Sunday, 5 January 2025
मेरा स्वभाव ---
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ---
मेरी सारी चेतना स्वतः ही अब राममय हो गई है। मैं भगवान श्रीराम के साथ, और भगवान श्रीराम मेरे साथ एक हैं। अयोध्या में श्रीराममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा -- एक मंदिर की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत का पुनरोदय और भारत के प्राण की पुनः प्रतिष्ठा है।
एक प्रार्थना ---
शरणागति और समर्पण ...
हम यह क्षुद्र भौतिक शरीर नहीं, सर्वव्यापी सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान परमब्रह्म परमात्मा हैं --- .
कोई क्या सोचेगा, क्या कहेगा? इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि हम अपनी स्वयं की दृष्टि में क्या हैं? कोई क्या कहता या सोचता है? यह उसकी समस्या है। हमारी एकमात्र समस्या भगवान को पाना है, क्योंकि हमारा एकमात्र शाश्वत संबंध भगवान से है। हम भगवान के साथ एक हों, और उन्हीं को निरंतर व्यक्त करें।
मूँगे की चट्टानों (Coral Reefs) में तैराकी और Snorkeling :--- (भाग १)
National Geographic पत्रिका में मूँगे की चट्टानों के बारे में पढ़कर मेरा यह एक स्वप्न था कि जीवन में मुझे भी कभी मूँगे की चट्टानों में तैरने और Snorkeling का अवसर मिले। यह अवसर मिला सन १९८० में जब मुझे सपरिवार श्रीलंका में त्रिंकोमाली जाने का अवसर मिला। वहाँ एक त्रिकोणी पहाड़ी पर विशाल शिवालय है, इसलिए इस बन्दरगाह का नाम थिरुकोणमल्ले यानि त्रिंकोंमाली है। वहाँ दो टापू है जहां खूब मूँगे की चट्टानें हैं। मैंने चालक दल के साथ एक नौका किराये पर ली और एक जीवन-रक्षक गोताखोर को भाड़े पर साथ में लिया और गंतव्य स्थान पर पहुँच गया। पत्नी को तो नाव में ही बैठाये रखा, और स्वयं अपने साथी गोताखोर के साथ पानी में उतर गया। वह गोताखोर बहुत कुशल और वफादार था। उसने गोताखोरी के अनेक करतब दिखाए और मुझे स्नोर्केलिंग सिखलाई। वहाँ के प्रशासन ने तीन घंटों की ही अनुमति दी थी। इसलिए तीन घंटों में ही बापस लौटना पड़ा।