Thursday 8 December 2016

भारत हिदू राष्ट्र था, है और सदा ही रहेगा .....

भारत हिदू राष्ट्र था, है और सदा ही रहेगा .....

भारत का अभ्युदय और विस्तार ही धर्म का अभ्युदय और विस्तार है, और भारत का पतन और ग्लानी ही धर्म का पतन और ग्लानी है|
भारत ही धर्म है और धर्म ही भारत है| भारत के बिना धर्म नहीं है, और धर्म के बिना भारत नहीं है|
मुझसे अनेक व्यक्ति पूछते हैं कि सनातन हिन्दू धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और हिन्दू राष्ट्र की सम्भावना कैसे सम्भव है|
आज ही एक पत्रकार मित्र मिले जो इतने निराश हो चुके हैं जो मिलते ही कहने लगे कि हिन्दु धर्म और संस्कृति का विनाश वर्तमान परिस्थितियों में निश्चित है|
समाज में अधिकाँश लोग अब यह मानने लगे हैं कि हिन्दू धर्म विनाश की ओर जा रहा है और इसे कोई नहीं बचा सकता क्योंकि बाहरी लक्षण ऐसे ही हैं|
समाज में ऐसी निराशा का छा जाना वास्तव में चिंता का विषय है|
पर मैं उन्हें यह बता देना चाहता हूँ कि हिन्दू राष्ट्र एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है|
यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से प्रकृति द्वारा चल रही है| यदि आप का संकल्प परमत्मा के संकल्प से जुड़ जाए तो आप भी इस सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार में भागीदार हो सकते हैं| आप का दृढ़ संकल्प भी इस सृष्टि का परावर्तन कर सकता है|
मुझसे कुछ लोग यह भी पूछते हैं कि आप तो इतने साधू-संतों से मिलते हो, क्या वे धर्म की रक्षा और दुष्टों का विनाश नहीं कर सकते| मैं उन्हें यह बताना चाहता हूँ कि वे साधू संत भी इसी उद्देष्य यानि धर्म की रक्षा हेतु ही साधना कर रहे हैं| उनका लक्ष्य कोई मुक्ति पाना नहीं है|
हिन्दु राष्ट्रकी स्थापना ब्रह्मतेजयुक्त संतों के संकल्प से होगी! हमें सबसे बड़ी आवश्यकता है ब्रह्मतेज की| वह ब्रह्म तेज ही भारत को पुनर्ज्जीवन देगा! अनेक साधक इस उद्देष्य के लिए साधना कर रहे हैं|
ब्रह्मतेजयुक्त संतों के संकल्प से क्षात्रतेज युक्त पुरुषार्थी उत्पन्न होंगे जो हिन्दु राष्ट्रके स्वप्नको साकार करेंगे| इस प्रक्रियामें सूक्ष्म स्तर पर प्रकृति उनका सहयोग करेगी और अपने विनाशक रूप में दुष्टों का संहार करेगी| यह प्रक्रिया आरंभ होने वाली है और इस हेतु हमें और भी गहन साधना करनी होगी|
ऐसा लग रहा है कि निकट भविष्यमें भारी विनाश होगा जिसमें दुर्जनों के साथ साथ सज्जन भी भारी संख्यामें विनाशकी बलि चढ़ेंगे| धृतराष्ट्र की तरह अधर्म और राष्ट्र द्रोह के मूक सहमतिदारों का कुल सहित नाश होगा| वर्तमान सभ्यता विनाश की ओर जा रही है और यह विनाश टल नहीं सकता|
इस विनाश से रक्षा का एकमात्र उपाय भगवन श्री कृष्ण ने गीता में बताया है ---------
"स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् |"
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ॐ शिव|

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