतिरिक्त अन्य सब मिथ्या है| हमारा हर साँस, जीवन का हर पल और सारा अस्तित्व उन्हीं का है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

सिंहावलोकन ------ (विगत की स्मृतियों का सार)

सिंहावलोकन ------ (विगत की स्मृतियों का सार)
----------------
विगत की स्मृतियों का सार व्यक्त करने को ह्रदय कह रहा है| अतः ह्रदय का आदेश मानते हुए कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ|
.
मुझे बाल्यकाल व किशोरावस्था की स्मृतियों का बोध प्रभु कृपा से अभी तक है|
मन में सदा से ही अनेक कुंठाएँ और वासनाएँ थीं व ह्रदय में एक सुप्त अभीप्सा थी किसी अज्ञात लक्ष्य को प्राप्त करने की|
आज के मापदंडों के अनुसार तो उस समय चारों ओर अज्ञान और अंधकार ही था| अच्छा वातावरण नहीं था| कोई अच्छे मार्गदर्शक भी नहीं थे| न तो कंप्यूटर थे और न ही आज की तरह की सूचना प्रोद्योगिकी| सामान्य लोग भी अधिक पढ़े लिखे नहीं थे| सरकारी कार्यालयों और बैंकों में बाबू लोग दसवीं-ग्यारहवीं पास ही होते थे|
.
पर वह ज़माना आज से अच्छा था| किसी भी प्रकार की ट्यूशन, कोचिंग आदि का दबाव विद्यार्थी जीवन में नहीं था| विद्यार्थियों को इतना समय मिल जाता था कि वे शाम को खेल के मैदान में या पुस्तकालयों में या संघ की शाखाओं में जा सकते थे| प्रातःकालीन भ्रमण का समय भी मिल जाता था| बिजली तो हमारे यहाँ सन १९६३ में आई थी| उससे पूर्व किरोसिन की लालटेन या लैंप की रोशनी में ही रात को पढ़ते थे| गाँव में तो घी का दिया जलाकर उसी के प्रकाश में विद्यार्थी पढ़ते थे| घरों में पानी भी कुँए से भरकर लाना पड़ता था| घर में पानी आता था पर घर से बाहर पानी नहीं जाता था अतः रास्तों में अधिक कीचड नहीं होता था| विद्यालयों में अध्यापक लोग बहुत ही लगन और निष्ठा से पढ़ाते थे| कभी भी वे गृहशिक्षा यानि ट्यूशन पर जोर नहीं देते थे| समाज में अध्यापकों का सम्मान खूब था| विद्यार्थी भी अध्यापकों का खूब सम्मान करते थे और अध्यापक लोग भी अपने विद्यार्थियों का खूब ध्यान रखते थे| गाँवों से बच्चे नित्य पैदल ही आते जाते थे| सरकारी विद्यालय मुश्किल से एक दो ही थे, प्रायः सारे विद्यालय सेठ साहूकारों के द्वारा बनाए गए और उन्हीं के द्वारा संचालित थे|
.
समाज का वातावरण भी धार्मिक था| हमारे पिताजी और ताऊजी नित्य प्रातः साढ़े तीन बजे उठ कर बालू रेत के टीलों में यानि जंगल में शौचादि से निवृत होकर कुँए पर स्नान करते और कम से कम दो घंटे तक हमारे पारिवारिक शिवालय में शिव जी की पूजा करते| हमारे पिताजी बताते थे कि हमारे सभी पूर्वज परम शिव भक्त थे| माँ से मुझे कृष्ण भक्ति के भी संस्कार मिले|
महिलाएं भी प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही कुँए से पानी निकाल कर नहाती थीं और सब एक साथ मंदिर जातीं| मंदिर में सब महिलाओं का आपस में मिलना होता था| वहीँ वे एक दुसरे का सुख दुःख पूछ लेतीं| अतः समाज में एकता रहती और महिलाओं में कोई संवादहीनता नहीं थी|
.
प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर जंगल में शौचादि से निवृत होना मेरी नित्य की दिनचर्या थी| फिर तीन-चार किलोमीटर दौड़ कर जाने की और फिर घूमते हुए बापस आने की| नहाने के लिए कुँए से ही पानी लाना पड़ता था| घर में नहाना एक विलासिता थी| शाम को या तो किसी पुस्तकालय में जाता या संघ की शाखा में| उस ज़माने में संघ के प्रचारक पढ़े लिखे और विद्वान् ही नहीं, त्यागी तपस्वी भी होते थे| संघ के प्रचारकों ने ही विवेकानंद साहित्य से परिचय कराया और संघ कार्यालय में ही विवेकानंद साहित्य का अध्ययन किया| 15-16 वर्ष तक की आयु में ही सम्पूर्ण विवेकानद साहित्य, रामायण, महाभारत और अनेक महापुरुषों की जीवनियाँ गहनता से पढ़ ली थीं| यहीं से आध्यात्म में रूचि जागृत हुई|

