गुरुकृपा से आज इस विषय पर गहन चिंतन करने को मैं आतंरिक रूप से विवश हूँ .......
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जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के लिए जन्म रहित परब्रह्म परमात्मा से एकाकार होना ही होगा| इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है| परब्रह्म परमात्मा का जो साकार रुप मुझे अपनी अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में आता है वह भगवान परमशिव का है, और निराकार रूप ॐकार का है| इन साकार और निराकार दोनों का आश्रय लेना ही होगा| बार बार निश्चय कर उनका निरंतर चिंतन और ध्यान करना होगा|
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गुरुकृपा से एक लघुमार्ग (Short cut) दिखाई दे रहा है| वह लघुमार्ग है .... गुरु की शरण मे रहो, यानि उन्हीं को कर्ता, भोक्ता और क्रिया बना लो| ऐसा संभव है अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का गुरु में पूर्ण रूप से समर्पण द्वारा| पर अब तो गुरु भी कूटस्थ ब्रह्म हो गए हैं क्योंकि जो उनका प्रचलित चित्र है वह तो उनके शरीर का था, पर वे यह शरीर नहीं थे| वे तो परम चैतन्य थे, उनको मैं नाम-रूप में कैसे बाँध सकता हूँ? वे तो ज्योतिर्मय कूटस्थ ब्रह्म और प्रणव नाद रूप हैं, अतः मेरा समर्पण उन्हीं को है|
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ध्यान में जो कूटस्थ ज्योति निरंतर दिखाई देती है, और जो प्रणव नाद सुनाई देता है, वे ही मेरे इष्ट देव/देवी हैं, वे ही परमशिव हैं, वे ही विष्णु हैं, और वे ही मेरे सद्गुरु हैं| हे गुरुरूप परब्रह्म मैं आपकी शरण में हूँ, मेरा समर्पण स्वीकार करो| मैं आपके शरणागत हूँ| मेरे सारे संचित और प्रारब्ध कर्म, उनके फल, और मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व आपको समर्पित है| मैं निरंतर आपका हूँ और आप मेरे हैं, मुझे अपनी शरण में ले लो|
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ॐ ॐ ॐ || शिव शिव शिव शिव शिव || ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
५ जनवरी २०१६
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पुनश्च: --- शरणागति में सबसे बड़ा बाधक मेरा मन ही है, और कुछ भी नहीं। हे मेरे मन ! तूँ माया का आवरण भेद कर श्रीहरिः के चरण भज। कलुष पापाचरण के कारण ही तू पतित हो गया है। अरे मेरे मन ! यदि तू चाहता है कि इस दुःखसागर को पार कर सकूँ तो प्रभु के शरण का उपकरण बन जा और श्रीहरिः का भजन कर। भगवान का निरंतर चिंतन कर, और अन्य कुछ भी न सोच। ॐ ॐ ॐ !!
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