Sunday, 5 January 2025

हम यह क्षुद्र भौतिक शरीर नहीं, सर्वव्यापी सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान परमब्रह्म परमात्मा हैं --- .

 कोई क्या सोचेगा, क्या कहेगा? इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि हम अपनी स्वयं की दृष्टि में क्या हैं? कोई क्या कहता या सोचता है? यह उसकी समस्या है। हमारी एकमात्र समस्या भगवान को पाना है, क्योंकि हमारा एकमात्र शाश्वत संबंध भगवान से है। हम भगवान के साथ एक हों, और उन्हीं को निरंतर व्यक्त करें।

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मन में कोई कामना/आकांक्षा न हो। कामनाएँ पतन का द्वार हैं। अभीप्सा हो परमात्मा को पाने की, यह आत्मा का स्वधर्म है। परमात्मा के भाव में उनके उपकरण बन कर निमित्त मात्र होकर, स्वयं परमात्मा के रूप में जीयें।
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हम यह क्षुद्र भौतिक शरीर नहीं, सर्वव्यापी आत्मा हैं। हम परिछिन्न नहीं हैं।
सदा यह भाव रखें कि मैं -- सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, व सर्वशक्तिमान हूँ। यह संसार मेरा ही संकल्प है। मैं -- सम्पूर्ण आनंद, सम्पूर्ण ज्ञान, सम्पूर्ण सत्य, संपूर्ण प्रकाश, ज्योतिषाम्ज्योति हूँ। मेरे ही प्रकाश से सारे सूर्य, सारे चंद्रमा, सारे नक्षत्र चमक रहे हैं। मैं शिव हूँ। मैं देवों का देव महादेव हूँ। मैं परमशिव परमात्मा हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
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सदा इस शिवभाव में रहें। ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
५ जनवरी २०२३

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