अब ये बातें सब स्वप्न सी लगती हैं| युग इतनी तीब्रता से परिवर्तित हुआ है कि आज की पीढ़ी विश्वास नहीं कर सकती कि वे कैसे दिन थे| हम लोग भी अपने से बड़ों की बातों पर आश्चर्य करते थे| उन्होंने भी बहुत बड़े बदलाव देखे थे|| हमारे जीवन काल में ही इतने बड़े परिवर्तन हुए हैं कि सोच कर आश्चर्य होता है|
युग ऐसे ही बदलता रहेगा| हर्ष के और पीड़ा के क्षण ऐसे ही आते रहेंगे| पता नहीं सृष्टिकर्ता की क्या मंशा है| पर जो भी हो रहा है ठीक हो रहा है और प्रकृति के नियमानुसार हो रहा है| नियमों को न जानना हमारी अज्ञानता है|
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप
जगत की ज्वालाओं का मूल|
ईश का वह रहस्य वरदान
उसे तुम कभी न जाना भूल||"
विडम्बना तो यह है कि सारा जीवन अपनी कुंठाओं से मुक्त होने और वासनाओं की पूर्ति में ही व्यतीत हो गया| अब तो प्रभु से यही प्रार्थना है कि वे हमें निरंतर अन्धकार से प्रकाश की ओर व असत्य से सत्य की ओर ले जाते रहें| फिर कभी असत्य और अन्धकार की शक्तियों से संपर्क ना हो| ॐ असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्माऽमृतं गमय......
मेरे जीवन के अब तक के समस्त अनुभवों का सार यही है की जब तक परमात्मा की प्राप्ति ना हो जाए यानि जब तक आत्मसाक्षात्कार न हो जाये तब तक किसी भी प्रकार का मनोरंजन यानि अन्य किसी भी दिशा में मन को लगाना स्वयं के प्रति अपराध है| मनोरंजन का अर्थ है ---- परमात्मा को भूलना|
ॐ तत्सत्| ॐ शिव|

यह क्रम कब तक चलता रहेगा ?

