निरंतर अभ्यास करते करते और परमात्मा व गुरुओं की असीम कृपा से अब निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही मेरा स्वभाव बन गया है| अब भगवान ह्रदय में आकर बैठ गए हैं जहां से वे कभी बाहर नहीं जायेंगे| और भी सरल लौकिक शब्दों में इस अति लघु ह्रदय को भगवान ने धन्य कर दिया है| अब तो स्वप्न भी भगवान के ही आते हैं| कामनाएँ और अपेक्षाएँ भी कम से कम होती होती समाप्त ही हो जाएँगी| यह स्वाभाविक अवस्था कभी न कभी तो सभी को प्राप्त होती है|
.
सरिता प्रवाहित होती है, पर किसी के लिए नहीं| प्रवाहित होना उसका स्वभाव है| व्यक्ति .. स्वयं को व्यक्त करना चाहता है, यह उसका स्वभाव है| मुझे किसी से कुछ अपेक्षा नहीं है, किसी से कुछ नहीं चाहिए पर स्वयं को व्यक्त कर रहा हूँ, यह मेरा स्वभाव है|
.
जो लोग सर्वस्व यानि समष्टि की उपेक्षा करते हुए स्वहित की ही सोचते हैं, प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करती | वे सब दंड के भागी होंगे| समस्त सृष्टि ही अपना परिवार है और समस्त ब्रह्माण्ड ही अपना घर| यह देह और यह पृथ्वी भी बहुत छोटी है अपने निवास के लिए| अपना प्रेम सर्वस्व में पूर्णता से व्यक्त हो|
.
जो मेरी बात को समझते हैं मैं उनका भी आभारी हूँ और जिन्होंने नहीं समझा है उनका भी| आप सब मेरी निजात्माएँ हैं, आप सब के ह्रदय में कूट कूट कर परमात्मा के प्रति प्रेम भरा पड़ा है, अतः आप सब पूज्य हैं| आप सब मेरे प्राण हो| आप सब को मेरा अनंत असीम अहैतुकी परम प्यार| आप सब अपनी पूर्णता को उपलब्ध हों, यही मेरी शुभ कामना है|
आप सब मेरे नारायण हैं|
.
ॐ तत् सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ जनवरी २०१७
No comments:
Post a Comment