Wednesday, 27 April 2022

क्या हम हनुमान जी की भक्ति के पात्र है? ---

 क्या हम हनुमान जी की भक्ति के पात्र है?

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उपरोक्त प्रश्न मैंने स्वयं से अनेक बार पूछा है। मुझे स्वयं की पात्रता पर संदेह होता है, क्योंकि उत्तर नकारात्मक आता है। पर एक अज्ञात शक्ति कहती है कि पात्रता आते-आते अपने आप आ ही जाएगी, बस लगे रहो। बनते बनते पात्र भी बन जाओगे। हम कोई मँगते-भिखारी तो हैं नहीं जो उनसे कुछ माँग रहे हैं। हम तो स्वयं का समर्पण कर रहे हैं।
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कुछ विचारणीय बिन्दु हैं --
(१) "जय हनुमान ज्ञान-गुण सागर" --
हनुमान हनु+मान) का अर्थ होता है -- जिसने अपने मान यानि अहंकार को मार दिया है। जब हम अपने अहंकार पर विजय पायेंगे, तभी ज्ञान और गुणों के सागर होंगे। लेकिन हमारा अहंकार बड़ा प्रबल है। जब तक अहंकार और लोभ से हम ग्रस्त हैं, तब तक हनुमान जी की कृपा हमारे ऊपर नहीं होती।
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(२) "साधु-संत के तुम रखवारे" --
हमारे विचार साधु के, और स्वभाव संतों का होगा, तभी तो वे हमारी रक्षा करेंगे। क्या हमारे विचार और स्वभाव साधु-संतों के है?
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(३) "जो सुमिरे हनुमत बलबीरा" --
उनका निरंतर स्मरण करेंगे तभी तो बलशाली और वीर होंगे। हम उनका स्मरण चिंतन नहीं करते इसीलिए बलशाली और वीर नहीं है। जो उनका निरंतर स्मरण करते हैं, वे बलशाली और वीर होते हैं। हनुमान जी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सदा सफल रहे हैं, उन्होने कभी विफलता नहीं देखी। वे सेवा और भक्ति के परम आदर्श हैं। जितनी सेवा और भक्ति उनके माध्यम से व्यक्त हुई है, उतनी अन्यत्र कहीं भी नहीं हुई है, यद्यपि वे ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं।
"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥"
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(४) हनुमान जी ही घनीभूत प्राण हैं --
मेरे निम्न कथन पर कुछ विवाद हो सकता है, लेकिन मैं बड़ी दृढ़ता से अपने अनुभूतिजन्य विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ। मुझे घनीभूत-प्राण यानि कुंडलिनी महाशक्ति में भी हनुमान जी की अनुभूति होती है। वे जगन्माता के स्वरूप भी हैं। इस विषय पर मैं और चर्चा नहीं करना चाहूँगा। जो निष्ठावान योग साधक है, वे इसे जानते हैं। भगवान पिता भी है, और माता भी, मेरे लिए उनमें कोई भेद नहीं है। सूक्ष्म देह में मूलाधारचक्र से सहस्त्रारचक्र, और ब्रह्मरंध्र से परमात्मा की अनंतता से भी परे परमशिव तक की यात्रा, वे ही सम्पन्न करवाते हैं। उनका निवास परमात्मा की अनंतता में है, और उनकी उपस्थिती बड़े प्रेम और आनंद को प्रदान करती है। वे सब बाधाओं का निवारण भी करते हैं। मैं उनके समक्ष नतमस्तक हूँ।
"मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥"
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ये मेरे मन के भाव या श्रद्धा-सुमन थे, जो मैंने व्यक्त कर दिये। कृपया अन्यथा न लें। आप सब के हृदयों में मैं हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२७ अप्रेल २०२२