यह क्रम कब तक चलता रहेगा ?
---------------------------------
जैसे क्रिकेट के स्कोर बोर्ड पर रनों की संख्या बढती रहती है वैसे ही नित्य (ना)पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैनिकों के मारे जाने के समाचारों से अत्यधिक पीड़ा होती है| मैं जगन्माता से प्रार्थना करता हूँ कि भारत के बाहर और भीतर के शत्रुओं का नाश करें|
.
पाकिस्तान एक नाजायज मुल्क है| इसका निश्चित रूप से नाश होगा| वर्तमान में जहाँ पाकिस्तान है वह पूरा इलाका अफगानिस्तान और कश्मीर सहित महाराजा रणजीतसिंह कि रियासत थी| आज़ादी के बाद दुष्ट अंग्रेजों ने सभी रियासतों को विकल्प दिया था भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने का| पर महाराजा रणजीतसिंह की एकमात्र उत्तराधिकारी राजकुमारी बाम्बा सोफिया जिन्दान दिलीप सिंह की एक भी ना सुनी गयी| उसने अंग्रेजी सरकार से लेकर सभी राजे रजवाड़ों से गुहार लगाई थी कि उसके दादा के राज्य को बाँटने का अधिकार किसी को नहों है| बंटवारे के समय राजकुमारी बाम्बा को लाहौर जाने कि अनुमति भी नहीं दी गयी जो महाराजा रणजीतसिंह की राजधानी थी|
.
पूरी कहानी बहुत लम्बी है| सही इतिहास भारत की जनता से पूर्ववर्ती सरकारों ने छिपाया है| इस विषय पर माननीय श्री अश्विनी कुमार जी ने पूर्व में विस्तार से कई लेख पंजाब केसरी समाचार पत्र में लिखे हैं|
पाकिस्तान को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका अस्तित्व अनैतिक रूप से महान हिन्दू नायक महाराजा रणजीतसिंह की भूमि पर है|
इस दुष्ट राष्ट्र का विनाश सुनिश्चित है|
.
भारत माता की जय|| जय श्री राम !

भारत हिदू राष्ट्र था, है और सदा ही रहेगा .....

भारत हिदू राष्ट्र था, है और सदा ही रहेगा .....

भारत का अभ्युदय और विस्तार ही धर्म का अभ्युदय और विस्तार है, और भारत का पतन और ग्लानी ही धर्म का पतन और ग्लानी है|
भारत ही धर्म है और धर्म ही भारत है| भारत के बिना धर्म नहीं है, और धर्म के बिना भारत नहीं है|
मुझसे अनेक व्यक्ति पूछते हैं कि सनातन हिन्दू धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और हिन्दू राष्ट्र की सम्भावना कैसे सम्भव है|
आज ही एक पत्रकार मित्र मिले जो इतने निराश हो चुके हैं जो मिलते ही कहने लगे कि हिन्दु धर्म और संस्कृति का विनाश वर्तमान परिस्थितियों में निश्चित है|
समाज में अधिकाँश लोग अब यह मानने लगे हैं कि हिन्दू धर्म विनाश की ओर जा रहा है और इसे कोई नहीं बचा सकता क्योंकि बाहरी लक्षण ऐसे ही हैं|
समाज में ऐसी निराशा का छा जाना वास्तव में चिंता का विषय है|
पर मैं उन्हें यह बता देना चाहता हूँ कि हिन्दू राष्ट्र एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है|
यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से प्रकृति द्वारा चल रही है| यदि आप का संकल्प परमत्मा के संकल्प से जुड़ जाए तो आप भी इस सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार में भागीदार हो सकते हैं| आप का दृढ़ संकल्प भी इस सृष्टि का परावर्तन कर सकता है|
मुझसे कुछ लोग यह भी पूछते हैं कि आप तो इतने साधू-संतों से मिलते हो, क्या वे धर्म की रक्षा और दुष्टों का विनाश नहीं कर सकते| मैं उन्हें यह बताना चाहता हूँ कि वे साधू संत भी इसी उद्देष्य यानि धर्म की रक्षा हेतु ही साधना कर रहे हैं| उनका लक्ष्य कोई मुक्ति पाना नहीं है|
हिन्दु राष्ट्रकी स्थापना ब्रह्मतेजयुक्त संतों के संकल्प से होगी! हमें सबसे बड़ी आवश्यकता है ब्रह्मतेज की| वह ब्रह्म तेज ही भारत को पुनर्ज्जीवन देगा! अनेक साधक इस उद्देष्य के लिए साधना कर रहे हैं|
ब्रह्मतेजयुक्त संतों के संकल्प से क्षात्रतेज युक्त पुरुषार्थी उत्पन्न होंगे जो हिन्दु राष्ट्रके स्वप्नको साकार करेंगे| इस प्रक्रियामें सूक्ष्म स्तर पर प्रकृति उनका सहयोग करेगी और अपने विनाशक रूप में दुष्टों का संहार करेगी| यह प्रक्रिया आरंभ होने वाली है और इस हेतु हमें और भी गहन साधना करनी होगी|
ऐसा लग रहा है कि निकट भविष्यमें भारी विनाश होगा जिसमें दुर्जनों के साथ साथ सज्जन भी भारी संख्यामें विनाशकी बलि चढ़ेंगे| धृतराष्ट्र की तरह अधर्म और राष्ट्र द्रोह के मूक सहमतिदारों का कुल सहित नाश होगा| वर्तमान सभ्यता विनाश की ओर जा रही है और यह विनाश टल नहीं सकता|
इस विनाश से रक्षा का एकमात्र उपाय भगवन श्री कृष्ण ने गीता में बताया है ---------
"स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् |"
=========================
ॐ शिव|

