हमें सिर्फ और सिर्फ परमात्मा चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं .....
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परमात्मा से कम कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं है| हमें न तो उसकी विभूतियों से कोई मतलब है, न उसके ऐश्वर्य से, और न उसकी किसी महिमा से|
न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य|
कोई भी और कुछ भी अन्य नहीं चाहिए| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए|
परमात्मा से अन्य कुछ भी कामना का होना सबसे बड़ा धोखा है, अतः हमें सिर्फ परमात्मा ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं|
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किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई मतलब हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|
यह संसार है, जिसमें तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं|
भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ---- ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है|
चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है|
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नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
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परमात्मा से कम कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं है| हमें न तो उसकी विभूतियों से कोई मतलब है, न उसके ऐश्वर्य से, और न उसकी किसी महिमा से|
न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य|
कोई भी और कुछ भी अन्य नहीं चाहिए| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए|
परमात्मा से अन्य कुछ भी कामना का होना सबसे बड़ा धोखा है, अतः हमें सिर्फ परमात्मा ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं|
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किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई मतलब हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|
यह संसार है, जिसमें तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं|
भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ---- ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है|
चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है|
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नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
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