गत वर्ष (२०२१) के इन्हीं दिनों की एक स्मृति ---

 गत वर्ष (२०२१) के इन्हीं दिनों की एक स्मृति ---

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मैं सोच रहा था कि अब आध्यात्म के अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय पर नहीं लिखूँगा, लेकिन पिछले दो-तीन दिनों में एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना घटी है कि उसे लिखे बिना नहीं रह सकता। वह घटना है भारत की सफल विदेश नीति की जिसने अपनी कूटनीति द्वारा अमेरिका को झुका दिया है। इसके लिए तीन व्यक्ति धन्यवाद के पात्र हैं -- भारत के विदेशमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, और प्रधानमंत्री। सं १९४७ ई.के बाद से पहली बार भारत इस समय जितना सशक्त है, उतना पहले कभी भी नहीं था। यह भारत की कूटनीतिक विजय है।
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सैनिक दृष्टि से भी भारत अब जितना सशक्त है, जितना दृढ़ मनोबल और आत्म-विश्वास भारत में है, उतना पहले कभी भी नहीं था। उदाहरण है, लद्दाख में चीन को बिना युद्ध किए पीछे लौटने को बाध्य करना। धारा ३७० और ३५ए की समाप्ति, भारत के दृढ़ मनोबल को दिखाती है। सन २०१४ तक भारत, चीन से डरता था। अब स्थिति पलट गई है, अब चीन भारत से डरता है। अब चीन और पाकिस्तान ने अपना पूरा ज़ोर लगा रखा है कि कैसे भी भारत के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व को बदला जाये ताकि वे ही पुराने कमीशनखोर और डकैत लोग सत्ता में आ जाएँ। भारत में पहले कभी उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई क्योंकि भारत का अधिकांश धन तो चोरी और डकैती द्वारा विदेशी बैंकों में चला जाता था जिस से दूसरे देशों की प्रगति होती थी, भारत की नहीं। अब भारत का पैसा बाहर जाना बंद हुआ है तब से भारत की प्रगति शुरू हुई है।
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पिछले दिनों अमेरिका का वाइडेन प्रशासन अपने पुराने भारत विरोध पर खुल कर उतर आया था, प्रत्युत्तर में भारत ने अपना बहुमुखी कूटनीतिक प्रहार किया|
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(१) सबसे पहले हमारे विदेश मंत्री ने बयान दिया कि भारत अपनी रणनीति को बदल सकता है। हो सकता है चीन के विरुद्ध युद्ध में भारत, अमेरिका का साथ न दे। यह सबसे बड़ा कूटनीतिक प्रहार था, जिस से अमेरिका तिलमिला गया।
(२) फिर भारत ने कह दिया कि भारत अपनी स्वदेशी कोवैक्सिन ही बनायेगा जिसका सारा कच्चा माल भारत में पर्याप्त है। इसकी कीमत भी बढ़ा दी, जो एक कूटनीति थी। इसका पूरी दुनिया में मनोवैज्ञानिक असर पड़ा। जो अप्रत्याशित घटनाक्रम हुआ, उस से यूरोपीय संघ एकदम से भारत के पक्ष में आ गया। दुनिया के गरीब देशों को भी भारत से ही आशा थी उनकी आवश्यकताओं को भारत का दवा उद्योग ही पूरा कर सकता है।
(३) चीन ने भी भारत को धमकियाँ देना शुरू कर दिया कि भारत, अमेरिका के पक्ष में न जाये, क्योंकि अमेरिका ने सदा भारत को धोखा दिया है। भारत का जनमानस भी अमेरिका विरोधी होने लगा। भारत के सुरक्षा सलाहकार ने अपने समकक्ष अमेरिकी अधिकारियों के कान भरने आरंभ कर दिये कि भारत का जनमानस अब अमेरिका के विरोध में जा रहा है अतः भारत से सहयोग की अपेक्षा न रखें।
(४) भारत ने अमेरिका को दी जाने वाली फार्मास्युटिकल सप्लाई को बंद करने की धमकी दे दी, जिस से अमेरिका के फार्मास्यूटिकल उद्योग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता, और वहाँ बनने वाली फाइजर वेक्सीन का उत्पादन रुक जाता।
(५) अमेरिका में भारतीय लॉबी खुल कर वाइडेन प्रशासन के विरोध में उतर आई। परिणाम आप सब के सामने है। वाइडेन प्रशासन को भारत के पक्ष में झुकना ही पड़ा।
यह भारत के प्रधानमंत्री की कूटनीतिक विजय और शक्ति है।
२७ अप्रेल २०२१