मैं ज्योतिषांज्योति पूर्ण प्रकाश हूँ .....

मैं ज्योतिषांज्योति पूर्ण प्रकाश हूँ .....
----------------------------------
मंचस्थ निजात्मन, आप सब विभिन्न रूपों में मेरी ही निजात्मा हो| आप सब को मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण अनंत अहैतुकी प्रेम समर्पित है|
धर्म और राष्ट्र के उत्थान के लिए आप जैसे प्रत्येक सच्चे भारतीय को अपनी दीनता और हीनता का परित्याग कर अपने निज देवत्व रूप को जागृत करना होगा| क्षुद्रात्मा पर परिछिन्न माया के आवरण को हटाना होगा|
.
"आप पूर्ण प्रकाश हैं| आप ज्योतियों की ज्योति -- ज्योतिषांज्योति हो|
आपके संकल्प और दिव्य प्रकाश से ही सम्पूर्ण संसार का विस्तार हुआ है| आप कोई ख़ाक के पुतले और दीन हीन नहीं हो|"

"आप सम्पूर्ण भारतवर्ष हो| सम्पूर्ण अखंड भारतवर्ष ही आपका शरीर है|
आपका अभ्युदय ही भारत का अभ्युदय है और भारत का उत्कर्ष ही आपका उत्कर्ष है|
आपके अन्तस्थ सूर्य का प्रकाश ही एकमात्र प्रकाश, प्रकाशों का प्रकाश -- ज्योतिषांज्योति है|"
.
जब आप साँस लेते हो तो सम्पूर्ण भारतवर्ष साँस लेता है, जब आप साँस छोड़ते हो तो सम्पूर्ण भारत साँस छोड़ता है| जब आप जागते हो तो सारा भारत जागता है, आप सोते हो तो सारा भारत सोता है| आपकी प्रगति ही भारत की प्रगति है|
.
निरंतर निदिध्यासन करते रहिये --- "मैं प्रकाशों का प्रकाश हूँ", "तत्वमसि", "सोsहं" |
.
आप उस ज्योतिषांज्योति से स्वयं को एकाकार कीजिये| यही आपका वास्तविक तत्व है| तब आप में कोई भय, आक्रोष और दु:ख नहीं रहेगा|
"सर्वत्र आप ही तो हो| आपका निज प्रकाश निरंतर, अविचल और शाश्वत है|
यह संसार तो छोटी मोटी तरंगों और भंवरों से अधिक नहीं है|
आप परिपूर्ण और मूर्तमान आनंद हैं|"
.
अपनी उच्चतर क्षमताओं को विकसित करने के लिए इसी विचार को निरंतर बल देना होगा --- "तत्वमसि, सोsहं"||
ॐ! ॐ!! ॐ!!!

किसी भी संस्कृति की महानता उसके नायकों से आंकी जाती है .....

