मेरी सारी चेतना स्वतः ही अब राममय हो गई है। मैं भगवान श्रीराम के साथ, और भगवान श्रीराम मेरे साथ एक हैं। अयोध्या में श्रीराममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा -- एक मंदिर की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत का पुनरोदय और भारत के प्राण की पुनः प्रतिष्ठा है।
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अब रावण का बध होगा। रावण कौन है? ---
सारी पश्चिमी अवधारणाएँ जैसे मार्क्सवाद, साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद, अगड़ा-पिछड़ावाद, अल्पसंख्यकवाद, और चर्चवाद -- ये सब रावण हैं। इनके समर्थक -- कुंभकर्ण, मेघनाद, और सारे राक्षस हैं। ये सब विज्ञान (विशेष ज्ञान) की विवेकाग्नि में भस्म हो जायेंगे।
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ज्ञान के एक नये सूर्य का उदय हो रहा है, जिसके प्रकाश में असत्य का सारा अंधकार दूर होगा। अब प्रश्न उठता है कि हम क्या करें?
प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है, उस अव्यक्त को निज जीवन में व्यक्त करें। यही भगवत्-प्राप्ति और उसकी साधना है। यही आपको करना है। यह एक पाठ है जो निरंतर पढ़ाया जा रहा है। कोई इसे शीघ्र सीख लेता है, कोई विलंब से। जो नहीं सीखता उसे सीखने के लिए प्रकृति बाध्य कर देती है।
भगवान की एक दिव्य चेतना मेरे चारों ओर छायी हुई है जो यह लिखने को मुझे बाध्य कर रही है।
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श्रीमते रामचंद्राय नमः !! श्रीरामचन्द्रचरणौशरणम् प्रपद्ये !! सर्वेश्वर श्रीरघुनाथो विजयतेतराम !! जयजय श्रीसीताराम !!
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जनवरी २०२४
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