प्राणायाम की दो प्राचीन विधियाँ ---

 प्राणायाम की दो प्राचीन विधियाँ ---

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प्राणायाम एक आध्यात्मिक साधना है जो हमारी चेतना को परमात्मा से जोड़ता है। यह कोई श्वास-प्रश्वास का व्यायाम नहीं है, यह योग-साधना का भाग है जो हमारी प्राण चेतना को जागृत कर उसे नीचे के चक्रों से ऊपर उठाता है। मैं यहाँ प्राणायाम की दो अति प्राचीन और विशेष विधियों का उल्लेख कर रहा हूँ। ये निरापद हैं। ध्यान साधना से पूर्व खाली पेट इन्हें करना चाहिए। इनसे ध्यान में गहराई आयेगी।
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(१) (a) खुली हवा में पवित्र वातावरण में पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह कर के कम्बल पर बैठ जाइए। यदि भूमि पर नहीं बैठ सकते तो भूमि पर कम्बल बिछाकर, उस पर बिना हत्थे की कुर्सी पर कमर सीधी कर के बैठ जाइए। कमर सीधी रहनी चाहिए अन्यथा कोई लाभ नहीं होगा। कमर सीधी रखने में कठिनाई हो तो नितंबों के नीचे पतली गद्दी रख लीजिये। दृष्टी भ्रूमध्य को निरंतर भेदती रहे, और ठुड्डी भूमि के समानांतर रहे।
(b) अब तीनों बंध (मूलबंध, उड्डियानबंध और जलंधरबंध) लगायें; जिनकी विधि इस प्रकार है -- बिना किसी तनाब के फेफड़ों की पूरी वायू नाक द्वारा बाहर निकाल दीजिये, गुदा का संकुचन कीजिये, पेट को अन्दर की ओर खींचिए और ठुड्डी को नीचे की ओर कंठमूल तक झुका लीजिये। दृष्टी भ्रूमध्य में ही रहे।
(c) मेरु दंड में नाभी के पीछे के भाग मणिपुर चक्र पर मानसिक रूप से ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ का जितनी देर तक बिना तनाव के जप कर सकें कीजिये। इस जप के समय हम मणिपुर चक्र पर प्रहार कर रहे हैं।
(d) आवश्यक होते ही सांस लीजिये। सांस लेते समय शरीर को तनावमुक्त कर a वाली स्थिति में आइये और कुछ देर अन्दर सांस रोक कर नाभि पर ओंकार का जप करें। जप के समय हम नाभि पर ओंकार से प्रहार कर रहे हैं।
(e) उपरोक्त क्रिया को दस बारह बार दिन में दो समय कीजिये| इस के बाद ध्यान कीजिये।
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(2)
एक दूसरी विधि है :------ उपरोक्त प्रक्रिया में a और b के बाद धीरे धीरे नाक से सांस लेते हुए निम्न मन्त्रों को सभी चक्रों पर क्रमश: मानसिक रूप से एक एक बार जपते हुए ऊपर जाएँ|
मूलाधारचक्र ........ ॐ भू:,
स्वाधिष्ठानचक्र ..... ॐ भुव:,
मणिपुरचक्र ......... ॐ स्व:,
अनाहतचक्र ........ ॐ मह:,
विशुद्धिचक्र ......... ॐ जन:,
आज्ञाचक्र ............. ॐ तप:,
सहस्त्रार................ ॐ सत्यम् |
(इसके पश्चात जिन का उपनयन संस्कार हो चुका है, वे गायत्री मंत्र का जप भी कर सकते हैं। उनके लिए तीन मंत्र और भी हैं).
इसके बाद सांस स्वाभाविक रूप से चलने दें लेते हुए अपनी चेतना को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विस्तृत कर दीजिये| ईश्वर की सर्वव्यापकता आप स्वयं हैं| आप यह देह नहीं हैं| जैसे ईश्वर सर्वव्यापक है वैसे ही आप भी सर्वव्यापक हैं| पूरे समय तनावमुक्त रहिये| कई अनुष्ठानों में प्राणायाम करना पड़ता है वहां यह प्राणायाम कीजिये| संध्या और ध्यान से पूर्व भी यह प्राणायाम कर सकते हैं| धन्यवाद|
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२७ अप्रेल २०२१