किसी भी संस्कृति की महानता उसके नायकों से आंकी जाती है .....
---------------------------------------------------------------------
भारतवर्ष के महान नायक --- आध्यात्मिक महापुरुष ही रहे हैं जिनसे हम युगों युगों से प्रेरणा लेते रहे हैं| हमारे महानतम प्रेरणास्त्रोत रहे हैं भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण|
भारत में पृथु जैसे राजा भी हुए हैं जिन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी पर राज्य किया है, जिनके कारण यह ग्रह पृथ्वी कहलाता है| पर हम उनको आदर्श न मानकर श्रीराम और श्रीकृष्ण को ही परम आदर्श मानते आये हैं पिछले हज़ारों वर्षों से| उनके आदर्शों ने ही हमारे राष्ट्र को जीवित रखा है, और उनके आदर्श ही हमारा पुनरोद्धार करेंगे|
.
वे ही हमारे उपास्य हैं, उपासना द्वारा उनके गुणों को हमें स्वयं में अवतरित करना ही पड़ेगा| हमें अपने सत्य सनातन धर्म और महानतम संस्कृति के पुनरोद्धार के लिए निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करना ही होगा और अपने समाज के बच्चों में भी भगवान के प्रति अहैतुकी परम प्रेम जागृत करना ही होगा| यही जीवन की सार्थकता होगी| जो भगवान को प्रेम नहीं कर सकता वह अपने राष्ट्र को या किसी को भी प्रेम नहीं कर सकता|
सब का कल्याण हो|

ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||

यमदूतिका ......

यमदूतिका ......
-----------
जब कान के पास के बाल सफ़ेद हो जाएँ तब सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि कानों के पास के बालों का सफ़ेद होना यमराज का एक सन्देश है कि मैं कभी भी आ सकता हूँ| सफ़ेद बालों को यमदूतिका ही समझना चाहिए|
रामायण में बर्णन है कि महाराजा दशरथ ने एक बार दर्पण में अपना मुख देखा तो कानों के पास सफ़ेद बाल दिखाई दिए| उन्होंने तुरंत ही राम के राज्याभिषेक की तैयारी आरम्भ कर दी|
कहते हैं कि यमराज जब किसी के प्राण हरने आते हैं तो उनके भैंसे के गले में बंधी घंटी की ध्वनि मरने वाले को सुनाई देने लगती है| उसकी ध्वनि इतनी कर्णकटु होती है कि वह घबरा जाता है और विगत का पूरा जीवन उसको सिनेमा की तरह दिखाई देने लगता है| उसी चेतना में यमराज उसके गले में फंदा डालकर उस को देहचेतना से मुक्त कर देते हैं| फिर उसे बहुत अधिक कष्ट झेलने पड़ते हैं|
.
यमराज के भैंसे के गले में बंधी घंटी की ध्वनी सुने इससे पहिले ही ओंकार की ध्वनी को या राम नाम की ध्वनी को निरंतर सुनने का अभ्यास आरम्भ कर देना चाहिए|
आप किसी बड़े मंदिर में जाते हैं तो वहाँ एक बड़ा घंटा लटका रहता है जिसे जोर से बजाने पर उसकी ध्वनी का स्पंदन बहुत देर तक सुनाई देता है| कल्पना करो कि ऐसे ही किसी घंटे से ओंकार की या रामनाम की ध्वनि निरंतर आ रही है| उस ध्वनी को सुनने और उस पर ध्यान करने का नित्य नियमित अभ्यास करो|
यह ध्वनि ही आपको मुक्ति दिला सकती है| अन्यथा एक बार यमराज के भैंसे के गले की घंटी सुन गयी तो फिर अंत समय में अन्य कुछ भी सुनाई नहीं देगा|
.
अभी से अपने मृत्युंजयी भगवान शिव का निरंतर ध्यान करना आरम्भ कर दो| आपकी मृत्यु भय से वे ही रक्षा कर सकते हैं| कितनी शीतलता है उनके सान्निध्य में! वह शीतलता और दिव्यता ही आपकी रक्षा कर सकती है|
.
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||